सोमवार, 23 मई 2011

अमरौल का पौराणिक शिव मंदिर


अनुविभाग डबरा की उप तहसील आंतरी के अंतर्गत आने वाले अमरौल गाँव से एक किलोमीटर दूर पुरा संपदा का बेशकीमती खजाना दबा और बिखरा पड़ा है, जिसे पुरातत्व विभाग ने अपने आधिपत्य में लेकर उसकी देखरेख के लिए चार चौकीदार तैनात कर रखे हैं, जो दिन-रात उस पुरा संपदा की देखभाल करते हैं। इसके अलावा पुरातत्व विभाग द्वारा उतने एरिया को चारो तरफ से तारफैंसी कर दिया है।

अमरौल गाँव से एक किलोमीटर दूर पर स्थित रामेश्वर मंदिर है। इसे पौराणिक महत्व का शिव मंदिर भी कहा जाता है, जिसकी बनावट विश्व प्रसिद्ध खुजराहो के विश्व प्रसिद्ध कंदरिया महादेव से मिलती-जुलती है। इसलिए इसे रामेश्वर कहाँ जाता है। इस मंदिर के आस-पास चार शिवलिंग स्थापित है और मंदिर के अंदर-बाहर कई खंडित मूर्तियाँ और तमाम खुले सिंहासन पड़े हुए हैं, रामेश्वर मंदिर के आस-पास चार शिवलिंग है, जिनका अपना-अपना विशेष महत्व और स्थान है।

मंदिर के पीछे स्थित 6 फुट, मंदिर के पास दो फुट, मंदिर के सामने साढ़े तीन फुट, मंदिर के मुख्य मार्ग के बीचो-बीच साढ़े चार फुट का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के पीछे स्थित 6 फुट का शिवलिंग है, जो जलधारी नहीं है। इसे हटाने और उठाने के अनेक प्रयास किए गए पर कोई सफलता नहीं मिली।

क्षेत्र के लोगों की ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग प्रतिवर्ष शिवरात्रि के दिन एक चावल के बराबर बढ़ जाता है। इसी तरह मंदिर पर तैनात चौकीदार रूपसिंह कुशवाह, कल्याण सिंह रावत, महेश शुक्ला, सतेंद्र पांडे का कहना है कि रामेश्वर मंदिर के मुख्य मार्ग के बीचो-बीच साढ़े तीन फुट के शिवलिंग को कोई भी मुख्य मार्ग से हटा नहीं सका। इसे हटाने के तमाम जतन किए गए, लेकिन शिवलिंग अपने स्थान से टस से मस तक नहीं हुआ।

ऐसे ही मंदिर के सामने साढ़े चार फुट का शिवलिंग कुछ समय पूर्व ही खुदाई के दौरान निकला है, जिसे देखकर गाँव वाले आश्चर्यचकित रह गए। गाँव वालों का कहना है कि यहाँ आए दिन इस तरह की मूर्तियाँ जमीन से निकल जाती हैं, जिसके चलते इस मंदिर की आसपास की जमीन खुदाई पर पुरातत्व विभाग ने पूरी तरह से रोक लगा दी है।

अमरौल गाँव के रामेश्वर मंदिर परिसर में अपार पुरा संपदा जमीन में दबी हुई है, जिनमें से कभी भी, कहीं भी, कोई न कोई मूर्ति अपने आप ऊपर आ जाती है। गाँव वालों की मानें तो उनका कहना है कि मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर बरसात के दौरान मिट्टी बहने लगी और मिट्टी के बहने के बाद जमीन में दबी माता की मूर्ति दिखाई देने लगी। जमीन से निकली माता की मूर्ति को गाँव वालों ने इसलिए बाहर नहीं निकाला क्योंकि वहाँ पुरातत्व विभाग के चौकीदार तैनात थे।

अमरौल गाँव के रामेश्वर मंदिर पर महाशिवरात्रि पर्व पर भारी संख्या मे शिवभक्त काँवर चढ़ाने के लिए दूर-दूर से आते हैं और आस-पास के ग्रामीणजन भी इस दिन काफी संख्या में दर्शन करने भी आते हैं।

यह मंदिर अद्भुत और चमत्कारिक भी है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के चारों तरफ शिवलिंग स्थापित है। सावन के माह में शिवभक्तों की रामेश्वर मंदिर में अच्छी-खासी भीड़ दिखाई देती है।

सोमवार के दिन तो गाँव के अलावा आसपास गाँव के लोग भी मंदिर के आस-पास स्थापित शिवलिंगों की पूजा विशेष तौर पर करने आते हैं, लेकिन पुरा संपदा और बेशकीमती खजाने का यह रामेश्वर मंदिर का आज तक पुरातत्व विभाग उद्धार नहीं कर सका। अगर पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान दें तो निश्चित तौर पर यह मंदिर तीर्थ स्थल बन सकता है।
सौजन्य से - नईदुनिया