शनिवार, 29 नवंबर 2008

प्रयाग के शिव मन्दिर

प्रयाग की पावनतम तीर्थ रूप में ख्याति ऋग्वेद काल से ही रही है। इसका मूल कारण है यहाँ पर भारत वर्ष की दो ज्येष्ठ नदियों का संगम गंगा और यमुना। यह प्रयाग तीर्थ मृत पुरूषों को मुक्त करने वाला माना जाता है। महाभारत में प्रयाग को सब तीर्थॊं में ज्येष्ठ बताया गया है। अग्निपुराण, पदमपुराण, सूर्यपुराण में प्रयाग को तीर्थ राज कहा गया है। विनयपत्रिका में कहा गया है कि गौतम बुद्ध प्रयाग होकर गये थे। प्रयाग में गौतम बुद्ध के आने का समय ई०पू ४५० है।

भरद्वाज आश्रम

भरद्वाज आश्रम में इस समय भरद्वाज ॠषि द्वारा स्थापित भरद्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग है जो अत्यन्त फलदायक एवं मनः कामना पूर्ण करने वाला है। इसके अतिरिक्त मन्दिर परिसर में अनेक छॊटे-छॊटे मन्दिर व सैकड़ों प्रतिमाएं हैं जिनमें मुख्य इस प्रकार हैं राम लक्ष्मण, महिषासुर मर्दिनी, सूर्य, शेषनाग, नर वाराह ।
महर्षि भरद्वाज आयुर्वेद के प्रथम कुलपति रहे हैं। मर्यादा पुरूषोत्तम राम वन जाते समय महर्षि भरद्वाज के आश्रम में जाकर उनके दर्शन किये और उपदेश ग्रहण किया था। इस समय यह आश्रम कहां था, यह तो अनुसंधान का विषय है, परन्तु वर्तमान में यह आनन्द भवन के समीप स्थित है। यहां भगवान शिव मंदिर के साथ ही भरद्वाज याज्ञवल्क्य तथा अन्य ऋषियों, देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। भरद्वाज जी वृहस्पति पुत्र द्रोणाचार्य के पिता तथा बाल्मीकि के शिष्य थे। पहले यहाँ एक विशाल मंदिर था, जिसके शिखर पर दीप था, जिसे तोड़ डला गया। एक टीले पर स्थित आश्रम में भरतकुण्ड था जिसे कूड़े कर्कट से पाट दिया गया है।

नागवासुकी मन्दिर

वर्तमान नागवासुकी का प्रसिद्ध मन्दिर संगम के उत्तर में दारागंज के उत्तरी कोने पर गंगा तट पर स्थित है। नागवासुकी मन्दिर के गर्भगृह में जो प्रतिमाएं हैं, उसमें नाग नागिन की स्पर्श धारी मानवी प्रतिमा १०वीं शती की है। गणेश व पार्वती की भी प्रतिमाएं दर्शनीय हैं। मन्दिर के बाहर भीष्म पितामह की शर शय्या पर लेटी हुयी प्रतिमा है। मन्दिर परिसर में एक शिव मन्दिर भी है। नागवासुकी पर नागपंचमी के दिन बड़ा मेला लगता है और भारी संख्या में श्रद्धालु नागवासुकी के दर्शन करते हैं।
यहां पहुँचने के लिए, त्रिवेणी बांध, बक्शी बांध, तथा बांध के नीचे से निर्मित नव निर्मित सड़क से जाया जा सकता है। यहां भी नागराज तथा भीष्म पितामह की शराशैय्या पर लेटी हुई विशाल प्रतिमा है।

मनकामेश्वर मन्दिर

वर्तमान में यह मन्दिर किले के पश्चिम यमुना नदी के किनारे मिण्टो पार्क के पास स्थित है। मन्दिर में शिव जी का काले पत्थर का लिंग है। शिवलिंग के पास नन्दी बैल व गणेश जी की प्रतिमा है। मन्दिर परिसर में दो छॊटे-छॊटे मन्दिर हैं जिनमें शंकर जी के तीन और लिंग स्थापित हैं। हनुमान जी की भी प्रतिमा अत्यन्त भव्य है। मन्दिर परिसर से सटा हुआ एक अति प्राचीन पीपल का वृक्ष भी है। प्रत्येक सोमवार को यहाँ हजारों श्रद्धालु भगवान मनकामेश्वर की जलाभिषेक से पूजा करते हैं।
इलाहाबाद से लगभग ४० किमी दूर दक्षिण पश्चिम बारा तहसील के अन्तर्गत शिवजी का यह प्राचीन मन्दिर है। लगभग ८० फीट ऊँची छोटी पहाड़ी के पर यह शिवलिंग स्थापित है। पहाड़ी की रमणीयता दर्शनीय है। शिवलिंग ३ फीट लम्बा है। उसका व्यास नीचे की ओर कुछ अधिक व ऊपर क्रमशः कम है। बताया जाता है कि शिवलिंग जितना लम्बा ऊपर दिखाई पड़ता है उससे अधिक नीचे है। मनकामेश्वर का यह शिवलिंग भगवान श्री राम द्वारा चित्रकूट जाते वक्त स्थापित किया गया था। मन्दिर में शिवलिंग के अतिरिक्त छॊटी-छॊटी और कई मूर्तियाँ हैं। मन्दिर के नीचे विशाल बरगद व पीपल का वृक्ष तथा कुआँ है। यह स्थान लालापुर थाने से ४ किमी० पर नहर की पट्टी के पास स्थित है।

पड़िला महादेव

यह स्थान सोराँव तहसील में फाफामऊ कस्बे से ३ किमी उत्तर पूर्व में स्थित हैं। किंवदन्ती है कि श्री कृष्ण की सलाह पर यहाँ पाण्ड्वों ने भगवान शंकर के लिंग की स्थापना अपने वनवासकाल के दौरान किया था। यह मन्दिर पूर्ण रूप से पत्थरों से बना हुआ है। गजेटियर के अनुसार यहाँ शिवरात्रि व फाल्गुन कृष्ण १५ को मेला लगता है।

तक्षकेश्वर नाथ

तक्षकेश्वर भगवान शंकर का यह मन्दिर इलाहाबाद शहर के दक्षिणी क्षेत्र में दरियाबाद मुहल्ले में यमुना नदी के किनारे स्थित है। इस मन्दिर से थोड़ी दूर पर यमुना नदी में तक्षक कुण्ड् स्थित है। भगवान कृष्ण द्वारा मथुरा से भगाये जाने के पश्चात तक्षक नाग ने इसी स्थान पर वास किया था जो तक्षक कुण्ड् कहा गया। तक्षकेश्वर महादेव के लिंग के चारों ओर तांबे का अर्घ्य बना है। लिंग के ऊपर नागदेवता है। मन्दिर में गणेश, पार्वती व कार्तिकेय की छॊटी-छॊटी प्रतिमाएं हैं। बाहर नन्दी हैं। परिसर में हनुमान जी की मूर्ति है।

समुद्रकूप

वर्तमान में यह कूप गंगा के किनारे एक विशाल, उंचे टीले पर स्थित है। इस कूप का व्यास लगभग १५ फीट है। यह कूप पूर्ण रूप से पत्थरों से बना है। इस कूप के जगत पर विष्णु का पदचाप एवं शिवजी की मूर्ति है। समुद्रकूप का पूरा परिसर ५-६ फीट ऊँची ईंट की चहारदीवारी से घिरा है। समुद्रकूप जिस प्रांगण में स्थित है उसका क्षेत्रफल ४-५ एकड़ है। समुद्रकूप जिस टीले पर स्थित है उस पर जाने के लिए अब खड़न्जे की सड़क भी बना दी गई है। कुछ् विद्वानों के अनुसार इस कूप का निर्माण समुद्रगुप्त ने कराया था इसलिए इसे समुद्रकूप कहते हैं। कुछ लोगों के अनुसार इस कुएं में नीचे जल का स्तर समुद्र से मिलता था इसलिए इसे समुद्रकूप कहते हैं। समुद्रकूप के पास एक छॊटा आश्रम भी है जिसमें कुछ साधु-सन्त रहते हैं।

सोमेश्वर मन्दिर

वर्तमान में संगम के दक्षिण अरैल में सोमेश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर है। मन्दिर में भगवान शिव का छॊटा सा लिंग है। मन्दिर परिसर में ५ छॊटे-छॊटे और मन्दिर है जिनमें नर्मदेश्वर महादेव व हनुमान जी की मूर्तियाँ हैं।

पातालपुरी मन्दिर

यमुना के तट पर सम्राट अकबर द्वारा निर्मित किले के अन्तर्गत आंगन के पूर्व वाले द्वार की ओर भूमि स्तर के नीचे पातालपुरी मन्दिर बना हुआ है। इसमें दर्शनार्थी सीढियों से नीचे उतरते हैं। नीचे मन्दिर में लम्बा कक्ष बना हुआ है। कक्ष में अनेक खम्भे भी लगे हुए हैं। कक्ष में तथा दीवारों में देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं। इनकी संख्या ४४ है। कक्ष के मध्य में शिवलिंग है। पातालपुरी मन्दिर का जीर्णोद्धार सन १७३५ ई में वाजीराव पेशवा ने करवाया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यहाँ पर स्थापित मूर्तियाँ गुप्तकालीन है। कुछ प्रतिमाएं १७-१८वीं शताब्दी की भी हैं। एसी किंवदन्ती है कि वनवास की अवधि में भगवान राम भी यहाँ आये थे।

शिवकुटी

इलाहाबाद शहर के उत्तरी छोर पर गंगा के किनारे शिवकुटी का मन्दिर व आश्रम स्थित है। यहाँ पर श्री १००८ श्री नारायण प्रभु का आश्रम है। इसकी स्थापना श्री नारायण महाप्रभु ने १९४८ में की थी। यहाँ पर लक्ष्मी नारायण का भव्य मन्दिर है। उसमें गणेश व लक्ष्मी की मूर्तियाँ भी हैं। सभी मूर्तियाँ संगमरमर की बनी हैं। आश्रम परिसर में दुर्गा जी का एक मन्दिर है। हर वर्ष शिवकुटी के मेले के नाम से यहाँ श्रावण मास में विशाल मेला लगता है।

कमौरी नाथ महादेव

यह शिव मन्दिर इलाहाबाद के सूरजकुण्ड मुहल्ले के पास रेलवे कालोनी में स्थित है। यहाँ पर पंचमुखी महादेव की मूर्ति है। १८५९ ई में रेलवे लाइन के बनते समय भी यह मन्दिर था, जिसके कारण रेलवे लाइन को टेढा़ करना पड़ा था। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने कामदेव का यहाँ वध किया था, जिसके कारण इन्हें कामारि (कमौरी) महादेव कहते हैं। मन्दिर के सामने एक कुआँ व पीपल का पेड़ है। शिवरात्रि को यहाँ काफी भीड़ होती है।

भीटा धनुहा सुजावन देव

यह स्थान घूरपुर से ३ किमी पश्चिम यमुना नदी के किनारे है। यहाँ पर शंकर और यम की बहन यमुना का मन्दिर है। यह मन्दिर यमुना नदी में बना हुआ है। मन्दिर के नीचे उत्तर की ओर पाँच पाण्ड्वों की मूर्तियाँ भी हैं। यम द्वितिया के दिन यहाँ पर बहुत बड़ा मेला लगता हैं।

बरगद घाट शिव मन्दिर

इलाहाबाद नगर में मीरापुर के पास यमुना नदी के तट पर बरगद घाट पर एक छोटा सा शिव मन्दिर है। यहाँ पर ताँबे के अर्घ्य में काले पत्थर का शिवलिंग है। शिवलिंग के ऊपर सर्प का फण है। मन्दिर परिसर में एक पुराना बरगद का पेड़ है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पेड़ हजारों वर्ष पुराना है। प्रांगण में चार पीपल के पेड़ भी हैं। मन्दिर परिसर के परी हिस्से में हनुमान जी की पत्थर की लेटी हुई प्रतिमा है।

सिद्धेश्वरी पीठ

यह वर्तमान में इलाहाबाद के सिविल लाइन्स बस अड्ङे के सामने स्थित है। यहाँ एक छॊटा सा मन्दिर है। जिसमें भगवान शंकर, अष्टभुजा देवी व हनुमान जी की प्रतिमाएं हैं।

शंकर विमान मण्ड्पम

कांची कामकोटी पीठ के शंकराचार्य चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती की प्रेरणा से यह मन्दिर मार्च १९८६ ई में बनकर तैयार हुआ। इसका उद्घाटन शंकराचार्य जयेन्द्रसरस्वती ने किया। द्रविड़ियन वास्तु शास्त्र का यह मन्दिर १६ बड़े खम्भों पर बना है। संगम तट पर बना यह मन्दिर तीन मंजिला है। इसकी ऊँचाई १३० फीट है। यह मन्दिर १६ वर्ष में बनकर तैयार हुआ है। इस मन्दिर में कामाक्षी, बालाजी व शिवजी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। शिव की मूर्ति में एक सहस्र लिंग बने हुए हैं। यहाँ पर स्थापित शंकर जी की मूर्ति का वजन १० टन है। प्रयाग के माघ मेले में आने वाले श्रद्धालु यहाँ पर भी दर्शन पूजन करते हैं। मन्दिर अत्यन्त भव्य व विशाल है। इस मन्दिर के हर तल से संगम का दृश्य बड़ा ही मनोरम दिखाई पड़ता है। इस मन्दिर के पास अपनी एक गोशाला भी है।

शंकर मन्दिर महुआँव

इलाहाबाद के मेजा तहसील के दक्षिणी भाग में कोराँव से ८ किमी उत्तर पश्चिम कोराँव कौड़हार मार्ग पर यह ऎतिहासिक मन्दिर स्थित है। यह मन्दिर तालाब के किनारे भीटे पर है। शंकर जी की मूर्ति काले पत्थर की है। यहाँ पर एक पुराना पीपल का वृक्ष भी है।

शंकर मन्दिर जमसोत

यह ११वीं शताब्दी का कलचुरि राज्य काल का मन्दिर है। यह लपरी नदी के किनारे कोराँव से पश्चिम उत्तर दिशा में लगभग १५ किमी पर स्थित है। वर्तमान में यह मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। यहाँ पर प्राप्त कई मूर्तियाँ इलाहाबाद संग्रहालय में सुरक्षित है। जमसोत से प्राप्त गुप्तकालीन महिला की पत्थर की मूर्ति स्टेट म्यूजियम लखनऊ में रक्खी हुई है।

लोकनाथ मन्दिर

यह मन्दिर इलाहाबाद नगर के प्राचीन मुहल्ले लोकनाथ में स्थित है। शिवलिंग के पर तांबे का नाग फन फैलाए है। मन्दिर परिसर में सिंहवाहिनी दुर्गा की संगमरमर की प्रतिमा है। मन्दिर प्रांगण में एक पुराना कुआं है।

कुनौरा महादेव

यह स्थान हण्डि्या बाजार से १२ किमी उत्तर में है। यहाँ पर एक तालाब के किनारे उत्तर की ओर शंकर जी का प्राचीन मन्दिर है। यहाँ पर एक हनुमान जी का भी मन्दिर है। तालाब व मन्दिर के पास एक अति प्राचीन बरगद का विशाल वृक्ष भी है।

पत्थर शिवाला मन्दिर

यह मन्दिर इलाहाबाद नगर के खुल्दाबाद सब्जीमंडी मुहल्ले में पुराने जी टी रोड पर स्थित है। इसमें काले पत्थर का शंकर जी का लिंग है। पूरा मन्दिर पत्थरों से बना है। इसमें अदभुत शिल्पकारी की गई है। शिल्प कला की दृष्टि से इलाहाबाद में यह अद्वितीय मन्दिर है।

शंकर मन्दिर बोलन

मेजा तहसील के पूरब आधा फलरंग पर विन्ध्य पर्वत के मुहाने पर एक बहुत बड़ा तालाब है, जिसमें पहाड़ के झरने से जल आता है। तालाब में आज भी कमल के फूलों का बाहुल्य है। तालाब के किनारे शंकर जी का प्राचीन मन्दिर है। जिसमें कुछ मूर्तियाँ भग्न अवस्था में भी हैं। कहा जाता है कि यहां पर शिवलिंग की स्थापना पाण्डुपुत्रों ने की थी। बोलन तालाब से जुड़ी बाउली को लोग बाणगंगा के नाम से पुकारते हैं। कहा जाता है कि अर्जुन ने अपने बाण के प्रहार से पर्वत फाड़कर भीम को हिड्मिबा का तर्पण करने के लिए शुद्धजल उपलब्ध कराया था। तभी से इसे लोग बाण गंगा कहते हैं। बाण गंगा में विषधर सर्प भी बहुत अधिक संख्या में पाये जाते हैं।

शाश्वमेध मन्दिर

दारागंज में गंगाजी के बिल्कुल किनारे दशाश्वमेध घाट पर यह अत्यन्त प्राचीन व विशाल मन्दिर है। मन्दिर गंगाजी के सतह से काफी ऊँचाई पर है। मन्दिर के मुख्य गर्भगृह में दो लिंग हैं। मन्दिर में अपूर्ण देवी व हनुमान जी की भी प्रतिमा है। दोनों लिंगों के सामने नन्दी बैल स्थित है। मन्दिर परिसर में शेषनाग, दुर्गाजी, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश, राम, लक्ष्मण व सीता की भी प्रतिमाएं हैं। मन्दिर की दीवारों पर शिवमहिम्नस्तोत्र व अन्य शिव स्तुतियाँ संगमरमर पर उल्लिखित हैं।

दरबेश्वरनाथ मन्दिर

यह मन्दिर जानसेनगंज में चौक के पास स्थित है। मन्दिर में तीन शिवलिंग हैं। आनन्दी माता शीतला माँ की प्रतिमा भी है।

बन्दर शिवाला

शंकर जी का यह मन्दिर इलाहाबाद नगर के त्रिपोलिया व महाजनी टोला के बीच में स्थित है। पूरा मन्दिर पत्थर का बना हुआ है। यह मन्दिर संवत १९२३ में बना था। इस मन्दिर के पर मुड़ेरों पर चारों तरफ बन्दर की मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इसलिए इसे बन्दर शिवाला कहते हैं। सात घोड़ों वाले रथ पर सवार सूर्य भगवान की भी प्रतिमा है। संगमरमर का नन्दी बना हुआ है।

बहुरहे महादेव

सम्पूर्ण रूप से पत्थरों से निर्मित शंकर जी का यह प्राचीन मन्दिर इलाहाबाद नगर के ऊँचामण्डी मुहल्ले में है। लोकचर्चा के अनुसार औरंगजेब ने शंकर जी के लिंग के पर तलवार से प्रहार किया था। उसका चिन्ह आज भी है। इस परिसर में बहुरहे महादेव के अतिरिक्त दो छॊटे-छॊटे और मन्दिर हैं।

गंगा यमुना सरस्वती धाम

यह आश्रम गंगा तट पर झूंसी में स्थित है। आश्रम में ५४ फीट लम्बी हनुमान जी की खड़ी प्रतिमा भक्तों के लिए विशेष आकर्षक का केन्द्र है। यहाँ पर एक विशाल शिव मन्दिर भी बना है। मन्दिर में १११ शिवलिंग हैं।

विजयानाथ महादेव

तहसील बारा के ग्राम देवरा में विजयानाथ महादेव का मन्दिर है। यह ग्राम म०प्र० की सीमा से लगा हुआ है। इस मन्दिर में विशाल शिवलिंग है।

पंचमुखी महादेव

भगवान शंकर का यह मन्दिर बलुआ घाट तिलकनगर मुट्ठीगंज में है। मन्दिर के मुख्य गर्भगृह में एक ही अर्घ्य के भीतर पाँच एकसदृश शिवलिंग है। सभी शिवलिंग काले पत्थर के हैं। जनश्रुति के अनुसार जब इन लिंगों की स्थापना हुई तब से लगातार शनैः-शनैः उनके आकार में वृद्धि हो रही है। बताया जाता है कि यह मन्दिर २०० वर्ष पुराना है, बीच में इसका जीर्णाद्धार कराया गया है। मन्दिर परिसर में एक दर्जन छॊटे-छॊटे पत्थर के शिव मन्दिर और हैं। एक मन्दिर हनुमान जी का भी है। पंचमुखी महादेव का मुख्य मन्दिर काफी ऊँचाई पर बना हुआ है। स्थानीय लोगों में इस मन्दिर की बहुत अधिक मान्यता है।

बेलनाथ

भीटी रेलवे स्टेशन बरौत के दक्षिण आधा किमी० पर शंकर जी का मन्दिर है। यहाँ पर शिवलिंग को विशेष रूप से दूध चढ़ाते हैं। हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। श्रद्धालुओं में महिलाओं की संख्या अधिक होती है।

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