रुद्राक्ष के उद्भव के विषय में शिवपुराण में एक कहानी है। इसके अनुसार, हजारों वर्ष तक तप करने के बाद भगवान शिव ने जब आंखें खोलीं, तो उनकी आंखों से एक-एक करके कई बूंदेंटपक पडीं। यही बूंदेंबाद में रुद्राक्ष का वृक्ष बन गई। पुराणों में यह उल्लेख मिलता है कि रुद्र का जन्म ब्रह्मा की आंखों से हुआ था। माना जाता है कि शिव जब क्रोधित होते हैं, तो वे रुद्र कहलाते हैं।
रूप की दृष्टि से अनेक प्रकार के रुद्राक्ष पाए जाते हैं, जैसे-एकमुखी से चतुर्दश तक। एकमुखीतथा पंचमुखीरुद्राक्ष को साक्षात शिव का स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने से हमें भक्ति तथा मुक्ति की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि द्वि-मुखी रुद्राक्ष धारण करने से गोवध का पाप नष्ट हो जाता है। त्रि-मुखी रुद्राक्ष धन तथा विद्या प्रदान करते हैं। चतुर्मुखी रुद्राक्ष को साक्षात ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता हैं। षष्ठमुखीरुद्राक्ष दाहिनी बांह में धारण करना चाहिए। वह स्कंद का प्रतीक है।
सप्तमुखीरुद्राक्ष को धारण करने से निर्धन भी धन-धान्य से पूर्ण हो जाते हैं। अष्टमुखीबटुकभैरव का प्रतीक है। नवमुखीदुर्गा का प्रतीक है, दसमुखीजनार्दन का। एकादशमुखीरुद्रस्वरूप,द्वादशमुखीसूर्यस्वरूप,त्रयोदशमुखीविश्वदेवका प्रतीक है। चतुर्दशमुखीरुद्राक्ष को मस्तक पर धारण करना चाहिए, क्योंकि यह साक्षात् आनंददाताशिव का प्रतीक माना जाता है।
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