यह अर्धनारीश्वर मंदिर लगभग 900 वर्ष पुराना है, जो कि हिमाचल के मंडी शहर में स्थित है। ऐसी भव्य मूर्ति, जिसमें आधा रूप शिव का है तथा आधा पार्वती का, किसी भी मंदिर में नहीं है। सभा-मंडप के प्रवेश-द्वार पर गजब की पत्थर नक्काशी है। गर्भगृह का तोरण-द्वार भी अलंकृत है। यह मंदिर भारत सरकार पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। गंधर्व कन्याओं के हाथ में वीणा है। मुख्य प्रतिमा का आकार 1 मीटर गुणा सवा एक मीटर है। मूर्ति के एक ओर सिंह तथा दूसरी ओर नंदी की मूर्तियाँ हैं। इस मंदिर को कलेसर का मंदिर भी कहते हैं। राजा सिद्धसेन ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
पुराणों के मुताबिक भगवान शिव की वक्षस्थली मरकत मणि जैसी चमकती थी। इसमें पार्वती को अपना ही प्रतिबिंब दिखाई दिया, जिसे वह भूल से अपनी सौतन समझ बै"ाr। भयभीत व भ्रमित पार्वती शिव से लिपट गई। अंतर्यामी शिव उनके मनोभावों को समझ गये। पार्वती उन्हीं में समा गई।
एक अन्य मिथक इस प्रकार है - पार्वती शिव प्राप्ति के लिए घोर तप में लीन थीं। उन्होंने संकल्प कर रखा था कि वह अन्य किसी पुरुष को नहीं देखेंगी। शिव ने भिक्षु का रूप धारण किया और उनकी परीक्षा लेने द्वारा पर पहुँच गये। उमा द्वार के बाहर नहीं निकलीं। शिव प्रसन्न हो गये। पार्वती को अपने वाम-भाग में समा लिया। कुछ विद्वान इस मंदिर को 300 वर्ष पुराना मानते हैं।
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