द्राक्षारामम, आंध्र प्रदेश। ये वो ही जगह है जहां शिवलिंग के दो हिस्सों की पूजा होती है। यहां शिवलिंग के एक हिस्से की पूजा पहली मंजिल पर होती है और दूसरे हिस्से की पूजा दूसरी मंजिल पर। ये शिवलिंग दो भागों में कैसे बंटा इसके पीछे भी एक बड़ी कहानी है। महाभारत काल में इस जगह पर वेद व्यास ने भी महाशिवलिंग की पूजा की थी। इस जगह पर शिव की पूजा का फल उतना ही होता है जितना वाराणसी के विश्वनाथ की पूजा से।कहते हैं कि किसी वजह से शिव पूजा के लिए वेद व्यास वाराणसी नहीं जा सके इसलिए वो पूजा के लिए इस जगह पर चले आए।
सामर्लकोटा में भी है ऐसा शिवलिंग
सामर्लकोटा। द्राक्षारामम, आंध्र प्रदेश से थोड़ी ही दूरी पर ईस्ट गोदावरी में ही सामर्लकोटा नाम की एक जगह है जहां ठीक ऐसे ही शिवलिंग की पूजा होती है। वहां भी शिवलिंग की दो भागों में पूजा होती है। पांच जगहों पर गिरे शिव का ये दूसरा लिंग है। लेकिन द्राक्षारामा वाले शिवलिंग की विशेषता ये है कि वहां पर सभी देवताओं ने पूजा अर्चना की थी। सभी सूर्य और चंद्रमा समेत सभी देवगण इस जगह पर शिवलिंग की पूजा के लिए आए थे और तब जाकर इस शिवलिंग की वृद्धि रुकी थी। सभी देवगणों की पूजा के बाद शांत होने वाला शिवलिंग का ये इकलौता मंदिर है। सामर्लकोटा का शिवलिंग की पूजा भी दो भागों में होती है। लेकिन इसे शांत करने के लिए खुद शिव के पुत्र कार्तिकेय ने पूजा की थी। दरअसल, हुआ ये कि द्राक्षाराम का शिवलिंग देव पूजा के बाद तो शांत हो गया लेकिन इसके बाद सामर्लकोटा के ये लिंग बढ़ने लगा। इसे शांत करने के लिए कार्तिकेय यहां आए और शिवलिंग की विधिवत पूजा की।
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