सोमवार, 18 जुलाई 2011

सबसे ऊँचा शिव मंदिर ( बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का विश्वनाथ मंदिर)

भारत का सबसे ऊँचा (करीब 252 फुट) शिव मंदिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मध्य में स्थित श्री विश्वनाथ मंदिर है। मंदिर का शिखर दक्षिण भारत के तंजावुर स्थित वृहदेश्वर मंदिर की ऊँचाई से ज्यादा है। इसमें मुख्य शिखर के अलावा दो अन्य शिखर भी हैं। मंदिर की अंदर की दीवारों पर श्रीमद्भगवतगीता के श्लोक अंकित हैं।

इसके अलावा दीवारों पर संतों के अनमोल वचन भी संगमरमर पर उकेरे गए हैं। मंदिर के दोनों तरफ खूबसूरत मूर्तियाँ बनी हैं। मंदिर तथा आस-पास का परिसर इतना सुंदर है कि फिल्म बनाने वाले भी यहाँ आकर्षित होते हैं। हरे-भरे आमों के पेड़ मंदिर की शोभा में चार चाँद लगाते हैं। कई फिल्मों की यहाँ पर शूटिंग भी हो चुकी है। मंदिर की साफ-सफाई इतनी अच्छी है कि कहीं पर एक तिनका नजर नहीं आता। इस मंदिर को अगर हिंदू विश्वविद्यालय का आध्यात्मिक केंद्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

यहाँ बाबा भोलेनाथ की आरती में इलेक्ट्रॉनिक घंटा-घड़ियाल लयबद्ध ताल में गूँजते हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय की कल्पना की परिणति है यह भव्य और अलौकिक सौंदर्य से भरा मंदिर। मंदिर के चढ़ावे से विश्वविद्यालय के 22 छात्रों को 'अन्न सुख' भी मिलता है।

मदनमोहन मालवीय की मंशा के अनुरूप इसे आकार देने का श्रेय उद्योगपति युगल किशोर बिरला को जाता है। मंदिर का शिलान्यास 11 मार्च 1931 को हुआ और 17 फरवरी 1958 को महाशिवरात्रि पर मंदिर के गर्भगृह में भगवान विश्वनाथ प्रतिष्ठित हुए। जीवन के अंतिम समय में बिस्तर पर पड़े मदनमोहन मालवीय की आँखें नम देख जाने-माने उद्योगपति युगल किशोर बिरला ने मंदिर के बारे में पूछा तो वे मौन रहे।

मदनमोहन मालवीय को मौन देख बिरला बोले, आप मंदिर के बारे में चिंता न करें, मैं वचन देता हूँ कि पूरी तत्परता के साथ मंदिर के निर्माण कार्य में लगूँगा। तब मदनमोहन मालवीय निश्चिंत हुए और कुछ दिन बाद ही उनका देहाँत हो गया। मंदिर की अन्नदान योजना के तहत अभी 22 छात्रों और कुलपति के विवेकाधीन कोष से 16 छात्रों को भोजन कराया जाता है। मंदिर के कोष से इसका रख-रखाव होता है। विश्वविद्यालय की ओर से यहाँ छह पुजारी, तीन चौकीदार, दो गायक, एक तबला वादक, एक अधिकारी समेत अन्य कर्मचारी मंदिर की देखरेख एवं सेवा में तैनात हैं।

वैसे तो मंदिर में बाबा का दर्शन करने वाले हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं लेकिन सावन के महीने में भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। मंदिर में लगी देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियों का दर्शन कर लोग जहाँ अपने को कृतार्थ करते हैं वहीं मंदिर के आस-पास आम कुंजों की हरियाली एवं मोरों की 'पीकों' की आवाज से भक्त भावविभोर हो जाते हैं।

पूरे सावन माह और माह के प्रत्येक सोमवार को देश-विदेश से श्रद्धालु यहाँ भक्तिभाव से जुटते हैं। मंदिर के मानद व्यवस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित चंद्रमौलि उपाध्याय के अनुसार इस भव्य मंदिर के शिखर की सर्वोच्चता के साथ ही यहाँ का आध्यात्मिक, धार्मिक, पर्यावरणीय माहौल दुनिया भर के आस्थावान श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। खासकर युवा पीढ़ी के लिए यह मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र बन चुका है, जहाँ उनके जीवन में सात्विक मूल्यों का बीजारोपण होता है।

सोमवार, 23 मई 2011

अमरौल का पौराणिक शिव मंदिर


अनुविभाग डबरा की उप तहसील आंतरी के अंतर्गत आने वाले अमरौल गाँव से एक किलोमीटर दूर पुरा संपदा का बेशकीमती खजाना दबा और बिखरा पड़ा है, जिसे पुरातत्व विभाग ने अपने आधिपत्य में लेकर उसकी देखरेख के लिए चार चौकीदार तैनात कर रखे हैं, जो दिन-रात उस पुरा संपदा की देखभाल करते हैं। इसके अलावा पुरातत्व विभाग द्वारा उतने एरिया को चारो तरफ से तारफैंसी कर दिया है।

अमरौल गाँव से एक किलोमीटर दूर पर स्थित रामेश्वर मंदिर है। इसे पौराणिक महत्व का शिव मंदिर भी कहा जाता है, जिसकी बनावट विश्व प्रसिद्ध खुजराहो के विश्व प्रसिद्ध कंदरिया महादेव से मिलती-जुलती है। इसलिए इसे रामेश्वर कहाँ जाता है। इस मंदिर के आस-पास चार शिवलिंग स्थापित है और मंदिर के अंदर-बाहर कई खंडित मूर्तियाँ और तमाम खुले सिंहासन पड़े हुए हैं, रामेश्वर मंदिर के आस-पास चार शिवलिंग है, जिनका अपना-अपना विशेष महत्व और स्थान है।

मंदिर के पीछे स्थित 6 फुट, मंदिर के पास दो फुट, मंदिर के सामने साढ़े तीन फुट, मंदिर के मुख्य मार्ग के बीचो-बीच साढ़े चार फुट का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के पीछे स्थित 6 फुट का शिवलिंग है, जो जलधारी नहीं है। इसे हटाने और उठाने के अनेक प्रयास किए गए पर कोई सफलता नहीं मिली।

क्षेत्र के लोगों की ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग प्रतिवर्ष शिवरात्रि के दिन एक चावल के बराबर बढ़ जाता है। इसी तरह मंदिर पर तैनात चौकीदार रूपसिंह कुशवाह, कल्याण सिंह रावत, महेश शुक्ला, सतेंद्र पांडे का कहना है कि रामेश्वर मंदिर के मुख्य मार्ग के बीचो-बीच साढ़े तीन फुट के शिवलिंग को कोई भी मुख्य मार्ग से हटा नहीं सका। इसे हटाने के तमाम जतन किए गए, लेकिन शिवलिंग अपने स्थान से टस से मस तक नहीं हुआ।

ऐसे ही मंदिर के सामने साढ़े चार फुट का शिवलिंग कुछ समय पूर्व ही खुदाई के दौरान निकला है, जिसे देखकर गाँव वाले आश्चर्यचकित रह गए। गाँव वालों का कहना है कि यहाँ आए दिन इस तरह की मूर्तियाँ जमीन से निकल जाती हैं, जिसके चलते इस मंदिर की आसपास की जमीन खुदाई पर पुरातत्व विभाग ने पूरी तरह से रोक लगा दी है।

अमरौल गाँव के रामेश्वर मंदिर परिसर में अपार पुरा संपदा जमीन में दबी हुई है, जिनमें से कभी भी, कहीं भी, कोई न कोई मूर्ति अपने आप ऊपर आ जाती है। गाँव वालों की मानें तो उनका कहना है कि मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर बरसात के दौरान मिट्टी बहने लगी और मिट्टी के बहने के बाद जमीन में दबी माता की मूर्ति दिखाई देने लगी। जमीन से निकली माता की मूर्ति को गाँव वालों ने इसलिए बाहर नहीं निकाला क्योंकि वहाँ पुरातत्व विभाग के चौकीदार तैनात थे।

अमरौल गाँव के रामेश्वर मंदिर पर महाशिवरात्रि पर्व पर भारी संख्या मे शिवभक्त काँवर चढ़ाने के लिए दूर-दूर से आते हैं और आस-पास के ग्रामीणजन भी इस दिन काफी संख्या में दर्शन करने भी आते हैं।

यह मंदिर अद्भुत और चमत्कारिक भी है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के चारों तरफ शिवलिंग स्थापित है। सावन के माह में शिवभक्तों की रामेश्वर मंदिर में अच्छी-खासी भीड़ दिखाई देती है।

सोमवार के दिन तो गाँव के अलावा आसपास गाँव के लोग भी मंदिर के आस-पास स्थापित शिवलिंगों की पूजा विशेष तौर पर करने आते हैं, लेकिन पुरा संपदा और बेशकीमती खजाने का यह रामेश्वर मंदिर का आज तक पुरातत्व विभाग उद्धार नहीं कर सका। अगर पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान दें तो निश्चित तौर पर यह मंदिर तीर्थ स्थल बन सकता है।
सौजन्य से - नईदुनिया

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

सावन क्यों है भक्ति और अध्ययन का महीना

सावन माह में शिवभक्तों द्वारा की जाने वाली भगवान शिव की आराधना, पूजा, जयकारे और धार्मिक आयोजन ऐसा शिवमय वातावरण बना देते हैं कि उसके प्रभाव से ईश भक्ति से दूर रहने वाले लोगों के मन भी शिवभक्ति और श्रद्धा की लहर पैदा हो जाती है। इससे यही प्रश्र हर धर्मजन के मन में पैदा होता है कि आखिर श्रावण मास और शिव भक्ति का क्या संबंध है और इस मास में शिव उपासना का इतना अधिक महत्व क्यों है। इस बात का उत्तर हिन्दू धर्म ग्रंथ ऋग्वेद में बताया गया है।
वेदों में प्रकृति और मानव का गहरा संबंध बताया गया है। वेदों में लिखें कुछ मंत्रों का संदेश कुछ इस प्रकार है - बारिश में ब्राह्मण वेद पाठ और धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और इस दौरान वह ऐसे मंत्रों को पढ़ते हैं, जो सुख और शांति देने वाले होते हैं। बारिश के मौसम में अनेक तरह के जीव-जंतु बाहर निकल आते है और तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती है। ऐसा लगता है कि जैसे लंबे समय तक व्रत रखकर सभी ने अपनी चुप्पी तोड़ी हो। इस बात के द्वारा संदेश दिया गया है कि जिस तरह जीव-जंतु बारिश के मौसम में बोलने लगते हैं, उसी तरह से हर व्यक्ति को श्रावण से शुरु होने वाले चार मासों में धर्म और ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म ग्रंथों का पाठ करना या सुनना चाहिए। इसी प्रकार बारिश या सावन मास में अनेक प्रकार के पौधे पैदा होते हैं, जो औषधीय गुणों के होते हैं।
यह हमारी आयु और शरीर सुखों को बढ़ाते हैं। धार्मिक दृष्टि से पूरी प्रकृति ही शिव का रुप है। इसलिए प्रकृति की पूजा के रुप में सावन मास में शिव की पूजा की जाती है। खास तौर पर वर्षा के मौसम जल तत्व की अधिकता होती है। इसलिए शिव का जल से अभिषेक सुख, समृद्धि, संतान, धन, ज्ञान और लंबी उम्र देने वाला होता है।

सोमवार, 9 अगस्त 2010

क्यों रखें सोमवार व्रत?

सावन में सोमवार व्रत रखने का महत्व बताया गया है। सामान्यत: यह शिव उपासना के लिए प्रसिद्ध है। किंतु ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से यह दिन कुण्डली में चंद्र ग्रह के बुरे योग से जीवन में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। जानते हैं कैसे चंद्र मानव जीवन और प्रकृति पर असर डालता है और चंद्र के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए सोमवार को चंद्र पूजा और व्रत का महत्व।
हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी सहित अन्य सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते हैं। पर चन्द्रमा तो हमारी पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं, क्योंकि वह ग्रह न होकर एक उपग्रह है। यह विज्ञान की बात है। किंतु व्यावहारिक जीवन में भी हम देखते हैं कि चन्द्रमा मानव जीवन के साथ-साथ साथ-साथ पूरे जगत पर ही प्रभाव डालता है। इसका प्रमाण है पूर्णिमा लगती है।
इसलिए ज्योतिष विज्ञान कहता है कि चन्द्रमा हमारी पृथ्वी के सबसे अधिक समीप है और अपनी निकटता के कारण ही हमारे जीवन के हर कार्य व्यवहार पर सबसे अधिक असर डालता है। यही कारण है कि जिन लोगों में जल तत्व की प्रधानता होती है। वह पूर्णिमा के आस-पास अधिक क्रोधित और उद्दण्ड बने रहते हैं। जबकि अमावस्या के आस-पास एकदम शांत और गंभीर देखे जाते हैं। यही कारण है कि खासतौर पर जलतत्व राशि जैसे मीन, कर्क, वृश्चिक वाले स्त्री-पुरुषों को सोमवार का व्रत और चन्द्रदेव का पूजन तो जरुर करना ही चाहिए।
मानसिक शांति, मन की चंचलता को रोकने और दिमाग को संतुलित रखने के लिए तो चन्द्रदेव के निमित्त किए जाने वाला सोमवार का व्रत ही श्रेष्ठ उपाय है। चंद्रदोष शांत के लिए स्फटिक की माला पहनना तथा मोती का धारण करना शुभ होता है।

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

शिवभक्ति को समर्पित है सावन माह


सावन माह में कांवड़ मेला शुरू होने जा रहा है, यानी आशुतोष की ससुराल में शिव की भक्ति की धुन रमने जा रही है। सावन माह में कई और भी व्रत-त्योहार आते हैं, जिनका अपना अलग-अलग महत्व है। कृष्ण पक्ष में ही दस व्रत-त्योहारों का योग बन रहा है।
साल का सावन माह शिव भक्ति व पूजा के नाम होता है। शिवालयों में शिवभक्तों की आस्था का सैलाब उमड़ता है और शिवलिंग का जलाभिषेक कर मनौतियां मांगी जाती हैं। दूध, घृत, पंचामृत भी शिवालयों में चढ़ाया जाता है। शिवभक्त धतूरा व बेलपत्र चढ़ाकर भी मनौतियां मांगते हैं। शिवभक्त ओम नम: शिवाय पंक्षाक्षर का जाप कर शिव की पूजा करते हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार 27 जुलाई मंगलवार को प्रात: 9 बजकर आठ मिनट से सावन माह शुरू हो जाएगा। खास बात यह कि इस सावन माह में पांच सोमवार आ रहे हैं। शिव पुराण के अनुसार सावन माह के सोमवार को शिवालय में बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान के बराबर फल मिलता है। सावन माह शुरू होते ही 29 जुलाई गुरुवार को श्री गणेश चतुर्थी व्रत आ रहा है। इसमें सुहागन पुत्र प्राप्ति के लिए गणेश भगवान का व्रत रखती हैं, जबकि 3 अगस्त सोमवार को कालाष्टमी व्रत है। इसमें मां दुर्गा का व्रत लिया जाता है। 4 अगस्त को कौमारी नवमी पूजा का योग है। इस दिन कन्याओं का पूजन किया जाता है। इसके बाद 7 अगस्त को प्रदोष व्रत है। इसमें शिव-पार्वती का व्रत किया जाता है। 8 अगस्त को मास शिवरात्रि व्रत है। यह व्रत हर माह आता है, लेकिन सावन माह में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। हर महीने का यह दिन शिव पूजा के नाम रहता है। 9 अगस्त को पितृकार्य अमावस्या आ रही है, जबकि 10 अगस्त को देवकार्य अमावस्या भी है। इसके अलावा शुक्ल पक्ष की शुरुआत में ही 14 अगस्त को नाग पंचमी है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विष्णु भगवान ने कल्कि अवतार लिया था, जिसे सत्यनारायण जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन अमरनाथ यात्रा का शुभारंभ होगा।

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

सावन माह में सोमवार का महत्व

श्रावण माह में भी सोमवार का विशेष महत्व है। वार प्रवृत्ति के अनुसार सोमवार भी हिमांषु अर्थात चन्द्रमा का ही दिन है। स्थूल रूप में अभिलक्षणा विधि से भी यदि देखा जाए तो चन्द्रमा की पूजा भी स्वयं भगवान शिव को स्वतः ही प्राप्त हो जाती है क्योंकि चन्द्रमा का निवास भी भुजंग भूषण भगवान शिव का सिर ही है।

रौद्र रूप धारी देवाधिदेव महादेव भस्माच्छादित देह वाले भूतभावन भगवान शिव जो तप-जप तथा पूजा आदि से प्रसन्न होकर भस्मासुर को ऐसा वरदान दे सकते हैं कि वह उन्हीं के लिए प्राणघातक बन गया, वह प्रसन्न होकर किसको क्या नहीं दे सकते हैं?

असुर कुलोत्पन्न कुछ यवनाचारी कहते हुए नजर आते हैं कि जो स्वयं भिखमंगा है वह दूसरों को क्या दे सकता है? किन्तु संभवतः उसे या उन्हें यह नहीं मालूम कि किसी भी देहधारी का जीवन यदि है तो वह उन्हीं दयालु शिव की दया के कारण है। अन्यथा समुद्र से निकला हलाहल पता नहीं कब का शरीरधारियों को जलाकर भस्म कर देता किन्तु दया निधान शिव ने उस अति उग्र विष को अपने कण्ठ में धारण कर समस्त जीव समुदाय की रक्षा की। उग्र आतप वाले अत्यंत भयंकर विष को अपने कण्ठ में धारण करके समस्त जगत की रक्षा के लिए उस विष को लेकर हिमाच्छादित हिमालय की पर्वत श्रृंखला में अपने निवास स्थान कैलाश को चले गए।

हलाहल विष से संयुक्त साक्षात मृत्यु स्वरूप भगवान शिव यदि समस्त जगत को जीवन प्रदान कर सकते हैं। यहाँ तक कि अपने जीवन तक को दाँव पर लगा सकते हैं तो उनके लिए और क्या अदेय ही रह जाता है? सांसारिक प्राणियों को इस विष का जरा भी आतप न पहुँचे इसको ध्यान में रखते हुए वे स्वयं बर्फीली चोटियों पर निवास करते हैं। विष की उग्रता को कम करने के लिए साथ में अन्य उपकारार्थ अपने सिर पर शीतल अमृतमयी जल किन्तु उग्रधारा वाली नदी गंगा को धारण कर रखा है।

उस विष की उग्रता को कम करने के लिए अत्यंत ठंडी तासीर वाले हिमांशु अर्थात चन्द्रमा को धारण कर रखा है। और श्रावण मास आते-आते प्रचण्ड रश्मि-पुंज युक्त सूर्य ( वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ में किरणें उग्र आतपयुक्त होती हैं।) को भी अपने आगोश में शीतलता प्रदान करने लगते हैं। भगवान सूर्य और शिव की एकात्मकता का बहुत ही अच्छा निरूपण शिव पुराण की वायवीय संहिता में किया गया है। यथा-

'दिवाकरो महेशस्यमूर्तिर्दीप्त सुमण्डलः।
निर्गुणो गुणसंकीर्णस्तथैव गुणकेवलः।
अविकारात्मकष्चाद्य एकः सामान्यविक्रियः।
असाधारणकर्मा च सृष्टिस्थितिलयक्रमात्‌। एवं त्रिधा चतुर्द्धा च विभक्तः पंचधा पुनः।
चतुर्थावरणे षम्भोः पूजिताष्चनुगैः सह। शिवप्रियः शिवासक्तः शिवपादार्चने रतः।
सत्कृत्य शिवयोराज्ञां स मे दिषतु मंगलम्‌।'

अर्थात् भगवान सूर्य महेश्वर की मूर्ति हैं, उनका सुन्दर मण्डल दीप्तिमान है, वे निर्गुण होते हुए भी कल्याण मय गुणों से युक्त हैं, केवल सुणरूप हैं, निर्विकार, सबके आदि कारण और एकमात्र (अद्वितीय) हैं।

यह सामान्य जगत उन्हीं की सृष्टि है, सृष्टि, पालन और संहार के क्रम से उनके कर्म असाधारण हैं, इस तरह वे तीन, चार और पाँच रूपों में विभक्त हैं, भगवान शिव के चौथे आवरण में अनुचरों सहित उनकी पूजा हुई है, वे शिव के प्रिय, शिव में ही आशक्त तथा शिव के चरणारविन्दों की अर्चना में तत्पर हैं, ऐसे सूर्यदेव शिवा और शिव की आज्ञा का सत्कार करके मुझे मंगल प्रदान करें। तो ऐसे महान पावन सूर्य-शिव समागम वाले श्रावण माह में भगवान शिव की अल्प पूजा भी अमोघ पुण्य प्रदान करने वाली है तो इसमें आश्चर्य कैसा?

जैसा कि स्पष्ट है कि भगवान शिव पत्र-पुष्पादि से ही प्रसन्न हो जाते हैं। तो यदि थोड़ी सी विशेष पूजा का सहारा लिया जाए तो अवश्य ही भोलेनाथ की अमोघ कृपा प्राप्त की जा सकती है। शनि की दशान्तर्दशा अथवा साढ़ेसाती से छुटकारा प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में शिव पूजन से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ उपाय हो ही नहीं सकता है।

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना

यह कथा उस समय की है जब लंका जाने के लिए भगवान श्रीराम ने सेतु निर्माण के पूर्व समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित किया था। वहाँ हनुमानजी को स्वयं पर अभिमान हो गया तब भगवान राम ने उनके अहंकार का नाश किया। यह कहानी इस प्रकार है-
जब समुद्र पर पुल-निर्माण का कार्य हो रहा था तब भगवान राम ने वहाँ गणेशजी और नौ ग्रहों की स्थापना के पश्चात शिवलिंग स्थापित करने का विचार किया। उन्होंने शुभ मुहूर्त में शिवलिंग लाने के लिए हनुमानजी को काशी भेजा।
हनुमानजी पवन की रफ्तार से काशी जा पहुँचे। उन्हें देख भोलेनाथ बोले- ''पवनपुत्र!" दक्षिण में शिवलिंग की स्थापना करके भगवान राम मेरी ही इच्छा पूर्ण कर रहे हैं क्योंकि महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल पर्वत को झुकाकर वहाँ प्रस्थान तो कर गए लेकिन वे मेरी प्रतीक्षा में हैं। इसलिए मुझे भी वहाँ जाना था। तुम शीघ्र ही मेरे प्रतीक को वहाँ ले जाओ।
यह बात सुनकर हनुमान गर्व से फूल गए और सोचने लगे कि केवल वे ही यह कार्य शीघ्र-अतिशीघ्र कर सकते हैं। यहाँ हनुमानजी को अभिमान हुआ और वहाँ भगवान राम ने उनके मन के भाव को जान लिया। भक्त के कल्याण के लिए भगवान सदैव तत्पर रहते हैं।
हनुमान भी अहंकार के बंधन में बंध गए थे। अत: भगवान राम ने उन पर कृपा करने का निश्चय कर उसी समय वानर राज सुग्रीव को बुलवाया और कहा-हे कपिश्रेष्ठ! शुभ मुहूर्त समाप्त होने वाला है और अभी तक हनुमान नहीं पहुँचे। इसलिए मैं बालू का शिवलिंग बनाकर उसे यहाँ स्थापित कर देता हूँ।
तत्पश्चात उन्होंने सभी ऋषि-मुनियों से आज्ञा प्राप्त करके पूजा-अर्चना आदि की और बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। ऋषि-मुनियों को दक्षिणा देने के लिए श्रीराम ने कौस्तुम मणि का स्मरण किया तो वह मणि उनके समक्ष उपस्थित हो गई।
भगवान श्रीराम ने उसे गले में धारण किया। मणि के प्रभाव से देखते-ही-देखते वहाँ दान-दक्षिणा के लिए धन, अन्न, वस्त्र आदि एकत्रित हो गए। उन्होंने ऋषि-मुनियों को भेंट दीं। फिर ऋषि-मुनि वहाँ से चले गए।
मार्ग में हनुमानजी से उनकी भेंट हुई। हनुमानजी ने पूछा कि वे कहाँ से आ रहे हैं? उन्होंने सारी घटना बता दी। यह सुनकर हनुमानजी को क्रोध आ गया। वे पलक झपकते ही श्रीराम के समक्ष उपस्थिति हुए और रुष्ट स्वर में बोले-भगवन! यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था तो मुझे काशी किसलिए भेजा था? आपने मेरा और मेरे भक्तिभाव का उपहास किया है।
श्रीराम मुस्कराते हुए बोले-पवनपुत्र! शुभ मुहूर्त समाप्त हो रहा था, इसलिए मैंने बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। मैं तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। मैंने जो शिवलिंग स्थापित किया है तुम उसे उखाड़ दो, मैं तुम्हारे लाए हुए शिवलिंग को यहाँ स्थापित कर देता हूँ। हनुमान प्रसन्न होकर बोले-ठीक है भगवन! मैं अभी इस शिविलंग को उखाड़ फेंकता हूँ।
उन्होंने शिवलिंग को उखाडऩे का प्रयास किया, लेकिन पूरी शक्ति लगाकर भी वे उसे हिला तक न सके। तब उन्होंने उसे अपनी पूंछ से लपेटा और उखाडऩे का प्रयास किया। किंतु वह नहीं उखड़ा। अब हनुमान को स्वयं पर पश्चात्ताप होने लगा। उनका अहंकार चूर हो गया था और वे श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।
इस प्रकार हनुमान ने अहंकार का नाश हुआ। श्रीराम ने जहाँ बालू का शिवलिंग स्थापित किया था उसके उत्तर दिशा की ओर हनुमान द्वारा लाए शिवलिंग को स्थापित करते हुए कहा कि 'इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने के बाद मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करने पर ही भक्तजन पुण्य प्राप्त करेंगे।Ó यह शिवलिंग आज भी रामेश्वरम में स्थापित है और भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ है।