शनिवार, 29 नवंबर 2008

भैरवाष्टमी कथा एवं महात्मय

अष्टमी तिथि यूं तो भगवती महामाया का दिन होता है। परंतु मार्गशीर्ष यानी अगहन की कृष्ण पक्ष में जो अष्टमी तिथि होती है वह महामाया के साथ भगवान भोले शंकर का भी प्रिय दिन है। इस दिन ही भगवान भोले नाथ भैरव रूप में प्रकट हुए थे। आइये इनकी उपसना एवं कथा में मन लगाएं।

कथा : किस प्रकार नीलकंठ कैलाशपति ने भैरव रूप धारण किया

कथा के अनुसार एक बार श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा जी में इस बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है। विवाद इस हद तक बढ़ गया कि शिव शंकर की अध्यक्षता में एक सभा बुलायी गयी। इस सभा में ऋषि-मुनि, सिद्ध संत, उपस्थित हुए। सभा का निर्णय श्री विष्णु ने तो स्वीकार कर लिया परंतु ब्रह्मा जी निर्णय से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने महादेव का अपमान कर दिया।

यह तो सर्वविदित है कि भोले नाथ जब शांत रहते हैं तो उस गहरी नदी की तरह प्रतीत होते हैं जिसकी धारा तीव्र होती है परंतु देखने में उसका जल ठहरा हुआ नज़र आता है और जब क्रोधित होते हैं तो प्रलयकाल में गरजती और उफनती नदी के दिखाई देते हैं। ब्रह्मा जी द्वारा अपमान किये जाने पर महादेव प्रलय के रूप में नज़र आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनो लोक भयभीत होने लगा। भगवान आशुतोष के इसी रौद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। भगवान भैरव कुत्ते पर सवार थे और इनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने से ये दण्डाधिपति भी कहे जाते हैं। इनका रूप अत्यंत भयंकर था। भैरव जी के इस रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वे भगवान भोले नाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे।

शिव के इस भैरव रूप की उपासना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार पाप, ताप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं। इनकी भक्ति मनोवांछित फल देने वाली कही गयी है। भैरव जी की उपासना करने वाले को भैरवाष्टमी के दिन व्रत रख कर प्रत्येक प्रहर में भैरवोनाथ जी की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए व उन्हें आर्घ्य देना चाहिए। रात के समय जागरण करके माता पार्वती और भोले शंकर की कथा एवं भजन कीर्तन करना चाहिए व भैरव जी उत्पत्ति की कथा कहनी व सुननी चाहिए। रात का आधा पहर यानी मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए।

भगवान भैरव नाथ का वाहन कुत्ता है। भैरव जी की प्रसन्नता के लिए इस दिन कुत्ते को उत्तम भोजन दें। मान्यता के अनुसार इस दिन प्रात: काल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करके पितरों का श्राद्ध व तर्पण करें फिर भैरव जी की पूजा व व्रत करें तो विघ्न बाधाएं समाप्त हो जाती हैं व आयु में वृद्धि होती है। भैरव जी के विषय में यह भी कहा गया है कि इनकी पूजा व भक्ति करने वाले से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर दूर रहते हैं। इन्हें रोग दोष स्पर्श नहीं करते हैं। शुद्ध मन एवं आचरण से ये जो भी कार्य करते हैं उनमें इन्हें सफलता मिलती है।

काल भैरव के साथ ही इस दिन देवी कालिका की उपासना एवं व्रत का विधान भी है। इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है।

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