शनिवार, 29 नवंबर 2008

किलकिलेश्वर महादेव

अलकनंदा के विपरित किनारे पर श्रीनगर से छ: किलोमीटर दूर।

मंदिर के महंथ सुखदेव पुरी के अनुसार, मन्दिर से संबंधित एक अन्य बात यह है कि अपने वनवास के पांचवें वर्ष अर्जुन ने इसी स्थान पर भगवान शिव की आराधना की थी। वह भगवान शिव का निजी अस्त्र पाशुपात प्राप्त करना चाहता था, जो इतना शक्तिशाली था कि किसी भी अन्य अस्त्र को निष्प्रभावी कर सकता था। अर्जुन ने लंबे समय तक तप किया। उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसके सामने एक धृष्ट शिकारी के रूप में प्रकट होकर उसे ललकारा। दोनो में घमासान द्वंद हुआ। अर्जुन परास्त होकर शिकारी को पहचान लिया और भगवान शिव के पैरों पर गिर गया। इसके बाद भगवान शिव ने उसे पाशुपात का ज्ञान दिया। जंगल में इर्द-गिर्द छिपे किरातों के बीच किलकिलाहट हुई और किलकिल शब्द पर ही मंदिर का नाम पड़ा।



इस मंदिर का शिवलिंग पुराना है जबकि मंदिर नवनिर्मित है।


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