रविवार, 23 नवंबर 2008

चम्‍पावत के मन्दिर

नागनाथ

हिल्‍दू समाज में देवी देवताओं के अलावा नाग पूजा का अपना अलग स्‍थान है यहां पर वासुकी नाग की तरह नागनाथ की पूजा हेतु मंदिर की स्‍थापना वर्तमान तहसील कार्यालय के समीप ही की गयी है जिसमें स्‍थानीय रूप से पूजा अर्चना के साथ&साथ पर्यटकों का काफी संख्‍या में आवागमन रहता है

घटोत्कच का मंदिर

यह शहर से 2 किमी, की दूर चम्‍पावत तामली माटर मार्ग के किनारे पर बसा है यह भीम पुत्र् घटोत्‍कच का मंदिर है महाभारत की लडाई में घटोत्‍कच का सिर धड से कट कर यहां पर गिरा यह क्षेत्र् एक जलाशय के रूप में था पांडव अपने पुत्र् के सिर को न देखकर बहुत दुखी हुए तो स्‍वप्‍न में स्‍वंय घटोत्‍कच ने बताया कि मेरा सिर अमुक क्षेत्र् में है तो पांडव लोग डुढते हुए यहां आये व जलाशय को देखकर घबरा गये कि कैसे सिर को निकाला जाय उन्‍होंने मॉ भगवती अखिल तारणी से प्रार्थना की तथा भीम ने गदा प्रहार कर जलाशय को तोड डाला घटोत्‍कच का श्राद्व किया जिसके चिन्‍ह, हवन कुन्‍ड, नेदी,दीपे आदि आज भी खण्‍डहर के रूप में विद्यमान है जिस स्‍थान पर श्राद्व किया वह शिला धर्म शिला के नाम से नाम से जानी जाती है धार्मिक पर्वो पर आज भी यहां पर स्‍नान करने का महत्‍व है

एक हथिया नौला (एक हाथ से बना हुआ नौला)

यह ऐतिहासिक धरोहर है शहर से मात्र् 4 किमी दूर चम्‍पावत मायावती पैदाल मार्ग के किनारे स्थ्लि है जब चन्‍द राजा ने श्री जगन्‍नाथ मिस्‍त्री से गालेश्‍वर मंदिर बनवाया तो राजा ने ऐसी कला का अन्‍यत्र् प्रचार प्रसार न हो सके, इस हेतु मिस्‍त्री का दाहिना हाथ कटवा दिया तब मिस्‍त्री ने अपनी लडकी कुमारी कस्‍तुरी की मदद से बालेश्‍वर मंदिर से भी ज्‍यादा भव्‍य कलात्‍मक इस ऐतिहासिक नौला (वावली) का निर्माण कर दिखा दिया कि प्रबल इच्‍छा शक्ति से कोई भी कार्य असम्‍भव नहीं यह कलात्‍मक द्वष्टि से एक अदभूत नमूना है

दीप्‍तेश्‍वर महादेव

शहर से 2किमी दूर पूर्व भी तरह चम्‍पावत पिथौरागढ मार्ग से मात्र् 1 किमी, दूर स्थित है उत्‍तर वाहनी गंडकी नदी के किनारे पर बसा बहुत संदर स्‍थान है यहां श्रद्वा से पूजा पाठ करने पर भाग्‍यवश दीप के दर्शन होते है यहां पर शिव गाथा काफी जाग्रत है

मां भगवती हिंगला

शहर से 4 किमी, तथा चम्‍पावत- ललुवापानी मोटर सडक से 2किमी, दूर पर्वत शिखर पर मंदिर है यहां से चम्‍पावत मुख्‍यालय के विस्‍त`त क्षेत्र् का द्रश्‍य बहुत संदर दिखाई देता है यह उपशक्ति पीठ है नवरात्रयों में बडी भीड रहती है शहर के समीप स्थित होने से धर्मिक एंव पर्यटन की द्रष्टि से काफी महत्‍वपूर्ण स्‍थल है पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है

ताडकेश्‍वर महादेव

चम्‍पावत मुख्‍यालय से 5 किमी चम्‍पावत टनकपुर मुख्‍य मोटर मार्ग के किनारे पर स्थित है भगवान शिव का बहुत ही प्राचीन मंदिर है चम्‍पावत नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र् का श्‍मशान घाट भी है शासन द्वारा इसी के बगल पर शीतल मत्‍स्‍य पालन केन्‍द्र तथा कोल्‍ड स्‍टोर भी बनाया है प्राचीन मान्‍यताऔं के अनुसार यहां पर स्थ्ति सीताकुन्‍ड में नहाने का बडा भारी महत्‍व है

सप्‍तेश्‍वर

यह स्‍थान चम्‍पावत से 14 किमी, दूर है यहा पर शिव का काफी सुन्‍दर मन्दिर है यहां पर अब एक लधु विधुत ग्रह भी है धार्मिक व पर्यटन की द्रष्टि से इसे विकसित किया जा सकता है

क्रान्‍तेश्‍वर महादेव

यहां पर कूर्म पर्वत के शखिर पर बहुत ही सुंदर भव्‍य मंदिर बना है ऐसा माना जाता है कि कूर्म पर्वत के नाम पर ही कुमायु शब्‍द बना है कुमाÅ शब्‍द संस्‍क्रत के कूर्म शब्‍द का ही अपभ्रंश है माना जाता है कि भगवान विष्‍णु का कूर्म अवतार इसी क्षेत्र् में हुआ था जहा एक शिला पर भगवान विष्‍णु के पद चिन्‍ह आज भी दिखाई देते है इन्‍ही पद चिन्‍हों की पूजा की जाती है स्‍कंन्‍द पुराण में भी इसका वर्णन है स्‍कन्‍ध पुराण के खण्‍ड में भी कूर्म नाम के इस पर्वत का नाम आया है शहर से 6 किमी तथा यमुद्र तल से 6000 फीट ÅWचाई पर बसा है यहा से पूरे चम्‍पावत जनपद का द्रश्‍य बहुत ही सुदर दिखाई देता है मैदानी क्षेत्र् का भू- भाग भी यहा से द्रष्टिगोचर होता है संचलान समिति का गठन नही हुआ है

ऋखेश्‍वर महादेव

यह चम्‍पावत मुख्‍यालय से 12 किमी दूर लोहाघट नगर के पास स्थित है यहा शिव मंदिर के अलावा कई देवी देवताओं के भव्‍य मंदिर बने है धार्मिक एंव पर्यटन की द`ष्टि से यह स्‍‍थान बहुत ही सुन्‍दर है स्‍नान करने के लिए घाट बने है यह लोहाघाट वासियो का सम्‍शान घाट भी है

मानेश्‍वर महादेव

शिखर पर बना मंदिर काफी प्राचीन है चम्‍पावत शहर से करीब 7 किमी दूर चम्‍पावत पिधौरागढ मोटर मार्ग से 1 किमी की दूरी पर प्राक़तिक सुषमायुक्‍त पर्वत शिखर पर बसा है कहावत है कि जब पांडव लोग अपने पितरो का श्राद्व करने मान सरोवर को जा रहे थे तब इस स्‍थान पर पहुचते पहुचते श्रधा का दिन आ गया तब पांडव पुत्र् अर्जुन ने अपने गान्‍डीव से बाण मार चला कर जल धारा उत्‍तपन्‍न की व पितरों का श्राध तर्पण किया उसी वाण की गंगा से एक नौला वावली बना जो हमेशा जल से भरी रहती है इसका पानी अम़त तुल्‍य माना जाता है इस वावरी के जल से स्‍नान करने का अपना अलग ही आनन्‍द तथा महात्‍मय है यहां से चम्‍पावत शहर का द़श्‍य बहुत ही सुन्‍दर दि खाई देता है

कांकर

शारदा नदी के किनारे बूम नामक स्‍थान पर टनकपुर पूर्णागिरी मोटर मार्ग पर टनकपुर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है पुराणों के अनुसार स़ष्टिकर्ता ब्रह्रमा ने एक यज्ञ किया जिसमें सभी देवी देवता पधारे आज भी यहां पर प्राचीन यज्ञ स्‍थली हवन कुण्‍ड आदि दखाई देते है जब सूर्य उत्‍तरायण होता है तो इस जगह पर हवन, मुन्‍उन एवं यज्ञोपवीत करने का महत्‍व है

मागेश्‍वर महादेव

देवदार बनी के बीचों-बीच पैडी के ऊपर बना शिव मन्दिर बहुत ही सुंदर है रहने के लिए धर्मशाला है यहां यात्रीयों को फल-फूल खाकर ही पूजा पाठ करनी पडती है नमक तथा अनाज वर्जित है यहां चम्‍पावत से पैदल जाया जाता है मोटर सडक चम्‍पावत खेतीखान से 2 किमी की दूरी पर है स्‍थान बडा ही रमणीय है

व्‍यानधुरा

आस्‍था का केन्‍द्र व्‍यानधुरा विभिन्‍न प्रकार के वन्‍य जन्‍तुओं से भी भरा पूरा है यह मंदिर मनोहारी प्राक़तिक सौन्‍दर्य से भरपूर्व है तथा टनकपुर से 25 कि,मी दूर अवस्थित है इस मंदिर की बनावट अन्‍य मंदिरो से भिन्‍न है जिसमें छत और कलश नहीं है इसमें धनुश वाण, ि‍त्रशूल इकठठे है ऐडी को अर्जन का अवतार तथा व्‍यान को धर्मराज युधिष्टिर का अवतार मानते है मान्‍यताहै कि पांडव की तपोभूमि होने से भगवती व्‍यान, देव ,ऐडी ने तुर्क आक़मणकारी को जिसे माल का भराडा कहते है को रोका पांडवो ने व्‍यानधुरा में अज्ञातवास के समय भगवती की आराधना की ओर अस्‍त्र् शस्‍त्रों को इसी स्‍थान पर छिपाया भीम ने कीचक का वद्य भी इसी क्षेत्र् मे किया था दस क्षेत्र् में मुगल कालीन लेख भी मिला है एडी व व्‍यान राजांशी देव के रूप में पूजयनीय है और न्‍याय केप्रतीक माने जाते है इसकी कई शाखायें है एक शाखा चम्‍पावत से 3 किमी, चम्‍पावत ललुवापानी मोटर मार्ग से मात्र् 1.50 किमी पर है तथा एक अन्‍य शाखा गहतोडा फटक्‍ शिला के नाम से सेन धुरा में अवस्थित है इन मंदिरों में पशु बलि वर्जित है जन मानस में ऐडी व्‍यानधुरा की महीमा बहुत है

गोरखनाथ

गुरू गोरखनाथ की तप स्‍थली, आध्‍यात्मिक शांति पीठ प्राक़तिक सौन्‍दर्य से भरपूर्व पर्वत के शिखर पर स्थित है चारों तरफ हरितिमा लिए चारागाह तथा वन्‍य जीव जन्‍तुओं की शरण स्‍थली आने वाले यात्रि‍यों के लिए एक अदभुत वैकुण्‍ड धाम प्रतित होती है यहां वन्‍य जीव जन्‍तुओं को स्‍वछन्‍द विचरण करते देखा जा सकता है यहॉं पर भगवान गोरखनाथ की धूनी हमेशा जलती रहती है इसी राख का प्रसाद श्रद्वालुओं को दिया जाता है प्राचीन जल कुण्‍ड बने है जो वर्षाती पानी से भरे रहते हैं य‍ह क्षेत्र् चम्‍पावत से 45 कि.मी. की दूरी पर मोटर मार्ग से मात्र् 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित है

हरेश्‍वर महादेव

चम्‍पावत से पूर्व की ओर चम्‍पावत- तामली मोटर मार्ग के मौन पोखरी स्‍थान से 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है यहां पर महादेव भगवान शिव का मन्दिर है मान्‍यता के अनुसार ये बडे न्‍याय प्रिय देवता हैं यहां स्‍टाम्‍पयुक्‍त अजियों टंगी रहती है शिवालय व धमैशला बनी हैं

मल्‍लाणेश्‍वर

यह स्‍थान चम्‍पावत से 12 कि.मी. दूरी पूर्व की तरफ देवदार बनी के बीच नदी के किनारे चम्‍पावत- तामली मोटर मार्ग में बसा है मान्‍यता के अनुसार यह भी न्‍याय के लिए प्रसिद्व देव हैं यहॉं पर नहाने आदि का सुन्दर स्‍थान व व्‍यवस्‍था है

अखिलतारणी

यह उपशक्ति पीठ है घने हरे देवदार बनी के बीच में भव्‍य प्राचीन मन्दिर व धर्मशला बनी है मान्‍यता के अनुसार यहॉं पांडवों ने घटोत्‍कच के सिर को प्राप्‍त करने के लिए मां भगवती की प्रार्थना की थी यहां श्रावण मास के संक्रान्ति को मेला लगता है यह चम्‍पावत से पैदल मार्ग 8 मिल की दूरी पर स्थित है

चमू देवता

काली नदी के पश्चिम तट से मिला हुआ क्षेत्र् पूर्व काल से गुमदेश के नाम से जाना जाता है यह मंदिर अखिल तारिणी पर्वत श्रंखला के पूर्व भाग में स्थित है, जो चमू देवता के रूप में प्रसिद्व है कथानक है की पूर्वकाल में एक दैत्‍य बारी-बारी से रोज एक आदमी को खाता था एक व़द्वा की प्रार्थना पर देवता ने इस दैत्‍य को मार गिराया तब से यह मेला देवता के प्रति आभार प्रकट करने के लिए चैत्र् मास की दशमी तिथि को बडी धूमधाम से मानाया जाता है एक डोले को सारे गांवों मुहल्‍लों से घुमाते हुए चमू देवता के मन्दिर में लाया जाता है और पूजा अर्चना की जाती है

झूमा देवी

यह चम्‍पावत के उत्‍तर में लोहाघाट श‍हर से करीब 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है मां भगवती का भव्‍य मंदिर पर्वत शखिर पर बना है








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