बुधवार, 17 दिसंबर 2008

महादेव शिवमंदिर रियासी (जम्मू)

रिसासीकस्बा स्थित प्राचीन महादेव शिव मंदिर के प्रति यहां के लोगों के दिलों में विशेष आस्था व अटूट विश्वास है। यहां के प्राकृतिक शिवलिंगमें पडे हुए दरार व यहां लगने वाले बैसाखी मेले की दिलचस्प कहानी है।

यहां के लोगों की मान्यता है कि इस प्राकृतिक शिवलिंगमें साक्षात भगवान शंकर विराजमान हैं। शिवलिंगकितना पुराना है? इसके बारे में स्पष्ट रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इस बारे में यहां एक दंत कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि इस शिवलिंगको क्षेत्र के ही गांव अगारवलियाके एक जमींदार ने सबसे पहले तब देखा था, जब इस इलाके में कोई आबादी न थी। उस समय इस इलाके में घना जंगल हुआ करता था। जमींदार ने अपने मवेशियों को चराने के लिए एक ग्वाला रखा था। जमींदार की एक गाय दूध नहीं दे रही थी, इसलिए जमींदार को ग्वाले पर शक हुआ। इसकी जांच के लिए एक दिन जमींदार ने छुपते-छुपाते ग्वाले का उस समय पीछा किया जब वह मवेशियों को चराने जा रहा था। वहां जमींदार ने देखा कि उक्त गाय अन्य मवेशियों से अलग होकर एक तरफ बढ गई। गाय का पीछा करने पर जमींदार ने देखा कि गाय जमीन पर उभरे एक शिवलिंगके पास खडी हो गई और अपने-आप उसके थन से दूध की धारा निकलकर शिवलिंगपर गिरने लगी। सारा दूध शिवलिंगपर चढाने के बाद गाय वहां से वापस लौट आई। उस शाम को गाय ने जमींदार के घर इतना दूध दिया कि मानों कई दिनों का दूध एक ही समय में उतर आया। इसके बाद जमींदार रोजाना गाय का दूध ले जाकर उस शिवलिंगपर चढाने लगा। शिवरात्रि के दिन वहां नीवं पत्थर रखकर जमींदार ने मंदिर का निर्माण शुरू कराया। चूना व माशकी दाल के मिश्रण से दीवारें तैयार की गई। तभी एक अदभुतघटना घटी। मंदिर की दीवारें दरवाजे तक पहुंचते ही गिर जाती थी। एक रात भगवान शंकर ने उसे स्वप्न में मंदिर का मुख उत्तर दिशा की तरफ रखने को कहा। जमींदार ने ऐसा ही किया और उसके बाद काम पूरा करने में कोई अडचन नहीं आई और पहली बैसाखी को मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। तब से प्रत्येक वर्ष वहां पहली बैसाखी को प्रसाद बांटा जाने लगा। आहिस्ता-आहिस्ता वह मेले में रूप में बदल गया। आज भी वहां प्रत्येक वर्ष पहली बैसाखी को मेला लगता है।

बताते चले कि वजीर जोरावर सिंह के मन में विचार आया कि महादेव मंदिर की बजाय बैसाखी मेला रियासीके विजयपुरस्थित उनके किले के नजदीक लगना चाहिए। इसलिए उन्होंने बैसाखी मेला विजयपुरमें लगाने के लिए इलाके में ढिंढोरापिटवा दिया। उस वर्ष मेला विजयपुरमें लगा। बैसाखी की सुबह जब महादेव मंदिर में लोग पूजा-अर्चना करने पहुंचे तो यह देख हैरान रह गए कि शिवलिंगमें दरार आ गई है और उसमें से खून बह रहा था। मेले की कोई रौनक यहां न दिखने पर जब उन्होंने यहां के पुजारियों से बात कि तो पुजारियों ने शिवलिंगकी दरार पर मक्खन का लेप किया और आशंका जताई कि शायद यहां से मेला उठा लिए जाने के कारण भगवान शंकर को अच्छा नहीं लगा और शिवलिंगमें दरार आ गई। उसी दिन वजीर के साथ कुछ अनहोनी घटनाएं होने लगी। उन्हें जब शिवलिंगमें दरार आने व वहां से खून बहने की जानकारी मिली तो उन्होंने तुरंत विजयपुरसे मेला उठवा कर ढोल-नगाढों के साथ वापस महादेव मंदिर में मेला लगवाया। उन्होंने नंगे पांव मंदिर में जाकर क्षमा याचना की। वजीर ने चिनाब से लाए एक पत्थर को शिवलिंगसे स्पर्श करा कर उसे अपने किले में शिवलिंगके रूप में स्थापित किया और उसकी पूजा-अर्चना करते रहे। इसके बाद वजीर का यश चारों ओर फैलने लगा और उन्होंने कई इलाकों पर विजय पाई। वजीर जोरावर सिंह प्रत्येक वर्ष बैसाखी के दिन महादेव मंदिर में शिवलिंगपर मक्खन का लेप कर पूजा-अर्चना में शामिल हुआ करते थे। महादेव मंदिर के शिवलिंगमें आई दरार को आज भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जुडी है कई चमत्कारी घटनाएं

-स्थानीय महादेव मंदिर से जुडी कई चमत्कारी बातें सुनने को मिलती हैं। बताते है कि इस मंदिर के साथ स्थित पीपल के एक वृक्ष ने मंदिर को अपनी शाखाओं से लपेट रखा था। वृक्ष के गिरने से मंदिर को नुकसान पहुंचने की आशंका थी। अचरज की बात यह है कि एक सुबह लोग यह देख हैरान रह गए कि पीपल का वृक्ष मंदिर के समीप वाले सरोवर में ऐसे पडा था की मानों किसी ने बडी सावधानी से उठाकर उसे सरोवर में रख दिया हो।

लगभग तीन दशक पहले पुंछके एक शिवभक्तने मंदिर में कुछ मरम्मत कार्य कराया। उसके मन में विचार आया कि इस पवित्र शिवलिंगको उसकी सतह सहित उठा कर शिवलिंगको जमीन की सतह से कुछ ऊंचा किया जाए। इस विचार से उसने शिवलिंगके ईद-गिर्द खुदाई करानी शुरू कराई। लेकिन शिवलिंगकी सतह का शायद कोई अंत नहीं था, इसलिए उसने अपना विचार छोडकर खोदे गए स्थान को दोबारा भरवा दिया। करीब चार वर्ष पहले ग्राउंड वाटर विभाग द्वारा हैंडपंप लगाने के लिए मंदिर के समीप मशीन से गहरी ड्रिलिंगकी गई। इसके बाद भी पानी न मिलने से हताश कर्मियों ने जब लोगों की सलाह पर मंदिर में पूजा-अर्चना की तो थोडे से प्रयास के बाद ही जमीन पानी निकल पडा। स्थानीय लोगों ने उस हैंडपंप से निकलने वाले पानी को शिवगंगा नाम दिया। मंदिर के समीप स्थित कई बट वृक्ष भी लोगों के लिए पूज्यनीयहै। स्थानीय लोगों का मानना है कि किसी भी कारणवश जब किसी बट वृक्ष की कोई टहनी टूटती है तो चंद रोज में ही इलाके में कोई न कोई स्वर्ग सिधार जाता है। लोगाें का यह भी कयास है कि यह स्थान योगी महात्माओं की तपोस्थलीरही होगी। मंदिर के ईद-गिर्द कई योगी महात्माओं ने समाधियां ले रखी है। इसका अदभुतदृश्य कुछ वर्ष पहले तब देखने को मिला जब मंदिर को इसकी ख्याति के अनुसार बनाए जाने के लिए इसे श्राइनबोर्ड के अधीन कर दिया गया। बोर्ड द्वारा मंदिर का डीजानइनतैयार कर पीडब्ल्यूडीविभाग को इसके निर्माण का जिम्मा सौंपा गया। नए मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तो मंदिर के इर्द-गिर्द हुई खुदाई में जमीन के भीतर बैठे हुए मुद्रा में योगी महात्माओं की कई समाधियां नजर आई। इसे वहां कई मुलाजिमों के अलावा अन्य लोगों ने भी देखा। उन्होंने कानों में बडे-बडे बावली कुंडल पहन रखे थे। उन समाधियों से बिना कोई छेडछाड किए मंदिर के नींव व पिलरबनाने का काम पूरा कर लिया गया। लेकिन मंदिर के मुख्य द्वार के दाएं और बाएं के दो पिलरइसलिए नहीं बन पाए, क्योंकि वहां दो योगियों की समाधियां थी। इसलिए मंदिर के डिजाइन में हल्का फेरबदल कर वहां पिलरनहीं बनाए गए। उन दो समाधियों में एक की ऊपरी जमीन को कच्चा छोड दिया गया। वहां आज भी पूजा की जाती है । मंदिर में होने वाले मुख्य आयोजन

-क्षेत्र के किसान प्रत्येक वर्ष चैत्र चौदशके दिन मंदिर में हवन यज्ञ कर प्रसाद वितरित करते है, ताकि समय पर बारिश हो और उनकी फसल अच्छी हो।

-महाशिवरात्रि पर मंदिर में चार पहर पूजा, यज्ञ भंडारा व विशाल लंगर का आयोजन।

-बैसाखी के दिन मेला और विशाल दंगल का आयोजन।

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