सोमवार, 29 दिसंबर 2008

शिवलिंग पूजन की परिपाटी

सर्वत्र मां रक्षतुविश्वमूर्ति

ज्र्योतिर्मयानन्दघनश्चिदात्मा।

अघोरणीयानुरुशक्तिरेक:

सईश्वर: पातुभयादशेषात्॥

संपूर्ण विश्व जिनकी मूर्ति है, जो ज्योतिर्मय आनन्दघनस्वरूप चिदात्मा हैं, वे भगवान शिव मेरी रक्षा करें। जो सूक्ष्म से भी अत्यन्त सूक्ष्म हैं, महान् शक्ति से संपन्न हैं, वे अद्वितीय ईश्वर महादेव जी संपूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें।

ॐनम: शिवाय

ॐतत्पुरुषायविद्यहेमहादेवायधीमहि।

तन्नोरुद्र: प्रचोदयात्।

शिवलिंगके पूजन के प्रारंभ के संबंध में एक पौराणिक कथा है। दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिव जी का भाग नहीं रखा, जिससे कुपित होकर जगज्जननीसती दक्ष के यज्ञ मंडप में योगाग्निद्वारा जल कर भस्म हो गई। माता सती के शरीर त्याग की सूचना प्राप्त होते ही भगवान शिव अत्यंत क्रुद्ध हो गए और वे नग्न हो कर पृथ्वी में भ्रमण करने लगे। एक दिन वह उसी अवस्था में ब्राह्मणों की बस्ती में पहुंच गए। शिव जी को उस अवस्था में देख कर वहां की स्त्रियां मोहित हो गई। यह देख कर ब्राह्मणों ने उन्हें श्राप दे दिया कि उनका लिंग तत्काल शरीर से अलग हो कर भूमि पर गिर जाए। ब्राह्मणों के शाप के प्रभाव से शिव का लिंग उनके शरीर से अलग होकर गिर गया, जिससे तीनों लोकों में उत्पात होने लगा। समस्त देव, ऋषि, मुनि व्याकुल हो कर ब्रह्मा की शरण में गए। ब्रह्मा ने योगबलसे शिवलिंगके अलग होने का कारण जान लिया और वह समस्त देवताओं, ऋषियों और मुनियों को अपने साथ लेकर शिव जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा ने शिव जी की स्तुति वंदना की और उन्हें प्रसन्न करते हुए उनसे लिंग धारण करने का निवेदन किया। तब भगवान शिव ने कहा कि आज से सभी लोग मेरे लिंग की पूजा प्रारंभ कर दें तो मैं पुन:उसे धारण कर लूंगा। शिव जी की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम स्वर्ण का शिवलिंगबना कर उसकी पूजा की। तत्पश्चात् देवताओं, ऋषियों और मुनियों ने अनेक द्रव्यों के शिवलिंगबनाकर पूजन किया। तभी से शिव लिंग के पूजन की परिपाटी प्रारंभ हो गई। शिव लिंग के महात्म्यका वर्णन करते हुए शास्त्रों ने कहा है कि जो मनुष्य किसी तीर्थ की मृत्तिका से शिवलिंगबना कर उनका हजार बार अथवा लाख बार अथवा करोड बार विधि-विधान के साथ पूजा करता है, वह शिवस्वरूपहो जाता है। जो मनुष्य तीर्थ में मिट्टी, भस्म, गोबर अथवा बालू का शिवलिंगबनाकर एक बार भी सविधि पूजन करता है, वह दस हजार कल्पोंतक स्वर्ग में निवास करता है। शिवलिंगका सविधि पूजन करने से मनुष्य संतान, धन, धन्य, विद्या, ज्ञान, सद्बुद्धि,दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति करता है। जिस स्थान पर शिवलिंगकी पूजा होती है, वह तीर्थ न होने पर भी तीर्थ बन जाता है। जिस स्थान पर सर्वदाशिवलिंगका पूजन होता है, उस स्थान पर मृत्यु होने पर मनुष्य शिवलोक जाता है। शिव शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसका बाह्य और अंतकरणशुद्ध हो जाता है। दो अक्षरों का मंत्र शिव परब्रह्मस्वरूपएवं तारक है। इससे अलग दूसरा कोई तारक ब्रह्म नहीं है-

तारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्।

नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥

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