सोमवार, 29 दिसंबर 2008

अकाल मृत्यु से बचाता है मृत्युंजय

भगवान शंकर की उपासना अनेक रूपों में होती है। अकाल मृत्यु के भय-नाश तथा पूर्णायु की प्राप्ति के उद्देश्य से शिवजी के मृत्युंजय रूप की आराधना की जाती है। मृत्युंजय अपने भक्त की अपमृत्यु और दुर्गति से रक्षा करने में पूर्ण समर्थ हैं। भगवान मृत्युंजय के ध्यान एवं उनके मंत्र के जप से निíमत सुरक्षा-चक्र को भेदने की क्षमता यमराज में भी नहीं है। अकाल मृत्यु पर विजय पाने के लिए मानव सदा से प्रयत्नशील रहा है। मनुष्य पूर्णायु का सुख तभी भोग सकता है, जब वह अकाल मृत्यु का ग्रास न बने।

मंत्रशास्त्रमें वेदोक्त

˜यम्बकं यजामहेसुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्

को ही मृत्युंजय मंत्र माना गया है। तंत्रविद्याके ग्रंथों में मृत्युंजय मंत्र के अनेक स्वरूपों तथा प्रयोगों का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद में भी मृत्युंजय-योग मिलते हैं जिनके सेवन से प्राणी दीर्घायु होता है। ज्योतिषशास्त्र में जन्मकुण्डली में मारकेशकी दशा के समय मृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान निíदष्ट है।

मृत्युंजय मंत्र के साधक के लिए महादेव के मृत्युंजय रूप की जानकारी परमावश्यक है। मृत्युंजय देव का ध्यान इस प्रकार करें-

हस्ताभ्याम्कलशद्वयामृत-रसैराप्लावयन्तंशिरोद्वाभ्यांतौदधतंमृगाक्षवलयेद्वाभ्यांवहन्तंपरम्।

अङ्कन्यस्तकरद्वयामृतघटंकैलासकान्तंशिवंस्वच्छाम्भोजगतंनवेन्दुमुकुटं

देवंत्रिनेत्रंभजे॥

भगवान मृत्युंजय ऊपर के दोनों हाथों में स्थित दो कलशों के द्वारा अपने सिर को अमृतरससे सींच रहे हैं। वे अन्य दो हाथों में मृगमुद्रातथा वलयाकार रुद्राक्षमालाधारण किए हुए हैं। नीचे के दो हाथों में वे अमृत-कलश (घट) लिए हुए हैं। इस प्रकार आठ हाथों वाले, कैलास पर्वत पर स्थित स्वच्छ कमल पर विराजमान, ललाट पर बालचंद्र को मुकुट रूप में धारण किए, त्रिनेत्र, मृत्युंजयदेवका मैं ध्यान करता हूं।

पूर्वोक्त मृत्युंजय मंत्र का जप शुरू करने से पूर्व दाहिने हाथ में जल लेकर यह विनियोग पढें-

ॐअस्यश्री˜यम्बकमन्त्रस्यवशिष्ठ-ऋषि: अनुष्टुप्छन्द: ˜यम्बक-पार्वतीपतिर्देवता ˜यंबीजम्,बंशक्ति:, कंकीलकम्,मम सर्वरोगनिवृत्तये जपे विनियोग:। विनियोग का जल पृथ्वी पर छोडने के बाद ऋष्यादिन्यासमें मंत्र पढते हुए दाहिने हाथ से सम्बन्धित अंगों को छुएं-वशिष्ठऋषयेनम:-शिरसि (सिर), अनुष्टुप्छन्दसेनम:-मुखे (मुंह), ˜यम्बकदेवतायैनम:-हृदये (हृदय), ˜यंबीजायनम:-गुह्ये (गुह्यांग), बंशक्तयेनम: -पादयो: (पैर), कंकीलकायनम:- नाभौ(नाभि), विनियोगायनम:- सर्वागे(संपूर्ण शरीर)।

मृत्युंजय मंत्र को 6भागों में विभक्त करके उनसे क्रमश:करन्यासऔर हृदयादिन्यासइस प्रकार करें-ॐ ˜यम्बकं-अंगुष्ठाभ्याम्नम:दोनोंहाथों की तर्जनी अंगुलियों से दोनों अंगूठोंका स्पर्श, यजामहे-तर्जनीभ्याम्नम: दोनों हाथों के अंगूठोंसे दोनों तर्जनी अंगुलियों का स्पर्श , सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्-मध्यमाभ्याम्नम:अंगूठोंसे मध्यमा अंगुलियों का स्पर्श, उर्वारुकमिवबन्धनान्-अनामिकाभ्याम्नम: अनामिका अंगुलियों का स्पर्श, मृत्योर्मुक्षीय-कनिष्ठिकाभ्याम्नम: कनिष्ठिका अंगुलियों का स्पर्श, मामृतात्-करतलकरपृष्ठाभ्याम्नम:हथेलियोंऔर उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श।

ॐ˜यम्बकं-हृदयायनम: दाहिने हाथ की अंगुलियों से हृदय का स्पर्श, यजामहे-शिरसेस्वाहा सिर का स्पर्श, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्-शिखायैवषद्शिखा का स्पर्श, उर्वारुकमिवबन्धनान्-कवचायहुम्दाहिने हाथ की अंगुलियों से बाएं कंधे का और बाएं हाथ की अंगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श करें, मृत्योर्मुक्षीय-नेत्रत्रयायवौषट्दाहिने हाथ की तर्जनी,मध्यमा,अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श, मामृतात्-अस्त्रायफट् यह पढकर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से दाहिनी तरफ पीछे की ओर ले जाकर बायीं तरफ से आगे की ओर लाएं और दाहिने हाथ की तर्जनी तथा मध्यमा अंगुलियों से बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाएं।

मंत्र के जप से पूर्व उसका विनियोग करने से साधक का उद्देश्य सफल होता है तथा अंगन्यास करने से शरीर साधना के उपयुक्त बनता है। यह प्रक्रिया जटिल नहीं है, बस जरूरत है इसे एक बार समझने की। विनियोग एवं अंगन्यास के बिना जप करने से मंत्र की शक्ति क्षीण होती है। मृत्युंजयदेवके शास्त्रोक्त स्वरूप का ध्यान करने के उपरांत रुद्राक्ष की माला पर मृत्युंजय मंत्र को जपें। मंत्र जपने वाले को मृत्युंजय मंत्र का अर्थ भी मालूम होना चाहिए। इस मंत्र का अर्थ है-दिव्यसुगन्ध से युक्त, मृत्युरहित,पुष्टिवर्धक,त्रिनेत्र रुद्र की हम पूजा करते हैं। वे रुद्र हमें अकाल मृत्यु के भय तथा भव-बन्धन से मुक्त करें। जिस प्रकार ककडी (फूट) का फल पक जाने पर अपने डंठल से छूट जाता है, उसी तरह हम भी अपमृत्यु से दूर हो जाएं किन्तु अमृत से हमारा संबंध छूटने न पाए।

˜यम्बक मंत्र में कई प्रकार के सम्पुट लगाकर भी उसे जपा जा सकता है। ˜यम्बक (मृत्युंजय) मंत्र के पुरश्चरण में इसका एक लाख जप करके,उसकी दशांश संख्या में (दस हजार)हवन करें। बेल, तिल, खीर, घी, दूध, दही, दूर्वा तथा बरगद, पलाश एवं खैर की समिधा- इन दस वस्तुओं से होम करें।

एतत्पश्चात्होम (दस हजार) की क्रमश:उत्तरोत्तर दशांश संख्या में तर्पण (एक हजार), मार्जन (सौ) करके दस विद्वानों को भोजन कराएं। इस प्रकार सविधि पुरश्चरण करने से मंत्र सिद्ध हो जाएगा और तब साधक मंत्र का प्रयोग अपना अभीष्ट सिद्ध करने केलिएकर सकता है।

संपत्ति की प्राप्ति हेतु मृत्युंजय मंत्र पढकर बेल की समिधा से दस हजार आहुतियां दें। ब्रह्मतेजके लिए पलाश की समिधा, पापों केनाशहेतु तिल से, अकाल मृत्यु एवं शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए पीली सरसों से, श्री एवं कीíत हेतु खीर से, दूसरे के द्वारा किए गए कृत्या आदि अभिचार कर्मो (तांत्रिक प्रयोगों) को नष्ट करने के लिए दूध में भीगे अन्न से दस हजार आहुतियां दें। जो व्यक्ति अपने जन्मदिवस के दिन गाय के दूध से भीगी दूब और गोदुग्धसे निíमत घी द्वारा दो हजार आहुतियां देगा, वह समस्त रोगों से मुक्त होकर शतायु होगा। प्रदोष व्रत करते हुए प्रदोषकालमें घी और दूध से सिक्त अन्न से होम करने वाले का आर्थिक संकट छह मास में दूर हो जाएगा। जो साधक स्नान करने के बाद सूर्यनारायण की ओर मुख करके मृत्युंजय मंत्र का नित्य एक हजार जप करेगा, वह सब आधि-व्याधि से मुक्त होकर दीर्घायु होगा।

स्त्रियां एवं यज्ञोपवीत धारण न करने वाले पुरुष पूर्वोक्त ˜यम्बक मंत्र के बजाय इस पौराणिक मृत्युंजय मंत्र को जपें-

मृत्युंजयायरुद्रायनीलकण्ठायशम्भवे।

अमृतेशायशर्वायमहादेवायतेनम:॥

यह सब करने में असमर्थ रोगी आरोग्यताहेतु यह सरल लघु मृत्युंजय मंत्र जप सकते हैं-

ॐजूँ स:माम्पालयपालयस:जँू ॐ।यदि आप किसी दूसरे व्यक्ति के लिए जप करना चाहते हों तो मंत्र में माम् के स्थान उसके नाम का उच्चारण करें।

मृत्युंजय मंत्र में लोगों का सदा से ही बडा विश्वास रहा है। युग बदला-समय बदला पर इस महामंत्र के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था कभी नहीं डिगी। इस महामंत्र ने कभी भी अपने साधक को निराश नहीं किया। मृत्युंजय मंत्र अपने नाम के अनुरूप फल देने वाला है। लोगों की यह दृढ मान्यता है कि मृत्युंजयदेवकी शरण में रहने वाले की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती।

साभार : डा. अतुल टण्डन

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