देवी पार्वती-
यह शिव की शक्ति हैं। शिव की अनाम शक्ति ही अलग-अलग नाम धारण करती है। लक्ष्मी से लेकर राधा तक, सब शिव की शक्तियां ही हैं। पार्वती पूर्वजन्म में सती थीं। वह शिव की प्रेरणा हैं। शिव भोले हैं, पार्वती उनकी बुद्धिशक्ति हैं। वह शिव को जगाने का साहस करती है। पार्वती का वाहन सिंह है, जो शिव द्वारा ही दिया गया है। पार्वती को शिव, उमा या गौरी नाम से बुलाते हैं।
पुत्र गणोश-
गणोश का सिर काटकर शिव ने हाथी का सिर लगा दिया था, बाद में वरदान स्वरूप अपने गणों का मुखिया बना दिया। गणोश शिव की क्षुधा यानी भूख शक्ति हैं। शिव ख़ुद आहार नहीं लेते, बल्कि गणोश खाते हैं। जितना खाते हैं, सब महादेव के पेट में जाता है, लेकिन पेट गणोश का बड़ा होता है। यानी शिव गणोश से लेकर भी नहीं लेते। रस ले लेते हैं, बाक़ी गणोश को दे देते हैं। गणोश को उन्होंने बुद्धि, शौर्य और बोलने-सुनने की शक्ति दी है। इसी शक्ति के कारण गणोश व्यास से सुन-सुनकर उतनी ही गति से महाभारत को लिख सके। गणोश की पत्नी ऋद्धि और सिद्धि हैं, इनके दो पुत्र हैं क्षेम और लाभ। ऋद्धि के कारण दुनिया में बुद्धि का प्रसार हुआ, सिद्धि ने साधना का प्रसार किया। बेटे क्षेम के कारण लोग कुशलता से रहना सीख पाए और लाभ ने सफलता के भाव का प्रसार किया।
बेटा कार्तिकेय-
कार्तिकेय दया और कृपा के देव हैं। शिव जगत के प्रति अपना प्रेम इन्हीं के ज़रिए व्यक्त करते हैं। दक्षिण भारत में कार्तिकेय की विशेष पूजा होती हैं। शिव ने जैसे रावण के भाई कुबेर को उत्तर भारत का संपत्ति-राज्य सौंपा था, उसी तरह कार्तिकेय को दक्षिण भारत का। दक्षिण दिशा में निवास करने वालों को संपन्नता के लिए कार्तिकेय की आराधना करनी चाहिए। उत्तर में कुबेर की आराधना होती है, किंतु देवरूप में नहीं, क्योंकि कुबेर मात्र क्षेत्रपाल हैं, देव नहीं। वह असुर योनि के हैं। कार्तिकेय का वाहन है मयूर और पत्नी हैं देवसेना, जो देवताओं की पूरी सेना को नियंत्रित करती हैं। यह भी शिव की एक अव्यक्त शक्ति ही हैं।
गणसेना- शिव अपने गणों से बहुत प्रेम करते हैं। ये गण साधारण नहीं, बल्कि बहुत डरावने हैं। शिव के साथ 11 रुद्र, 11 रुद्रिणियां, चौंसठ योगिनियां, अनगिनत मातृकाएं व 108 भैरव हैं। इस सेना के अध्यक्ष वीरभद्र हैं, जिनके पास अनगिनत रुद्र हैं। कालिकापुराण के अनुसार सीधे शिवराज से वार्ता करने वाले 36 करोड़ प्रमथगण उनकी सेना में हैं। शिव के पार्षदों व क्षेत्रपालों में प्रमुख हैं-बाण, रावण, चंडी, रिटि, भृंगी, लाटा, गोरिल और विजया, जो कि माता पार्वती की ख़ास सखी हैं। शिव के प्रमुख द्वाररक्षक हैं कीर्तिमुख।
बाल गणोश ने सिर कटने से पहले इन्हीं के साथ युद्ध किया था। शिव और शक्ति को अलग मानने वाले ध्यान दें कि आदिशक्ति महादेवी दुर्गा, जिन्हें चंडिका, काली, गढ़देवी, त्रिपुरसुंदरी, अंबा जैसे कई नामों से जाना जाता है, की सेना भी यही है। मात्र एक अंतर है- शिव अपने सेनाध्यक्ष को वीरभद्र के नाम से पुकारते हैं, जबकि आदिशक्ति अपने सेनाध्यक्ष को कालभैरव नाम से। वीरभद्र और कालभैरव एक ही हैं। दोनों शिव के ही लीलावतार हैं। यह भी ध्यान देने लायक़ बात है कि शिव ही वह एकमात्र देव हैं, जिनकी सेना में स्त्री की भी जगह है। योगिनियां और मातृकाएं शिव की स्त्री-शक्ति में विश्वास का ही प्रतीक है।
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