सोमवार, 29 दिसंबर 2008

सर्वव्यापक और मंगलमय

यस्यप्रणम्य चरणौवरदस्यभक्त्या

स्तुत्वाचवाग्भिरमलाभिरतंद्रिताभि:।

दीप्तैस्तमासिनुदतेस्वकरैर्विवस्वां

तंशंकरंशरणदंशरणंव्रजामि॥

जिन वरदायक भगवान के चरणों में भक्तिपूर्वकप्रणाम करने तथा आलस्य रहित निर्मल वाणी द्वारा जिनकी स्तुति करके सूर्य देव अपनी उद्दीप्त किरणों से जगत का अंधकार दूर करते हैं, उन शरणदाताभगवान शंकर की शरण ग्रहण करता हूं।

ॐनम: शिवाय

भगवान शिव सर्वव्यापक हैं। सर्वोपरि हैं। सर्वश्रेष्ठ भी हैं। न तो उनके नामों का अंत है और न ही विशेषणों का। वही प्रभु हैं। अपने हाथ में त्रिशूल धारण करने के कारण त्रिशूलधारीया शूलपाणिकहलाते हैं। वह विभु हैं। वह विश्वनाथ हैं अर्थात् समस्त संसार के मालिक हैं। इस अर्थ में सभी प्राणियों के रक्षक हैं। शिव महादेव हैं अर्थात् देवों के देव के रूप में पूज्य हैं। वह शंभु हैं, ईशोंमें महान हैं। उनसे बडा कोई नहीं है। उनके तीन नेत्र हैं, इसलिए वह त्रिनेत्रधारीकहे जाते हैं। वह मां पार्वती के कांतस्वरूपहैं। पार्वती के प्राणबल्लभहैं। वह अचल, अविनाशी होने के कारण शांत हैं। रतिपतिकामदेव के एकमात्र संहारक भी शिव ही हैं। अपने अत्याचार से संसार में त्राहि-त्राहि मचा देनेवाले, त्रिपुर दैत्य का अंत करनेवाले यही भगवान शिव त्रिपुरारि हैं। अजन्मा, नित्य, समस्त कारणों के भी कारण, अनादि, अनंत शिव के अतिरिक्त न तो कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न ही गणनीयहै। सभी गुणों का सार शिवत्व ही है। इसलिए उनकी स्तुति में कहा गया है-

प्रभोशूल पाणे,विभोविश्वनाथ:,

महादेव शंभोमहेश: त्रिनेत्र:।

शिवाकान्त शान्त स्मरारेपुरारे

त्वदन्योवरेण्योन मान्योन गण्य:॥

शिव सर्व कल्याणकारी हैं। यह जल्द प्रसन्न होनेवाले देवता हैं। बाबा भोले शंकर सर्वसुलभ भी हैं। इनकी पूजा-अर्चना भी अत्यंत सरल है। यह तो जल की एक धारा से भी प्रसन्न हो जाते हैं। अगर गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाए तब तो कहना ही क्या? कभी भी जाने अनजाने एक विल्वपत्रभी चढाना महान फलदायक होता है।

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