सोमवार, 29 दिसंबर 2008

पौराणिक मान्यताओ के विपरीत पूर्ण खण्डित गोतमेश्वर महादेव की होती है पूजा

रतलाम से लगभग सौ किमी दूर राजस्थान सीमा मे अरनोद नामक स्थान पर एक ऐसा अति प्राचीन धार्मिक स्थल है जिसके बारे मे बहुत कम लोग जानते है। वह है गौतमेश्वर महादेव का मदिर | हिन्दू धर्म शास्त्रो मे खण्डित देवी देवताओ की प्रतिमाओं, खंडित शिवलिंगों एवं तस्वीरों का पूजन वर्जित माना गया है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार खंडित देवी देवताओं की प्रतिमाओं को विसर्जित कर प्रथा है | किन्तु संभवतः विश्व मे एक मात्र ऐसी जगह सिर्फ गौतमेश्वर महादेव है जिनके दो भागों मे विभाजित एवं पूर्ण रुप से खण्डित शिवलिंग की पूजा अर्चना होती है आराधना होती है। दूर दूर से यहाँ भक्तों का तांता लगा रहता है | इस पूजा अर्चना के पीछे छिपे तथ्यो एवं रोचक जानकारी को जानने के पहले हम आपकों बताना चाहेंगे कि राजस्थान की सीमा मे प्रतापगढ रोड पर खतरनाक घाटीयों में लगभग एक हजार से ग्यारह सो फीट नीचे, सुरम्य प्राकृतिक हरीयाली के बीच विराजित हैं, गौतमेश्वर महादेव | इस मंदिर के बारे मे मान्यता है कि गौहत्या के साथ अन्य जीव हत्या का पाप लगने पर यदि समाज द्वारा किसी व्यक्ति को समाज या जाति से अलग कर दिया जाता है तो यहां स्थित मोक्षदायीनी कुण्ड मे स्नान करने के पश्चात उस व्यक्ति को मंदिर के पुजारी द्वारा पाप मुक्ति का प्रमाण पत्र दिया जाता है क्योंकि सप्तऋषियों में से एक गौतम ऋषी पर लगा गौहत्या का कलंक भी यही मिटा था। यह भी मान्यता है कि इस कुण्ड मे स्नान करने पर यदि आपके शरीर से लाल पानी टपके तो मान लें कि आपके पाप धुल गये है |

क्या है गोतमेश्वर महादेव का इतिहास और क्या है खण्डित शिवलिंग से जुडी कथा :- वेसे तो गोतमेश्वर महादेव के साथ कई कहानियां जुडी हुई है सप्तऋषियों मे एक ऋषी गौतम ऋषी थे, उन्हे वरदान था कि वे कभी किसी को भूखा नही मरने देंगे। एक बार नासिक त्र्यंबकेश्वर मे घनघोर अकाल पडा इस दौरान 88 हजार के करीब साधु संतो को भोजन कराने की जबाबदारी गौतम ऋषी पर आयी वे एक मुठ्ठी अनाज रोज उगाते और उससे साधु संतो सहित पूरे क्षेत्र के लोगो का पेट भरने योग्य अन्न उत्पन्न हो जाता था, यह अकाल 12 साल तक चला तत्पश्चात वहां पर बारीश हुई और खुशहाली छा गई। एक समय सभी साधु संतो ने वहां से जाने का मन बनाया किंतु वे गौतम ऋषी को छोडकर जाये तो केसे जाये गौतम ऋषी ने उनकी मंशा के समझते हुए एक मायावी गाय की रचना की और उसे लहलहाते खेतों मे छोड दिया सुबह जब गाय फसलों को नष्ट करते हुए विचर रही थी तब गौतम ऋषी ने एक कंकर उठाकर उस गाय को मारा मायावी गाय तुरंत मर गई। तत्पश्चात गौतम ऋषी पर गौहत्या का पाप लगा और यह आरोप लगाते हुए सभी साधु संत वहां से चले गये। गौतम ऋषी गौहत्या के कलंक को लेकर पूर्व से पश्चिम इस स्थान पर आये यहां पर उन्होने घनघोर तपस्या की और जब शिवजी प्रकट हुए तो उन्होने उनसे वरदान मांगा कि उन पर लगा गौहत्या का पाप तो हटे ही साथ ही भोलेनाथ स्वयं यहां पर विराजित हो जाएँ और पापियों को मोक्ष प्रदान करें । जिसके बाद भगवान् शंकर यहां पर विराजित हुए और गोतमेश्वर के नाम से जाने गये। गौतम ऋषी पर गौहत्या के पाप के चलते यह शाप था कि वे सूर्य को नही देख पाते थे भोलेनाथ के आर्शीवाद से यहां एक मोक्षदायी कुण्ड उत्पन्न हुआ जिसमें स्नान करते ही गौतम ऋषी पर लगा गौहत्या का कलंक धुल गया और आकाश मे से उन्हे सूर्य की रोशनी दिखाई देने लगी और उनको दिखने वाला अंधेरा वहां से हट गया। तभी से इस स्थान गौतमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा और तभी से यहाँ विशेष् रुप से पूजा अर्चना की जाती है |
प्राचीनकाल की परम्पराओं के अनुसार गौह्त्या के दोषियों को धर्म, जात और समाज से बेदखल कर दिया जाता था | और यदि गौहत्या का दोषी यहाँ के कुण्ड में स्नान कर लेते तो उन्हें समाज में पुनः स्थान मिल जाता | इन्ही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज भी सैकडों लोग यहां अपने पापों को धोकर मोक्ष प्राप्ति की कामना के लिए आते है आज भी गौहत्या सहित जीव हत्या आदि के आरोपों से मुक्ति के लिए दर्शनार्थियों को यहाँ स्थित कुण्ड मे स्नान के पश्चात एक प्रमाण पत्र दिया जाता है जो इस बात का प्रमाण होता है कि वे पापमुक्त हो गये है इसके अलावा चट्टानों मे स्थापित गोतमेश्वर महादेव का गुम्बदनुमा शिखर है जिसे गदा कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस गदा के चारों और लोट लगाने से सभी असाध्य रोग ठीक हो जाते है।
क्या है खण्डित शिवलिंग की कहानी :- मोहम्मद गजनबी जब सभी हिन्दू मंदिरों पर आक्रमण करते हुए यहां पहुंचा तो उसने गोतमेश्वर महादेव शिवलिंग को भी खंडित करने का प्रयास किया । प्राचीन कथाओं के अनुसार शिवलिंग पर प्रहार करने पर भोलेनाथ ने अपना चमत्कार दिखाने के लिए पहले तो शिवलिंग से दूध की धारा छोडी, दुसरे प्रहार पर उसमे से दही की धारा निकली और जब गजनवी ने तीसरा प्रहार शिवलिंग पर किया तो भोलेनाथ क्रुध हो गये इसके पश्चात शिवलिंग से एक आंधी की तरह मधुमखियों का झुंड निकला जिसने गजनवी सहित उसकी पुरी सेना को परास्त किया। यहां पर गजनवी ने भोले की शक्ति का स्वीकारते हुए शीश नवाया मंदिर का पुन: निर्माण करवाया और एक शिलालेख भी लगाया कि यदि कोई मुसलमान हमला करेगा या बुरी नजर से देखेगा तो वह सुअर की हत्या का दोषी होगा, इसी प्रकार यदि कोई हिन्दू इस मंदिर पर बुरी नजर डालेगा या नुकसान पहुंचाने की कोशीश करेगा तो वह गौहत्या का भागी बनेगा। आज भी यह शिलालेख यहाँ मौजूद है और उस पर सुअर तथा गाय का चित्र भी बना हुआ है।

साभार : अमित निगम, रतलाम

1 टिप्पणी:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही रोचक एवं बहुमूल्य जानकारी प्रदान करने हेतु आभार
अब तो इस पावन स्थल को देखने हेतु मन मे तीव्र उतकंठा उत्पन हो गई है.