गुरुवार, 27 नवंबर 2008

कष्ट निवारक भैरवाष्टमी व्रत

शिव के इस भैरव रूप की उपासना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार पाप, ताप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं। इनकी भक्ति मनोवांछित फल देने वाली कही गई है। भैरव जी की उपासना करने वाले को भैरवाष्टमी के दिन व्रत रख कर प्रत्येक पहर में भैरवनाथ जी की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए व उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन एवं पूजन मनोभिलषित पूर्ति में सहायक होता है।
श्री भैरवनाथ साक्षात् रुद्र हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि वेदों में जिस परम पुरुष का नाम रुद्र है, तंत्रशास्त्र में उसी का भैरव के नाम से वर्णन हुआ है। तन्त्रालोक की विवेक टीका में भैरव शब्द की यह व्युत्पत्ति दी गई है-
बिभत धारयतिपुष्णातिरचयतीति भैरव अर्थात् जो देव सृष्टि की रचना, पालन और संहार में समर्थ है, वह भैरव है। शिवपुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्णरूप बतलाया गया है।
तत्वज्ञानी भगवान शंकर और भैरवनाथ में कोई अंतर नहीं मानते हैं। वे इन दोनों में अभेद दृष्टि रखते हैं। इनका आश्रय ले लेने पर भक्त निर्भय हो जाता है। भैरवनाथ अपने शरणागत की सदैव रक्षा करते हैं।

भैरवाष्टमी का महात्म्य
अष्टमी तिथि यूं तो भगवती महामाया का दिन होता है। परंतु मार्गशीर्ष यानी अगहन की कृष्ण पक्ष में जो अष्टमी तिथि होती है वह महामाया के साथ भगवान भोले शंकर का भी प्रिय दिन है। इस दिन ही भगवान भोले नाथ भैरव रूप में प्रकट हुए थे। एक बार श्री हरि विष्णु और ब्रह्मा जी में इस बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है। विवाद इस हद तक बढ़ गया कि शिव शंकर की अध्यक्षता में एक सभा बुलाई गई। इस सभा में ऋषि-मुनि, सिध्द संत, उपस्थित हुए। सभा का निर्णय श्री विष्णु ने तो स्वीकार कर लिया परंतु ब्रह्मा जी निर्णय से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने महादेव का अपमान कर दिया।
यह तो सर्वविदित है कि भोले नाथ जब शांत रहते हैं तो उस गहरी नदी की तरह प्रतीत होते हैं जिसकी धारा तीव्र होती है परंतु देखने में उसका जल ठहरा हुआ नजर आता है और जब क्रोधित होते हैं तो प्रलयकाल में गरजती और उफनती नदी जैसे दिखाई देते हैं। ब्रह्मा जी द्वारा अपमान किए जाने पर महादेव प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत होने लगा। भगवान आशुतोष के इसी रौद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। भगवान भैरव कुत्ते पर सवार थे और इनके हाथ में दंड था। हाथ में दण्ड होने से ये दण्डाधिपति भी कहे जाते हैं। इनका रूप अत्यंत भयंकर था। भैरव जी के इस रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे भगवान भोले नाथ एवं भैरव की वंदना करने लगे।
शिव के इस भैरव रूप की उपासना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार पाप, ताप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं। इनकी भक्ति मनोवांछित फल देने वाली कही गई है। भैरव जी की उपासना करने वाले को भैरवाष्टमी के दिन व्रत रख कर प्रत्येक पहर में भैरवनाथ जी की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए व उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। शास्त्रो के अनुसार इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन एवं पूजन मनोभिलषित पूर्ति में सहायक होता है। भगवान शिव की भक्ति प्राप्त करने वालो के लिए श्री कालभैरव जी का आशीर्वाद अपेक्षित है। शिवस्तु कल्याणकारक के अनुसार कल्याण चाहने वालों को कालभैरव जी का दर्शन करना चाहिए। रात के समय जागरण करके माता पार्वती और भोले शंकर की कथा एवं भजन कीर्तन करना चाहिए व भैरव जी उत्पत्ति की कथा कहनी व सुननी चाहिए। रात का आधा पहर यानी मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भगवान भैरव नाथ का वाहन कुत्ता है। भैरव जी की प्रसन्नता के लिए इस दिन कुत्ते को उत्तम भोजन दें। मान्यता के अनुसार इस दिन प्रात: काल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करके पितरों का श्राध्द व तर्पण करें फिर भैरव जी की पूजा व व्रत करें तो विघ्न बाधाएं समाप्त हो जाती हैं व आयु में वृध्दि होती है। भैरव जी के विषय में यह भी कहा गया है कि इनकी पूजा व भक्ति करने वाले से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर-दूर रहते हैं। उन्हें रोग व दोष स्पर्श भी नहीं करते हैं। शुध्द मन एवं आचरण से जो भी भैरव जी की अराधना करते हैं उन्हें जीवन के हर मुश्किल रास्ते पर सफलता मिलती है। काल भैरव के साथ ही इस दिन देवी कालिका की उपासना एवं व्रत का विधान भी है।
इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। कालाष्टमी में दिन भर उपवास रखकर सांय सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोष काल में भैरवनाथ की पूजा करके प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है। मन्त्र विद्या की एक प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपि से महाकाल भैरव का यह मंत्र मिला है-
हंषंनंगंकंसं खंमहाकालभैरवायनम:।
इस मंत्र का 21 हजार बार जप करने से बड़ी से बड़ी विपत्ति दूर हो जाती है। साधक भैरव जी के वाहन श्वान (कुत्ते) को नित्य कुछ खिलाने के बाद ही भोजन करें।
सदाशिव की अष्टमूतयों में रुद्र अग्नि तत्व के अधिष्ठाता हैं। जिस तरह अग्नि तत्व के सभी गुण रुद्र में समाहित हैं, उसी प्रकार भैरवनाथ भी अग्नि के समान तेजस्वी हैं। भैरव जी कलयुग के जाग्रत देवता हैं। भक्ति-भाव से इनका स्मरण करने मात्र से समस्याएं दूर होती हैं।

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