रविवार, 4 जनवरी 2009

बासुकीनाथ धाम (दुमका)


बासुकीनाथ
दुमका-देवघर राजमार्ग पर दुमका जिला से उत्तर पश्चिम में लगभग 25 कि0मी0 की दूरी पर अवस्थित है।यह हिन्दुओं का बड़ा ही पवित्र तीर्थस्थल है जो बासुकीनाथ प्रखंड में पड़ता है। प्रतिवर्ष श्रावण मास में देश के विभिन्न प्रदेशों से लाखों श्रद्धालु आकर भगवान शिव को जल अर्पित कर पूजा करते हैं। यह तीर्थस्थल जसीडीह जंक्शन एवं जामताड़ा स्टेशन से रेल मार्ग से जुड़ा है। वायुमार्ग द्वारा राँची या कोलकाता हवाईअड्डा से भी यहाँ पहुँचा जा सकता है।
आकर्षण का केन्द्र मसानजोर

मयुराक्षी नदी पर निर्मित मसानजोर डैम और यहां आस पास का प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। झारखंड, बिहार और प.बंगाल सहित कई राज्यों से सैलानी यहां भ्रमण करने एवं पिकनिक के उद्देश्य से आते हैं। दुमका जिला मुख्यालय से 30 कि.मी. की दूरी पर मसानजोर, दुमका-कोलकता सड़क मार्ग पर पड़ता हैं। क्षेत्र में पनबिजली एवं सिंचाई के उद्देश्य से 1951 में कनाडा सरकार द्वारा निर्मित इस डैम का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के हाथों किया गया था। डैम बनने के बाद इस क्षेत्र के लोगों को बिजली एवं सिंचाई की सुविधा मिलती हैं।

बासुकीनाथ

हरे भरे जंगलों, अनगिनत छोटी-बड़ी पहाड़ियों से भरे झारखंड प्रांत के उप राजधानी दुमका से सटे जरमुंडी प्रखंड अंतर्गत बासुकीनाथ धाम भक्तों के बीच फौजदारी दरबार के रुप में प्रसिद्ध हैं। आम तौर पर सालों भर इस अदालत में विभिन्न प्रकार के कष्टों के निवारण एवं मंगल कामना के लिए भक्तों का ताँता लगा रहता हैं। लेकिन प्रत्येक वर्ष सावन माह में यह नगरी केसरीया चोलाधारी लाखों काँवरियों से केसरीया मय रहती हैं। यहां भारत के विभिन्न प्रांतों के अलावे पड़ोसी हिन्दू धर्मावलंबी देशों नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मारीशस के अलावे पश्चिम देशों से अप्रवासी भारतीय एवं अन्य धर्मों के भी लोग पहुंचते हैं। सावन मास में तो वसुधैव कुटुम्बकम, राष्ट्रीय एकता, प्रेम, सहिष्णुता, सहयोग, सदभाव की चरम स्थिति यहां दिखती हैं।

सुम्मेश्वरनाथ मंदिर में हैं। दुर्लभ शिवलिंग

दुमका जिले के सरैयाहाट प्रखंड मुख्यालय से 11 किमी दूर धौनी गांव स्थित बाबा सुम्मेश्वर नाथ मंदिर हैं। ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्वों को संजोये इस मंदिर में शिवलिंग की पूजा होती हैं। इस मंदिर की पौराणिक कहानी महाभारत काल से संबंधित है। यह स्थल अपने प्राकृतिक खूबसूरती में बसे होने के कारण श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। घने जंगल में बसे इस मंदिर से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य हैं। अति प्राचीन काल में यहां घनघोर जंगल में शुम्भ व निशुम्भ दो राक्षस भाईयों का वर्चस्व कायम था। दोनों ही शिवभक्त थे। दोनों भाईयों द्वारा ही यहां अलग- अलग शिवलिंग की स्थापना की गयी है। यह शिवलिंग आज भी जुड़वा शिवलिंग से जाना जाता है। यह पूरे देश में दुर्लभ शिवलिंग के नाम से प्रसिद्ध है।

शिव पहाड़ का नाग मंदिर

दुमका के शिव मंदिरों में शिवपहाड़ का एक विशेष ही महत्व हैं। शिवपहाड़ यहां के मनोरम स्थलों में भी एक विशेष स्थान रखता हैं। शहर के बीचो बीच स्थित पहाड़ के उपरी हिस्से में भगवान शिव का यह मंदिर लगभग सौ साल पुराना बताया जाता हैं। यहां सालों भर शिवभक्तों को बड़ी श्रद्धा के साश भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते देखा जाता है। भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए सावन महीने में खासकर सोमवार के दिन तो यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती हैं।

दुमका जिले के महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल

सिरसानाथ

सिरसानाथ दुमका से महज 15 किमी की दूरी पर बारापलासी के निकट मयूराक्षी नदी के किनीरे बसा है। यहां शिव-पार्वदी जी का मंदिर है। इस मंदिर का शिवलिंग जमीन के भीतर से सर्प के रुप में बनकर बाहर निकला हैं। यहां दुमका एवं आसपास क्षेत्रों से सैकड़ो श्रद्धालु पहुंचते है।

पंचवाहिनी

यह स्थान शिकारीपाड़ा प्रखंड़ मुख्यालय के निकट ब्राह्मणी नदी से सटे जंगल में स्थित है। यहां की विशेषता यह है कि यहां एक अति प्राचीन शिव मंदिर का अवशेष मिला है, जो देखने लायक है। मंदिर अर्धनिर्मित है। पुरातत्व के दृष्टिकोण से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है।

शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

शिवशंकर संहार करो..

खोल कर नयन तीसरे
तांडव करो शंकर भोले
संहार करो, संहार करो
संहार करो उपकार करो..

सजल सजल उन दो आँखों में
केवल कमल नहीं खिलते
कोयल से काले चेहरे को
क्योंकर गज़ल नहीं कहते
चाँद निरंतर घट जाता है
और अमावस कहलाता है
घर भर में बटती है रोटी
उसके हिस्से रोज अमावस
जिन सपनों का कोई सच नहीं
वे सपने चंदा मामा हैं
अपनी बोटी रोज बेच कर
वो जीता, ये क्या ड्रामा है
तुम्हे चिढाता है,मिश्री के
दो दाने वह रोज चढा कर
मैं भूखा, तुम आहार करो..
संहार करो, उपकार करो..

खून चूसता है परजीवी
फिर भी महलों में रहता है
और पसीने के मोती के
घर गंदा नाला बहता है
जिन्दा लाशों की बस्ती में
सपनों से दो उसके बच्चे
टॉफी गंदी, दूध बुरा है
ये जुमले हैं कितने सच्चे
चंदामामा के पन्नों में
चौपाटी पर चने बेचते
बच्चे होते हैं प्यारे
पर क्या बचपन भी होते प्यारे?
बहुत चमकती उन आँखों के
छुई-मुई जैसे सपनों पर
शिवशंकर, अंगार धरो..
संहार करो, उपकार करो..

भांति-भांति के हिजडे देखो
कुछ खाकी में, कुछ खादी में
थोडा गोश्त, बहुत ड्रैकुले
इस कागज की आजादी में
कुछ तेरा भी, कुछ मेरा भी
हिस्सा है इस बरबादी में
हाँ नाखून हमारे भी हैं
भारत माँ नोची जाती में
जो भी अंबर से घबराया
हर बारिश में ओले खाया
जब पानी नें आँख उठाई
सूरज मेघों में था भाई
लेकिन मुर्दों में अंगडाई
बर्फ ध्रुवों की क्या गल पाई?
तुम चिरनिद्रा से प्यार करो..
संहार करो, उपकार करो..

सूरज की आँखों में आँखें
डालोगे, वह जल जायेगा
पर्बत को दाँतों से खींचो
देखोगे वह चल जायेगा
कुछ लोगों की ही मुठ्ठी में
तेरा हक क्योंकर घुटता है
जिसनें मन बारूद किया हो
क्या जमीर उसका लुटता है?
हाँथों में कुछ हाँथ थाम कर
छोटे बच्चो बढ कर देखो
चक्रवात को हटना होगा
बौनी आशा लड कर देखो
इंकलाब का नारा ले कर
झंडा सबसे प्यारा ले कर
हर पर्बत अधिकार करो..
संहार करो, उपकार करो..

साभार : राजीव रंजन प्रसाद

गुरुवार, 1 जनवरी 2009

चमत्कारिक प्राचीन गुप्तेश्वर मंदिर (चारूवा, मध्यप्रदेश)

चारूवा स्थित चमत्कारिक प्राचीन गुप्तेश्वर मंदिर महाशिवरात्रि पर 1934 में प्रारंभ हुआ था यहाँ का विशाल मेला
भगवान भोलेनाथ की महिमा अपरंपार है। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि भोलेनाथ कैलास पर्वत पर विराजित हैं। कैलास के स्वामी होने के कारण उनका नाम कैलासपति पड़ा। देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा भी अनेक स्थानों पर भगवान भोलेशंकर की आराधना पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ होती है। प्राचीनकाल से ही अनेक मंदिर इसके साक्षात उदाहरण हैं। भगवान शिव की आराधना भक्त अपने-अपने तरीके से करते हैं। भूतनाथ भगवान को लोग धतूरा, बिल्वपत्र, अकाव के फूल चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। कहते हैं कि भगवान भक्त की पुकार बहुत जल्द स्वीकार करते हैं। भक्त कोशिश करते हैं कि पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ भी शिवलिंग स्थापित हैं, सबके दर्शन करें और अपना जीवन पुण्यमय बनाएँ। ऐसे में भक्तों का रुझान प्राचीनकाल में स्थापित शिवमंदिरों की ओर अधिक रहता है।
ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर है हरिपुरा में स्थापित भगवान गुप्तेश्वर का शिवलिंग। मध्यप्रदेश के हरदा जिले के ग्राम चारूवा में स्थित इस शिवमंदिर की महिमा दूर-दूर तक विख्यात है। भव्य पुरातन शैली में पत्थरों से निर्मित इस मंदिर में शिवलिंग चमत्कारिक माना जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर प्रतिवर्ष यहाँ मेला लगता है। मध्यप्रदेश ही नहीं महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश से यहाँ श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। यहाँ के विशाल मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान शिव की आराधना करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ ज्योतिर्लिंग मंदिरों की भाँति दिनभर विशेष अभिषेक-पूजा होती है। भक्तों का ताँता सुबह से लगना शुरू हो जाता है। मंदिर प्रांगण में पीछे की ओर प्राचीन पत्थरों से निर्मित वर्गाकार भूलभुलैया संरचना भी बनी है। माना जाता है कि यह सरंचना महाभारत युद्ध के चक्रव्यूव की भाँति है। इसमें स्थित विचित्र गुत्थी को सुलझाने वाला तीव्र बुद्धिमान होता है।
उधर मेले में भी दूर-दूर से छोटे-बड़े दुकानदार भगवान भोलेनाथ के इस स्थल पर बड़ी आशा के साथ व्यापार करने आते हैं। भगवान गुप्तेश्वर का यह मेला इस वर्ष 6 मार्च से प्रारंभ हो रहा है। यह 26 मार्च तक चलेगा। मेला समिति के अध्यक्ष श्री बसंतराव शिंदे तथा गुप्तेश्वर मंदिर प्रबंध समि‍ति के अध्यक्ष श्री माँगीलाल नाहर ने बताया कि मेले में दुकानों के लिए आवंटन प्रारंभ हो गया है। मेले में विभिन्न दुकानों के अलावा दर्शकों के मनोरंजन के लिए झूले, टूरिंग टॉकीज, सर्कस, जादू के खेल आदि आते हैं। मंदिर के पीछे विशाल पशु मेला भी लगता है।
भव्य पालकी
महाशिवरात्रि पर्व पर यहाँ श्रद्धालुओं की अपार भीड़ रहती है। पावन पर्व के अवसर पर भगवान भोलेनाथ की भव्य पालकी निकाली जाती है। इस वर्ष 7 मार्च को यह पालकी निकाली जाएगी। साथ ही आकर्षक आतिशबाजी भी की जाएगी। पालकी को निहारने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है। ऐसा लगता है मानो दर्शन करने की होड़ सी मची है।
1934 से जारी है मेले की परंपरा
ग्रामीण पृष्ठभूमि में लगने वाला यह मेला सन 1934 में प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में मात्र तीन दिनों का लगता था किंतु कालांतर में जैसे-जैसे इसकी प्रसिद्धि बढ़ती गई, मेला अवधि भी बढ़ती गई और अब 21 दिन हो गई है।
कैसे जाएँ हरिपुरा का गुप्तेश्वर मंदिर ग्राम चारूवा में स्थित है। यहाँ जाने के लिए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से खंडवा जाने वाली बड़ी रेललाइन पर हरदा के आगे खिरकिया स्टेशन उतरना पड़ता है। खिरकिया से मात्र 8 किलोमीटर दूर स्थित गुप्तेश्वर मंदिर जाने के लिए अनेक साधन टेम्पो, टैक्सी, बसें उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग से जाने के लिए खंडवा-होशंगाबाद रोड पर स्थित छीपाबड़ (खिरकिया) से मात्र 7 किलोमीटर है। जिला मुख्यालय हरदा से इसकी दूरी करीब 36 किलोमीटर है।