यहाँ नंदी के अभाव की कहानी बड़ी रोचक है। एक दिन भरी इंद्रसभा में ब्रह्मदेव और शंकर में विवाद उत्पन्न हो गया। उस वक्त ब्रह्मदेव को पाँच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे, और पाँचवाँ निंदा करता था। उस निंदा से संतप्त शिवजी ने उस मुख को काट डाला। वह मुख उन्हें चिपक के बैठ गया।
इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ती पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में घुम रहे थे। लेकिन उन्हें मुक्ती का उपाय नहीं मिल रहा था।
बछड़े ने उत्तर दिया कि ब्रह्महत्या के पातक से मुक्ती का उपाय मुझे मालूम है। यह संवाद सुन रहे शिव जी के मन में उत्सुकता जागृत हुई। बछडे ने नाक में रस्सी डालने के लिए आए ब्राह्मण को अपने सिंग से मारा। ब्राह्मण मर गया। ब्रह्महत्या से बछड़े का अंग काला पड़ गया। उसके बाद बछड़ा निकल पड़ा। शिव जी भी उसके पिछे पिछे चलते गए। बछड़ा गोदावरी नदी के रामकुंड में आया। उस ने वहाँ स्नान किया। उस स्नान से ब्रह्म हत्या के पातक का क्षालन हो गया। बछड़े को अपना सफेद रंग पुनः मिल गया।
उसके बाद शिवजी ने भी रामकुंड में स्नान किया। उन्हे भी ब्रह्म हत्या के पातक से मुक्ती मिली। इसी गोदावरी नदी के पास एक टेकरी थी। शिवजी वहाँ चले गए। उन्हे वहाँ जाते देख गाय का बछड़ा (नंदी) भी वहाँ आया। नंदी के कारण ही शिवजी की ब्रह्म हत्या से मुक्ती हुई थी। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया।
इसी कारण इस मंदिर में नंदी नहीं है। ऐसा कहा जाता है की यह नंदी गोदावरी के रामकुंड में ही स्थित है। इस मंदिर का बड़ा महत्त्व है। बारा ज्योतिर्लिंगों के बाद इस मंदिर का महत्त्व है, ऐसे माना जाता है।
पुरातन काल में इस टेकरी पर शिवजी की पिंडी थी। लेकिन अब वहाँ एक विशाल मंदिर है। पेशवाओं के कार्यकाल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। मंदिर की सीढि़याँ उतरते ही सामने गोदावरी नदी बहती नजर आती है। उसी में प्रसिद्ध रामकुंड है। भगवान राम में इसी कुंड में अपने पिता राजा दशरथ के श्राद्ध किए थे। इसके अलावा इस परिसर में काफी मंदिर है।
कपालेश्वर मंदिर के ठीक सामने गोदावरी नदी के पार प्राचीन सुंदर नारायण मंदिर है। साल में एक बार हरिहर महोत्सव होता है। उस वक्त कपालेश्वर और सुंदर नारायण दोनों भगवानों के मुखौटे गोदावरी नदी पर लाए जाते है, वहाँ उन्हें एक दुसरे से मिलाया जाता है। अभिषेक होता है। इसके अलावा महाशिवरात्री को कपालेश्वर मंदिर में बड़ा उत्सव होता है। सावन के सोमवार को यहाँ काफी भीड़ रहती है।
जाएँ कैसे : मुंबई से नासिक 160 किलोमीटर है। पुना से नासिक 210 किलोमीटर है। दोनों जगह से नासिक आने के लिए बहोत गाडि़याँ है।
रेल मार्ग : मुंबई से नासिक आने के लिए काफी रेल गाडि़याँ है। देश के विभिन्न नगरों से भी नासिक आने के लिए गाडि़याँ है।
हवाई मार्ग : हवाई मार्ग से आने के लिए मुंबई, पुणे और औरंगाबाद हवाई अड्डे सबसे नजदिक है।
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