रविवार, 2 नवंबर 2008

ध्यान रहे

सुख प्राप्त करने के लिये क्या न करें ?

Omसंसार में यदि आपने किसी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट दिया, तो निश्चित रूप से आपने अष्टमूर्ति शिव का अनिष्ट किया।( प्रमाण नन्दिकेश्वर का ब्रह्मा के पुत्र सनत्कुमार को उपदेश श्री शिवमहापुराण शतरूद्र संहिता अध्याय २ पृष्ठ संख्या ४९९)

प्रदोष-व्रत एवं पूजन का चमत्कार जो प्रदोष के समय भगवान शंकर का पूजन नहीं करता या प्रदोष के समय भगवान शंकर को छोड़कर अन्य देवताओं का पूजन करता है, वह जन्म जन्मान्तर तक दरिद्री रहता है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि जो व्यक्ति देहधारी गुरू से दीक्षा लेकर प्रभु शिव का प्रदोष पूजन नही करने पर भी जिसके पास आज धनादि सुख है वह उसके पूर्व जन्म के पुण्य से ही है जो कि वह बैंक से निकाल - निकाल कर खा रहा है। नया पुण्य भगवान शंकर की पूजा के बिना बन ही नहीं सकता। प्रदोष पूजन की दीक्षा की व्यवस्था है, प्रदोष के समय सभी देवता कैलास में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहते है।

"क्रोध" यह एक महान शत्रु है। विश्व में जितने भी धर्म है, उनको मानने वालों के पास ऐसा कोई प्रयोग नहीं है जो क्रोध को शान्त कर सके। एक धर्म को मानने वाले एक व्यक्ति इसी समस्या (क्रोध) को लेकर अपने धर्मगुरू के पास गये। धर्मगुरू ने कहा, "विचारों से क्रोध को कम करो और अगले दिन २४ घंटे निर्जला, निराहार व्रत करो।" उस व्यक्ति ने हमे बताया कि व्रत के डर से उसने क्रोध कम कर दिया। क्रोध आता तो है परन्तु उसे अन्दर ही अन्दर दबा देते है, जिससे शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो गये हैं। हमारे आश्रम में क्रोध को शान्त करने के सरल उपाय सिखाये जाते हैं, जिससे मनुष्य का स्वभाव ही परिवर्तित हो जाता है। कितनी बड़ी देन है हमारे आश्रम की समाज के प्रति। श्री शिवमहापुराण में अनेकों प्रसंग हैं, जहॉं ने शिव-पूजा से अपने तामसिक स्वभाग को सात्विक बना लिया।

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