अल्मोरा से 90 किमी की दुरी पर स्थित बागेश्वर अपने धार्मिक रीती-रिवाजों के लिए बहुत प्रसिद्द है| यहाँ पर्तिवर्ष कई धार्मिक त्योंहारों, धार्मिक मेलों का आयोजन होता है, जिसमें देश- विदेश के बहुत से लोग शामिल होते हैं| वर्तमान मैं बागेश्वर मैं सुन्दर्धुन्गा, पिन्दारी एवं कफनी जैसे सुंदर ग्लेशियर हैं| इन्हीं ग्लेशिरों के कारण यहाँ बहुत प्रकार के क्रीडा का आयोजन होता है| जिसमे प्रतिभागी बड़े ही साहसिक खेलों का जोहर दिखता है, जिसके कारण इसे साहसिक पर्यटक स्थल के नाम से भी जाना जाता है|
बागेश्वर का इतिहास बहुत ही पुराना है| स्कन्द पुरान के मानस खंड मैं यहाँ के विभिन्न स्थानों का उल्लेख किया है| पौराणिक कथाओं मैं बागेश्वर का बहुत ही सुंदर वरण हुआ है, उनके अनुसार बागेश्वर भगवान् शम्भू (शिव) की लीला स्थल था| बागेश्वर की स्थापना शिव गण चंदिस ने शिव के आदेश पर दूसरी कशी के रूप मैं की थी तदुपरांत इसे शिव पार्वती ने अपने निवास स्थान बनाया| शिव की कृपा से आस्मां से शिव लिंग उत्पन्न हुआ जिसे मुनियों ने बगिश्वर के रूप मैं उनकी पूजा की| कथाओं के अनुसार सरयू, गोमती, सरस्वती की संगम्स्थाली बागेश्वर मैं मृत्यु प्राप्त मनुष्य मुक्ति को प्राप्त होता है|
स्कंद्पुरान के अनुसार ऋषि मार्कंडेय जी ने यहाँ तपस्या की थे| वशिष्ठ जी जब भगवान् विष्णु की मनास्पुर्ती सरयू को लेकर आए तब ऋषि सारकंडेय जी कारन सरयू को बदने से रुकना पड़ा| शिव पार्वती ने ब्याघ्र का रूप रखकर तपस्यारत ऋषि से सरयू को मार्ग दिलाया| क्योंकि ऋषि तपस्या कर रहे थे सो उनकी तपस्या भंग न हो और सरयू को मार्ग मिल जाए| जिसके कारण इसका नाम ब्याघ्रेश्वर पड़ा, जो बाद मैं बागेश्वर के नाम से सम्भोधित हुआ|
बागेश्वर मैं पर्तिवर्ष उतरैणी का मेले का आयोजन किया जाता है| जिसमे प्रतिवर्ष बहुत से लोग मेले मैं आकर आनंद उठाते हैं, जो की माघ के महीने मैं मनाया जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार बागेश्वर की भूमि पर उनका पूर्ण स्वामित्व था जिसकी आय से मंदिरों का रख रखाव किया जाता था, बागनाथ के मन्दिर मैं उन्होंने पुजारी की व्यस्था की थी जो मन्दिर के देखरेख किया करता था| पूर्व मैं मेलों मैं दूर-दूर से व्यापारी यहाँ आते थे और बहुत मात्रा मैं सामान की खरीद फरोख किया करते थे| यहाँ नेपाल के व्यापारी आया करते थे, तिब्बत के व्यापारी नमक, चंवर, पशुओं की खाल लेकर आते थे| भोटिया लोग गलीचे, जड़ी-बूटी, कम्बल इत्यादी लेकर आते थे, स्थानिये व्यापार भी अपने चरम सीमा पर था| दाल, सूप, तांबे के बर्तन, जुटे, चटाइन इत्यादी लेकर आते थे और बेचते थे| गुड़ की भेली से लेकर मिश्री और चूड़ी चरेऊ से लेकर टिकूली बिन्दी तक की खरीते थे|
दर्शनीय मन्दिर
बागनाथ का मन्दिर
बागनाथ मन्दिर मैं प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है| यह प्राचीन मन्दिर सरयू और गोमती नदी के संगम पर बसा है| यह मन्दिर भगवान् शिव का मन्दिर है| इस मेल मैं पहाड़ एवं गडवाल से हजारों संख्या मैं लोग पहुँचते हैं|
बैजनाथ मंदिर
गोमती के तट पर कत्युर घाटी मैं स्थित है, जो बागेश्वर से 22 किमी की दुरी पर स्थित है| इस मन्दिर का निर्माण 13 वीं शताब्दी मैं हुआ| इस मन्दिर मैं शिव, पार्वती और उनके पुत्र गणेश की मूर्तियां प्रमुख हैं| प्राचीन काल की कीमती मूर्तियाँ यहाँ हैं जो पुरातत्व विभाग की निगरानी मैं रखे गए हैं|
बागनाथ मंदिरः यह प्राचीन मंदिर सरयू और गोमती नदियों के संगम पर शहर के बीचो-बीच में स्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यहां शिवरात्रि के दौरान वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान पूरे कुमायूं और गढ़वाल पहाड़ियों से बड़ी संख्या में लोग शहर पहुंचते हैं। इस मन्दिर मैं शिव, पार्वती, इकमुखी और चतुर्मुखी, शिव लिंग, त्रिमुखी शिव, गणेश, विष्णु, सरयू आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं जो बहुत ही प्राचीन हैं|
टोटा शिव मंदिरः लोगों का कहना है की इस मन्दिर का निर्माण पांडवो ने किया था| यह मन्दिर सनेती के पास बना है जो अपने मैं एक रहस्य है| इस मन्दिर को लोग शिव मन्दिर के नाम से संबोधित करते हैं, परन्तु इस मन्दिर मैं कोई शिव लिंग नहीं है| और इस मन्दिर मन कोई श्रद्धालु पूजा नहीं करता है|
चंद्रिका मंदिर
यह मन्दिर देवी चन्द्रिका का है जिसे दुर्गा भी कहते हैं| नव रात्रि के अवसर पर यहाँ पर लोग पशुओं की बलि देकर देवी को प्रसन्न करतें हैं, और मुराद मागते हैं| इसको लोग बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं| यह मन्दिर बागेश्वर से लगभग 500 किमी की दुरी पर स्थित है|
कोटे की माई
बैजनाथ से मात्र 3 किलोमीटर पर कोटे की माई का मंदिर है। इस मन्दिर मैं भगवान् विष्णु की सुंदर मूर्ति विराजमान है| लोग यहाँ पूर्ण शारदा से पूजा अर्चना करते हैं| जो भी श्रद्धालु बैजनाथ मन्दिर के दर्शन के लिए आता है वे कोटे की माई के दर्शन करने को जरुर जाते हैं|
शनिवार, 29 नवंबर 2008
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