असीरगढ़ का किला... रहस्यमय किला...। कहते हैं, यहाँ स्थित शिव मंदिर में महाभारतकाल के अश्वत्थामा आज भी पूजा-अर्चना करने आते हैं। इस किंवदंती को सुनने के बाद हमने फैसला किया कि सबसे पहले इसी किले के रहस्यों को कुरेदेंगे। देखेंगे कि यह किंवदंती कहाँ तक सच है।
असीरगढ़ का किला बुरहानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर है। किले पर चढ़ाई करने से पहले हमने किले के आस-पास रहने वाले बड़े-बुजुर्गों से इस बाबत जानकारी हासिल की। लगभग सभी ने हमें किले के संबंध में अजीबो-गरीब दास्तां सुनाई। किसी का कहना था कि जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। बुजुर्गों से चर्चा करने के बाद हमने रुख किया, असीरगढ़ के किले की तरफ। लगभग आधे घंटे की पैदल चढ़ाई करने के बाद हमने किले के बाहरी बड़े दरवाजे पर दस्तक दी।
जाहिर है, किले का दरवाजा खुला हुआ था। हमने अंदर की तरफ रुख किया। लंबी घास के बीच जंगली पौधों को हटाते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। तभी हमारी नज़र कुछ कब्रों पर पड़ी। कब्रें काफी पुरानी-सी लग रही थीं। साथ आए गाइड मुकेश ने बताया कि यह अंग्रेज़ सैनिकों की कब्रें हैं। कुछ देर यहाँ � हरने के बाद हम आगे बढ़ते गए। हमें टुकड़ों में बंटा एक तालाब दिखाई दिया। तालाब को देखते ही मुकेश बताने लगा कि यही वह तालाब है, जिसमें स्नान करके अश्वत्थामा शिव-मंदिर में पूजा-अर्चन करने जाते हैं, वहीं कुछ लोगों का कहना था `उतालवी नदी' में स्नान करके वह पूजा के लिए यहाँ आते हैं। हमने तालाब को गौर से देखा। ऐसा लगा, मानों पहाड़ियों से घिरी इस जगह पर बारिश का पानी जमा हो जाता होगा। सफाई न होने के कारण यह पानी हरा नज़र आ रहा था, लेकिन आश्चर्य यह कि बुरहानपुर की तपती गर्मी में भी यह तालाब सूखता नहीं था।
हम थोड़ा आगे बढ़े थे कि हमें गुप्तेश्वर महादेव मंदिर दिखाई दिया। मंदिर चहुँओर से खाइयों से घिरा हुआ था। किंवदंती के अनुसार इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ, सीधे इस मंदिर में निकलता है। इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर में अंदर आते हैं। हम मंदिर के अंदर दाखिल हुए। यहां की सीढ़ियाँ घुमावदार थीं और चारों तरफ खाई बनी हुई थी। जरा-सी चूक से हम खाई में गिर सकते थे।
बड़ी सावधानी से हम मंदिर के अंदर दाखिल हुए। मंदिर देखकर महसूस हो रहा था कि भले ही इसमें कोई रोशनी और आधुनिक व्यवस्था न हो, यहाँ परिंदा भी पर न मारता हो, लेकिन पूजा लगातार जारी है। वहाँ श्रीफल के टुकड़े नज़र आए। शिवलिंग पर गुलाल चढ़ाया गया था। हमने रात इसी मंदिर में गुजारने का फैसला कर लिया। अभी रात के बारह बजे थे। गाइड मुकेश हमसे नीचे उतरने की विनती करने लगा। उसने कहा, ``यहाँ रात के समय रुकना � ीक नहीं हैं।'' लेकिन हमारे दबाव देने पर वह भी रुक गया। उस वीराने में रात भयानक लग रही थी। लग रहा था कि समय न जाने कैसे कटेगा। घड़ी की सूई दो बजे पर पहुँची ही थी कि तापमान एकदम से घट गया। बुरहानपुर जैसे इलाके में जून की तपती गर्मी में इतनी � ंड! मुझे ध्यान आया कि मैंने कहीं पढ़ा था कि `जहाँ आत्माएँ आस-पास होती हैं, वहाँ का तापमान एकदम � ंडा हो जाता है।' क्या हमारे आस-पास भी ऐसा ही कुछ था?
हमारे कुछ साथी घबराने लगे थे। हमने � ंड और डर दोनों को भगाने के लिए अलाव जला लिया था। आस-पास का माहौल बेहद डरावना हो गया था। पेड़ों पर मौजूद कीड़े अजीब-सी आवाज़ें निकाल रहे थे। पौ फटने को थी। साथ आए सरपंच हारून बेग ने सुझाव दिया कि बाहर जाकर तालाब को देखना चाहिए। देखें क्या वहाँ कोई है? हम सभी तालाब की ओर निकल पड़े। कुछ देर हमने तालाब को निहारा, इधर-उधर टहलकर किले का जायजा लिया। हमें कुछ भी दिखाई नहीं दिया। भोर का हल्का उजास हर ओर फैलने लगा। हम सभी मंदिर की ओर मुड़ गए। लेकिन यह क्या! शिवलिंग पर गुलाब चढ़े हुए थे। हमारे आश्चर्य का � िकाना न था। आखिर यह कैसे हुआ? किसी के पास इसका जवाब नहीं था। अब यह सच था या किसी की शरारत या फिर इन खाइयों में कोई महात्मा साधना करते हैं, इस बारे में कोई भी नहीं जानता। हम इन खाइयों से जाती सुंग का भी पता नहीं लगा पाये, लेकिन इतना अवश्य है कि अतीत के कई राज़ इस खंडहर की दीवारों में बंद हैं, जिन्हें कुरेदने की जरूरत है।
आभार : हिन्दी मिलाप
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