गाजियाबाद जिले के गढ़ मुक्तेश्वर में पतित पावनी गंगा के तट पर हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले उत्तर भारत के प्रसिद्ध और प्राचीन धार्मिक मेले का इतिहास लगभग पांच हजार वर्ष पुराना है। इस बार भी यहां मेले की भरपूर गहमागहमी है और मुख्य स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट रही है। मुख्य स्नान 13 नवंबर को है।
गढ़ मुक्तेश्वर के विषय में कहा जाता है कि महाभारत के विनाशकारी युद्ध के बाद योगीराज श्रीकृष्ण, धर्मराज युधिष्ठिर व अर्जुन के मन में युद्ध की विभीषिका और नरसंहार को देखकर भारी ग्लानि हुई। वे इस सोच में पड़ गए कि युद्ध में मारे गए असंख्य कुटुम्बियों, बंधुओं व निर्दोष लोगों की आत्मा की शांति के लिए क्या उपाय या संस्कार किया जाए।
तब सबने एक राय से निर्णय लिया कि खांडवी वन में भगवान परशुराम द्वारा स्थापित शिव बल्लभपुर (जो अब गढ़ मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाता है) नामक स्थान पर मुक्तेश्वर महादेव की पूजा यज्ञ तथा पतित पावनी गंगा में स्नान करने और वहां पिंडदान करने से सभी संस्कार पूर्ण हो जाएंगे। भगवान राम के पूर्वज महाराज शिवि ने अपना वानप्रस्थ यहीं पर व्यतीत किया था।
उन्होंने भगवान परशुराम से यहां शिव मंदिर की स्थापना कराई थी, उस समय यह बल्लभ संप्रदाय का मुख्य केंद्र था, इसी कारण इस स्थान का नाम शिव बल्लभपुर पड़ा, जिसका वर्णन शिव पुराण में मिलता है।
एकादशी से चतुर्दशी तक इस स्थान पर महाभारत युद्ध में मारे गए सभी लोगों की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ किया गया तथा चतुर्दशी की संध्या यज्ञ की समाप्ति पर उन आत्माओं को गंगा में दीप दान कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। अगले दिन प्रात: पूर्णमासी को सभी ने गंगा स्नान कर पूजा अर्चना, कथा आदि की।
बताते हैं कि इस आयोजन के बाद से ही गढ़ मुक्तेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा पर इस मेले के आयोजन की परंपरा की शुरु हुई।
प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां कार्तिक पूर्णिमा पर कलुष विनाशनी, पापहरिणी गंगा में स्नान करने और अपने स्वजनों की आत्मा की शांति के लिए यहां दीप दान करने आते हैं। चतुर्दशी की शाम को असंख्य लोग अपने स्वजनों को श्रद्धांजलि देने के लिए गंगा में दीप दान करते हैं। उस वक्त गंगा की धारा के साथ बहते दीपों का दृश्य बड़ा ही शांतिदायक और मनोहारी प्रतीत होता है।
गढ़ मुक्तेश्वर में धार्मिक महत्व की कई जगहें हैं, जैसे नहुष-कूप (नक्का कुंआ), मुक्तेश्वर महादेव का मंदिर, बद्रीनाथ मंदिर आदि। प्रथा है कि बद्रीनाथ मंदिर को केवल आरती के समय ही खोला जाता है। यह मंदिर साल में केवल एक बार अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती पर दिन भर दर्शनार्थियों के लिए खोला जाता है।
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के सामने विशाल रेतीला मैदान है, उसे मीराबाई की रेती के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि एकबार मीराबाई यहां गंगा स्नान के लिए आई थीं।
कहते हैं कि एक बार पार्वती जी ने शंकर जी ने प्रश्न किया कि प्रभु ऐसा कोई उपाय और स्थान बताए, जिससे संसार में अनेक व्याधियों और पापों से त्रस्त जीव को मुक्ति मिले और वे ऐसा क्या कर्म करें, जिससे उन्हें आपका स्नेह मिले। इस पर शंकर जी ने कहा कि हे देवी सतयुग में सभी तीर्थ पुण्य का फल देते हैं, त्रेता में पुष्कर, द्वापर में कुरुक्षेत्र तीर्थ पुण्य का फल देते हैं और कलिकाल में केवल गंगा स्नान से पुण्य फल की प्राप्ति है।
गंगा तट पर शिव बल्लभपुर नामक एक स्थान है, जहां मैं निवास करता हूं। यह स्थान मुझे अति प्रिय है। यह स्थान जम्बूद्वीप के आर्यावर्त देश में हस्तिनापुर की पूर्व दिशा में स्थित है। गंगा तट पर बसा यह स्थान देवों, ऋषियों और पितरों को संतोष देने वाला है। यह क्षेत्र मुझे काशी के समान प्रिय है।
गढ़ मुक्तेश्वर में स्थित गंगा मंदिर काफी ऊंचाई पर बना हुआ है। इस मंदिर में गंगा मैया के अतिरिक्त ब्रह्मा जी की मूर्ति भी लगी हुई है। इस मंदिर में एक ऐसा पत्थर भी है, जिसे ध्यानपूर्वक देखने से उस पर भगवान शिव की आकृति का आभास होता है। मंदिर में पहुंचने के लिए कभी 101 सीढ़ियां हुआ करती थीं, किंतु अब 86 सीढ़ियां ही बची हैं।
बताते हैं कि 1937 तक गंगा जी इन सीढ़ियों को छूते हुए बहती थीं, लेकिन धीरे-धीरे स्थान छोड़ती चली गईं। अब गंगा का तट इस मंदिर से लगभग 10 किलोमीटर दूर है, जिसके रेतीले मैदान में मेला लगता है।
मेले के दौरान तट पर तंबुओं का एक पूरा नगर बस जाता है। मेला स्थल दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर पड़ता है, जहां कार आदि से आराम से पहुंचा जा सकता है। गढ़ मुक्तेश्वर में पहले मेला स्थल तक लोगों को पैदल ही चलकर जाना पड़ता था, लेकिन अब यातायात के कई साधन उपलब्ध हैं। अनेक लोग भैंसा बुग्गी, ट्रैक्टर ट्रॉलियों, कार और अन्य साधनों से मेला स्थल तक पहुंचते हैं। अनुमान है कि हर साल करीब बीस लाख लोग यहां मेले के दौरान गंगा स्नान करने आते हैं।
मेले में भाग लेने आए ज्यादातर श्रद्धालु लगाए गए टेंटों में ही ठहरते हैं। मेले के अलावा सामान्य दिनों में आने वाले लोग ब्रज घाट के आसपास बनी धर्मशालाओं में ठहरते हैं। यूं तो यहां खाने-पीने का सामान बहुत सी दुकानों में मिल जाता है, पर समूह के रूप में मेले में आने वाले श्रद्धालु अपने भोजन आदि की व्यवस्था स्वयं ही करते हैं। यहां प्रत्येक पूर्णमासी पर विभिन्न भंडारों आदि का आयोजन भी होता है, जहां श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा तट पर लगने वाला मेला विशालतम मेलों में से एक है। मेला गंगा के किनारे किनारे लगभग 11 किलोमीटर के क्षेत्र में लगता है। इस वर्ष मेले का आयोजन मेला स्थल को 20 सेक्टरों में बांट कर किया जा रहा है। सुरक्षा के लिहाज से यहां पहले के मुकाबले पुलिस फोर्स ज्यादा लगाई गई है और प्रमुख स्थानों पर क्लोज सर्किट टीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। गंगा स्नान के लिए अनेक घाट भी बनाए गए हैं।
गुरुवार, 27 नवंबर 2008
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