शिव मंदिर समूह ( शिव मंदिर क्रमांक 1 )
सन 1953-54 में स्व. दीक्षित महोदय के निर्देशन में लक्ष्मण मंदिर के उत्तारी पार्श्व में लगभग 300 मी. दूर स्थित इस विशल टीले का उत्खनन किया गया । जिससे उन्हें प्त्रचायतन शैली के शिव मंदिर की प्राप्ति हुई । यह 8 10 फीट ऊंचे, प्रस्तर खण्डों द्वारा निर्मित अधिष्ठान पर स्थित था। जिसमें लगभग साढे चार फुट ऊँचा शिलिंग स्थापित है। जिसके सम्मुख ईटों की दो कोठरियां थी। स्व. दीक्षित महोदय के अनुसार प्रत्येक पार्श्व में 2-2 अन्य छोटी प्रतिमांण भी थी जिसके आधार पर उन्होंने इसे पज्चायतन शैली के मन्दिरों में ( मुख्य देवालय केन्द्र में तथा चारों कोनो पर एक-एक देवालय होता है) सम्मिलित मानते हैं।
शिव मंदिर क्रमांक -2
यह आन्नद प्रभु कुटी विहार के समीप सिरपूर से सेनकपाट जाने वाले मार्ग पर भग्नावस्था में स्थित है। यह शिव मंदिर भी स्व. दीक्षित को उत्खनन में प्राप्त हुआ था। वर्तमान में मंदिर का गर्भगृह, शिवलिंग सहित अंतराल एवं मण्डप दृष्टव्य है।
शिव मंदिर क्रमांक ३
सन् 1999-2000 में डॉ. जोशी एवं र्श्मा महोदय द्वारा संपादित उत्खनन के फलस्वरूप् ज्ञात एवं शेष मंदिर इष्टिका निर्मित है। पंचस्थ शैली में निर्मित इस मंदिर की मात्र भूयोजना अवशेष है। अर्थात शिखर आदि वर्तमान में अनुपलब्ध है। मंदिर की योजना में मुख्य गर्भगृह,अन्तराल एवं मण्डप है। मंदिर का अधिष्ठान सं जंघा तक का भाग प्रस्तर एवं मण्डप है। मंदिर का अधिष्ठान से जंघा तक का भाग प्रस्तर एवं शेष इष्टिका निर्मित है। गर्भगृह में योनिपीठ में चार फीट ऊंचा शिलिंग स्थापित है। इसके अतिरिक्त मंदिर में अन्य शिलिंग एवं परम्परागत प्रणालिका भी दिखाई देती है।
पंचायतन बालेश्वर महादेव मंदिर - बोधिस्त नागार्जुन स्मारक संस्था व अनुसंधान केनद्र मनसर (नागपुर) द्वारा श्री कुमार शर्मा महोदय के संचालन ( 2003-04) में सम्पन्न हुए उत्खनन में इस महत्वपूर्ण शैव मंदिर की प्राप्ति हुई है।
तारकाकार तल योजना के आधार पर निर्मित यह युगल मंदिर है, जो पृथक पृथक काले प्रस्तर खंडों द्वारा निर्मित अधिष्ठोनों पर स्थित है। मंदिरो के नामकरण के संदर्भ में उल्लेखनीय हैकि उत्खनन के दौरन ''शिवगुप्त राजस'' लेख युक्त की मिटटी के छाप मिलने से एवं महाशिवगुप्त की बालार्जुन उपाधि एवं असके ताम्रपत्र में उल्लिखित बालेश्वर मंदिर के आधार पर उत्खनकर्ता द्वारा यह नामकरण किया गया है। पश्चिमभिमुख निर्मित इस युगल शिव मंदिर के चारों कोनों पर एक-एक अन्य मंदिर के अवशेष मिले हैं, जिसके आधार पर इसे पचायतन शैली के मंदिर से अभिहित किया गया। वस्तुत: पज्चायतन शौली में एक मंदिर तथा शेष उसके चारों कोनों में निर्मित होते है। बालेश्वर मंदिर की लंबाई 22 मी. तथा चौडाई 10 मी. है। मंदिर का जंघा तक का निर्माण सिरपुर के अन्य स्मारको के समान प्रस्तर खण्डों से तथा जंघे से ऊपर इष्टिका (ईटों) द्वारा निर्मित है। मंदिर की निर्माण योजना में गर्भगृह, अंतराल, मण्डप तथा एक से अधिक बरामदों का निर्माण किया गया था। बरामदों को विभाजित करने के लिए दीवारों तथा अष्टकोणीय प्रसतर स्तंभे का उपयोग किया गया है। इन स्तंभों के मध्य अत्यंत अलंकृत युगल एवं सिहं ब्याल आदि की मूर्तियाँ स्थापित की गई है। तथा विभिन्न कथाओं का अंकन है। मंदिर के उत्खनन से प्राप्त मृण-मुद्रा तथा अभिलेख आदि के अध्ययन एवं लिपि शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण लगभग सातवीं सदी ईस्वी है।
गंधेश्वर मंदिर - महानदी के तट पर स्थित इस मंदिर का प्रचीन नाम गंधेश्वर था। यह सतत पूजित शिव मंदिर है। इसका निर्माण प्राचीन मंदिरों एवं विहारों से प्राप्त स्थापत्य खण्डों से किया गया है। स्थापित्यकला की दृष्टि से इस मंदिर का विशेष महत्तव नही है। मंदिर परिसर में विभिन्न भग्नावशेषों से संग्रहीत अनेक कलात्मक प्रतिमायें सरंक्षित कर रखी गई है। इनमें भूमिस्पर्श मुद्रा में बुध्द, नटराज, उमा-महेश्वर, वराह, वामन, महिषासुरमर्दिनी आदि की प्रतिमायें अत्यंत कलात्मक है। गंधेश्वर मंदिर की द्वारशाखा पर शिव लीला के विविध दृश्यों में रावण के शीर्ष पर गदर्भ निर्मित है। विभिन्न पर्वो तथा मेला के समय यहां अत्याधिक दर्शनार्थी आते है।
अन्य दर्शनीय स्थल -
लक्ष्मण मंदिर - यह मंदिर ईटों सं निर्मित भारत के सर्वोत्ताम मंदिरों में से एक है। अलंकार सौंदर्य मौलिक अभिप्राय तथा निर्माण कौशल की दृष्टि से यह अपूर्व है। लगभग 7 फुट ऊंचे पाषाण निर्मित जगती पर स्थित यह मंदिर अत्यंत भव्य है। पंचरथ प्रकार का यह मंदिर गर्भगृह, अंतराल तथा मंदिर के बाहय भित्तियों में कुट-द्वार तथा वातायन आकृति, चैत्य गवाक्ष, भारवाहकगण, गज, कीर्तिमुख एवं कर्ण आमलक आदि अभिप्राय दर्शनीय है। मंदिर का प्रवेश द्वार अत्यंत आकर्षक है। द्वारशीर्ष पर शेषदायी विष्णू प्रदर्शित है। उभय द्वारशाखा पर विष्णू के प्रमुख अवतार, कृष्ण लीला के दृश्य, अलंकरणात्मक प्रतीक, मिथुन, दृश्य तथा वैष्णव द्वारपालों का अंकन है। गर्भगृह के भीतर नागराज शेष की बैठी हुई सौम्य प्रतिमा रखी है। लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाशिवगुप्त बाजार्जुन की माता वासटा ने अपने दिवंगत पति की स्मृति में करवाया था। वासटा का मगध के राजा सूर्यवर्मन की पुत्री थी। अभिलेखनिय साक्ष्य के आधार पर इस मंदिर का निर्माण काल ईस्वी 650 के लगभग मान्य है।
अन्य धार्मिक स्थल :
बौध्द विहार - बौध्दधर्म से संबंधित अवशेषों की दृष्टि से सिरपुर विशेष महत्वपूर्ण है। उत्खनन कार्य से यहां दो बौध्द विहार के अवशेष प्रकाश में आये हैं विहारों के निर्माण में मुख्य रूप से ईटों का उपयोग किया गया है। इन विहारों की तल योजना में गुप्तकालीन मंदिर तथा आवासीय भवन निर्माण कला का सुंदर समन्वय है।
राम मंदिर - लक्ष्मण मंदिर से कुछ दूरी पर पूर्व की ओर ईटों से निर्मित एक भग्न तथा जीर्ण -शीर्ण मंदिर अवशिष्ट है। यह राममंदिर के नाम से प्रसिध्द है। इस मंदिर के ऊर्ध्व विन्यास में कोण तथा भुजाओं के संयोजन से निर्मित प्रतिरथ ताराकृति की रचना करतें है। इस कलात्मक मंदिर का संपूर्ण शिखर नष्ट हो चुका है तथा भग्न प्राय: भित्तियां बच रहे है। लक्ष्मण मंदिर तथा राम मंदिर के निर्माण में कुछ दशकों का अंतराल है।
बौध्द विहार -( तीवरदेव महाविहार) - दक्षिण कोसल अब तक सबसे बडे विहार के रूप में परिगणित तीवरदेव बौध्द विहार अरूण कुमार शर्मा महोदय को उत्खनन के दौरन प्राप्त हुआ। यह बौध्द विहार कसडोल जाने वाले मार्ग पर दाहिनी और लक्ष्मण मंदिर से लगभग 1 कि. मी. पूर्व स्थित है।
कैसे पहुंचे-
वायु मार्ग- रायपुर निकटसथ हवाई अडडा है जो मुंबई, दिल्ली, कोलाकाता, चेन्नई,नागपुर, भुवनेश्वर, विशाखापट्नम एवं रांची से वायुवान सेवा से जुडा हुआ है।
रेल मार्ग - हावडा -मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर समीपस्थ रेलवे जंक्शन है। रायपुर-वाल्टेयर रेल मार्ग पर स्थित महासमुंद निकटस्थ रेल्वे स्टेशन है।
सडक मार्ग - रायपुर से सिरपुर तक की कुल दूरी 83 कि. मी. है। रायपुर से संबलपुर की ओर जाने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर लगभग 66 वें कि. मी. पर सिथत कुहरी ग्राम के मोड के उत्तार की ओर यह लगभग 17 कि. मी. की दूरी पर सिथत है। तथा महासमुंद के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
आवास व्यवस्था- सिरपुर में लोक निर्माण विभाग का दो कमरों से युक्त विश्राम गृह है। रायपुर नगर में विश्राम भवन तथा आधुनिक सुविधाओं से युक्त अनेक होटल हैं।
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