गुरुवार, 27 नवंबर 2008

नागपंचमी

वाराणसी धर्म अध्यात्म और मोक्ष की नगरी काशी में नाग देवता के पूजा अर्चना की अपनी एक अलग परम्परा है। इस दिन घरों में महिलाएं नाग को देवता मानकर उनकी पूजा करती हैं तो बाहर पुरुष अखाड़े में कुश्ती लड़ते हैं और जादूगर तरह तरह के खेल तमाशे दिखाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं जिसे वाराणसी में महुवर कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्रावण शुक्ल पंचमी तिथि का स्वामी नाग है। इस कारण नाग पंचमी के दिन नागदेवता की विशेष पूजा अर्चना घरों में की जाती है। नागपंचमी के दिन महिलाए घरों की साफ -सफाई कर नागदेवता का चित्र लगाकर उसे सिन्दूर का टीका लगाकर दूध और लावा चढ़ाती है। इसके साथ नाग देवता से घर के लोगों की सुरक्षा हेतु दरवाजों पर भी नागदेवता का चित्र लगाकर अनकी पूजा की जाती है।
प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित के अनुसार हिन्दू धर्मशास्त्रों इस त्यौहार पर नाग की होने वाली पूजा के पीछे कई कारण हैं। एक तो यह कि हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है, दूसरी यह कि भगवान विष्णु क्षीर सागर में इसी शेषनाग के ऊपर आराम करते हैं और तीसरा यह है कि लक्ष्मण जी शेषनाग के अवतार माने जाते हैं।
वाराणसी में हालांकि नाग देवता का कोई मंदिर नहीं है, लेकिन सदियों से श्रद्धालु जैतपुरा स्थित नागकुंआ पर जाकर विधि विधान से नागदेवता की पूजा कर दूध लावा चढ़ाते आ रहे हैं। यहीं पर प्राच्य विधा के पोषक अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए नागकूप पर एकत्र होकर शास्त्रार्थ और शास्त्र चर्चा भी करते रहे हैं। नागपंचमी के दिन काशी में परम्परा के अनुसार मल्लयुद्ध, दंगल , महुवर आदि का प्रदर्शन भी होता है तथा सपेरे टोकरी में नाग लेकर लोगों को दर्शन कराके अच्छा खासा चढ़ावा भी पा जाते हैं।

वैसे नाग पंचमी के अवसर पर नगर के कई स्थानों पर महुअर खेलने और दंगल का आयोजन किया जाता है। लेकिन पहले और आज में अंतर पूछने पर लगभग 70 साल के हो चुके मुसाफिर पहलवान बताते हैं कि बदलते समय के अनुसार अब नागपंचमी पर पहले जैसी रौनक नही दिखाई देती है। महुअर और दंगल भी कम ही होते हैं। लोग पूजा अर्चना कर रस्म अदायगी कर लेते है। पारम्परिक परम्पराओं पर पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है। अब अखाडे क़ी जगह जिम आ गया है, महुवर की जगह टेलीविजन ने ले लिया है।

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