रविवार, 2 नवंबर 2008

शिव ने ली अर्जुन की परीक्षा

पांडवों को अपने 13 साल के वनवास के दौरान दर-दर भटकना पड़ा। पांडव हर हाल में कौरवों से अपने अपमान का बदला लेना चाहते थे। इसके लिए जरूरत थी शक्ति जुटाने की। फिर क्या था अर्जुन ने शिवजी की घोर तपस्या की और हासिल किया पाशुपास्त्र। वनवास काटते हुए पांडवों के चार साल इधर-उधर भटकते हुए निकल गए। पांचवा साल अर्जुन के लिए बड़ा ही अहम साबित हुआ। वो अपने भाइयों से अलग होकर उत्तराखंड की बर्फीली वादियों में शिवजी की तपस्या करने चले गए। मकसद था शिव से पाशुपास्त्र हासिल करना। बद्रीनाथ से आगे स्वर्गारोहिणी के रास्ते में चक्रतीर्थ नाम की जगह पड़ती है। कहते हैं वहां पर धनुर्धारी अर्जुन ने शिवजी से पाशुपास्त्र पाने के लिए तपस्या की थी। लेकिन अर्जुन को अपनी धनुर्विद्या पर काफी अहंकार था। सो शिवजी ने अर्जुन की परीक्षा लेने की ठानी।

अपने एक गण को शूकर यानी जंगली सूअर का रूप धारण कर अर्जुन की तपस्या भंग करने का आदेश दिया। तपस्या भंग होने पर अर्जुन ने गुस्से में गांडिव उठाया और सूअर पर तीर छोड़ दिया। अर्जुन सूअर के पास पहुंचे तो वहां सामने खड़ा था एक भील। मारा गया सूअर किसका शिकार है - ये फैसला करने के लिए भील और अर्जुन में घनघोर युद्ध हुआ।लड़ते-लड़ते अर्जुन बेहोश हो गए। होश आया तो सामने भील को मुस्कुराते हुए पाया। अर्जुन को लगा ये कोई साधारण इंसान नहीं हो सकता। शिवजी ने अपने असली रूप में अर्जुन को दर्शन दिए और बताया कि अर्जुन के अहंकार के नाश के लिए ही उन्होंने ये लीला रची। अर्जुन की तपस्या सफल हुई और उन्हें पाशुपास्त्र मिल गया। इसके बाद अर्जुन अपने भाइयों से आ मिले।

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