रविवार, 2 नवंबर 2008

हर हर महादेव...

"गौरीपति कामारि शिव भूतनाथ गिरिजेश
शंकर भव कैलाशपति महादेव रुद्रेश"
~-:0:-~

जय जय शम्भु जय महाज्ञानी, जय शंकर त्रिपुरारी
हम बालक अज्ञानी....
हम बालक अज्ञानी शम्भु, विपदा हरो हमारी
विपदा हरो हमारी भोले, रक्षा करो हमारी
जय शम्भु.....................

नहीं नीर है नहीं क्षीर है,
नहीं नीर है नहीं क्षीर है, नहीं बेल-पत्र है
आँखों में खारा पानी है और उर में हर हर है
हम सक्षम नहीं भोग लगायें..
हम सक्षम नहीं भोग लगायें, समझो प्रभु लाचारी
जय........................

नहीं चाहिये गंगा जी सा,
नहीं चाहिये गंगा जी सा, केशों में उलझाओ
नहीं चाहिये हमें मयंक सम मस्तक आप सजाओ
अपने चरणों में गिरिवासी..
अपने चरणों में गिरिवासी, रखलो जगह हमारी
जय........................

आप ही कर्ता आप ही हर्ता,
आप ही कर्ता आप ही हर्ता,आप ही जग पालक हैं
कृपादृष्टि बनाये रखना, हम पर हम बालक हैं
नहीं जानते विधि पूजा की..
नहीं जानते विधि पूजा की, हम नादान पुजारी
जय........................

भक्तों के दुःख दूर किये हैं,
भक्तों के दुःख दूर किये हैं, तरह तरह से आकर
बने केसरी भक्तों के हित, लंका रखी जलाकर
तारकासुर को मारा भोले..
तारकासुर को मारा भोले, हे भव भय दुःख हारी
जय........................

दूर करो त्रिशूल घुमाकर,
दूर करो त्रिशूल घुमाकर, शूल सभी जीवन के
हे नीलकण्ठ विष पी लो फिर से मानव अंतर्मन के
हे महादेव देवादिदेव हे..
हे महादेव देवादिदेव हे, अंग भभूति धारी
जय........................

साभार

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