बुधवार, 17 दिसंबर 2008

सिद्ध शक्तिपीठ श्री महामाया देवी मन्दिर रतनपुर - छत्तीसगढ़

बिलासपुर- कोरबा मुख्य मार्ग पर 25 कि.मी. पर स्थित आदिशक्ति महामाया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली हैं। पौराणिक ग्रंथ महाभारत, जैमिनी पुराण आदि में इसे राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं। त्रिपुरी के कलचुरियो ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया। इसे चर्तुयगी नगरी भी कहा जाता हैं जिसका तात्पर्य है कि इसका अस्तित्व चारो युगो में विद्यमान रहा है। राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गांव को रतनपुर नाम देकर अपनी राजधानी बनाया।
श्री आदिशक्ति माँ महामाया देवी : लगभग 1000 वर्ष प्राचीन महामाया देवी का दिव्य एवं भव्य मंदिर दर्शनीय हैं। इसका निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11वी द्गाताब्दी में कराया गया था। 1045 ई। में राजादेव रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गांव में द्गिाकार के जहां रात्रि विश्राम एक वट वृक्ष पर किया, अर्धरात्रि में जब राजा की आँखं खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे आलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चमत्कृत हो गये कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई हैं। इतना देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया तथा 1050 ई। में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया। मंदिर के भीतर महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी की कलात्मक प्रतिमांए विराजमान हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में यंत्र-मंत्र का केन्द्र रहा होगा तथा रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंध गिरा था भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। जिसके कारण माँ के दर्शन से कुंवारी कन्याओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। यह जागृत पीठ हैं जहां भक्तों की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं। नवरात्रि पर्व पर यहां की छटा दर्शनीय होती हैं। इस अवसर पर श्रद्धालुओ द्वारा यहाँ हजारो की संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित किये जाते हैं।
श्री काल भैरवी मंदिर : यहां पर काल भैरव की करीब 9 फुट ऊँची भव्य प्रतिमा विराजमान हैं। कौमारी शक्ति पीठ होने के कारण कालांतर में तंत्र साधना का केन्द्र था। बाबा ज्ञानगिरी ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।
श्री खंडोबा मंदिर: यहां शिव तथा भवानी की अशवारोही प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर का निर्माण मराठा नरेश बिंबाजी भोसले की रानी ने अपने भतीजे खांडो जी के स्मृति में बनवाया था। किवदंती है कि मणि मल्ल नामक दैत्यों के संहार के लिये भगवान शिव ने मार्तण्ड भैरव का रूप बनाकर सहयाद्री पर्वत पर उनका संहार किया था। खंडोबा मंदिर के पार्शव में प्राचीन एवं विशाल सरोवर दुलहरा तालाब स्थित हैं।
श्री महालक्ष्मी देवी मंदिर : रतनपुर - कोटा मुख्य मार्ग पर इकबीरा पहाड़ी पर श्री महालक्ष्मी देवी का ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं। इसका निर्माण राजा रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री गंगाधर ने करवाया था। इसका स्थानीय नाम लखनदेवी मंदिर भी हैं। यहाँ नवरात्रि के पर्व पर मंगल जवारा बोया जाता हैं तथा धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
जुना शहर तथा बादल महल : लखनी देवी मंदिर के आगे मुख्य मार्ग पर ऐतिहासिक जूना शहर नामक बस्ती स्थित है इसे राजा राजसिंह ने राजपुर के नाम से बसाया था। साथ ही उन्होने यहाँ अपनी प्रिय रानी कजरा देवी के लिए यह बेजोड़ नमूने है इसमें सात मंजिले थी इसे सतखंडा महल भी कहा जाता है किन्तु वर्तमान में इसकी दो ही मंजिले शेष रह गयी है। महल के पास ही अस्तबल तथा जूनाशहर में कोकशाह द्वारा निर्मित कोको बावली एवं कंकन बावली हैं।
हजरत मूसे खां बाबा का दरगाह : यह जूना शहर की पहाड़ी पर स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक दरगाह हैं।
हाथी किला : रतनपुर बस स्टैण्ड के पास राजा पृथ्वी देव द्वारा निर्मित ऐतिहासिक हाथी किला का पुरावशेष स्थित हैं। यह किला चारो ओर से खाइयो से घिरा है। किले में चार द्वार सिंह, गणेश द्वार, भैरव द्वार, तथा सेमर द्वार बने हुए हैं। सिंह द्वार बायी ओर गंधर्व, किन्नर, अप्सरा एवं देवी देवताओं के साथ ही दशानन रावण अपना सिर काटकर यज्ञ करते हुए उत्कीर्ण हैं। इसके आगे एक विशाल प्रस्तर प्रतिमा है जिससे सिर एवं पैर का अंश शेष हैं। यह वीर गोपाल राय (गोपाल वीर) के नाम से जानी जाती हैं। यह कहा जाता है कि गोपाल वीर की वीरता से प्रभावित होकर मुगल बादशाह जहांगीर ने राजा कल्याण साय को अनेक उपाधियां दी तथा रतरपुर से लगान लेना बंद कर दिया था। इसके पश्चात गणेश द्वार हैं जहां हनुमान जी की प्रतिमा हैं। यहां से आगे जाने पर मराठा सामाज्ञी अनन्दी बाई द्वारा निर्मित लक्ष्मी नारायण मंदिर अवस्थित है। इसके आगे जगन्नाथ मंदिर स्थित है जिसका निर्माण राजा कल्याण साय ने करवाया था। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा एवं बलभद्र की प्रतिमा स्थापित हैं। साथ ही यहां भगवान विष्णु, राजा कल्याण साय तथा देवी अन्नापूर्ण की सुन्दर प्रतिमाएं भी हैं। इस मंदिर के पार्श्व भाग में रनिवास एवं महल के अवशेष विद्यमान हैं। इस किले की अंतिम द्वार मोतीपुर की ओर है जहां बीस दुआरिया तालाब के किनारे राजा लक्ष्मण साय की 20 रानियां सती हुई थी। इन्हीं की स्मृति में यहां बीस दुआरिया मंदिर बनवाया गया है |
रामटेकरी : इस पहाड़ी पर श्री राम पंचायत का भव्य एवं ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं। गर्भगृह में भगवान राम, देवी सीता, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न की प्रतिमा एवं पंचायत शैली में विराजमान हैं। भगवान राम की प्रतिमा के अंगूठे सेजल की धारा प्रभावित होती है। साथ ही सभा मण्डप में भगवान विष्णु तथा हनुमान जी की प्रतिमा हैं। सभागृह के आगे रानी अनन्दी बाई द्वारा निर्मित राजा बिंबाजी का मंदिर है।
वृद्धेद्गवर महादेव मंदिर : रामकेटरी के नीचे की ओर राजा पृथ्वीदेव द्वितीय द्वारा निर्मित यह मंदिर अत्यंत ही अद्भुत है। यहां विराजित शिवलिंग स्वयंभू है। स्थानीय लोगो में यह बूढ़ा महादेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।
गिरजावर हनुमान मंदिर : रामकेटरी मार्ग में पूर्व दिशा की ओर राजा पृथ्वी देव द्वितीय द्वारा निर्मित सिद्ध दक्षिणमुखी हनुमान जी का ऐतिहासिक मंदिर हैं। हनुमान जी की इस कलात्मक प्रतिमा में उनके कांधे पर श्री राम व लक्ष्मण बैठे हुए पैरों के नीचे अहिरावण दबा हैं। इसी परिसर में श्री रामजानकी तथा शिव मंदिर भी स्थित है।
कण्ठीदेवल मंदिर : श्री महामाया देवी मंदिर परिसर में श्री नीलकंठेद्गवर महादेव का भव्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर का पुन: निर्माण केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा कराया गया हैं। राष्ट्रीय धरोहर सूची में शामिल यह मंदिर 15वी शताब्दी में निर्मित हैं। इसके चार प्रवेश द्वार है तथा आस पास के क्षेत्रों से पायी प्रतिमाओं का अस्थायी संग्रहालय है तथा स्थायी संग्रहालय निर्माणधीन हैं।
बैरागवन एवं बीस दुवारिया मंदिर : श्री महामाया देवी मंदिर के पीछे कुछ दूरी पर आम्रकुंजो से घिरे बैरागवन में तालाब तथा इसके किनारे पर भगवान नर्मदेश्वर महादेव का मंदिर एवं दूसरी ओर राजा राजसिंह का भव्य स्मारक है जिसे बीस दुवारिया मंदिर कहते हैं। यह मंदिर मूर्ति विहिन हैं तथा 20 द्वारों युक्त है। बैरागवन के पास ही खिचरी केदारनाथ का प्राचीन मंदिर स्थित हैं।
श्री रत्नेश्वर महादेव मंदिर : करैहांपारा में रत्नेश्वर तालाब के किनारे स्थित हैं। यह राजा रत्नदेव द्वारा स्थापित किया गया था। यहीं पर वेद-रत्नेश्वर तालाब के किनारे चार सौ वर्ष पुराना कबीर आश्रम है जिसकी स्थापना कबीर पंथ के श्री सुदर्शन नाम साहेब ने की थी।
भुवनेश्वर महादेव मंदिर : रतनपुर-चपोरा मार्ग पर कृष्णार्जुनी तालाब के किनारे यह प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान भास्कर (सूर्यदेव) की प्रतिमा भी स्थापित है तथा इसे सुर्यश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर एवं शिवलिंग ज्यामितीय आधार पर निर्मित है। गर्भगृह में प्रवेश द्वार पर शिलालेख उत्कीर्ण है।
खूंटाघाट बाँध : मनोहरी प्राकृतिक द्रश्यों से भरपूर यह बांध पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। भाद्रमास में गणेश चतुर्थी के दिन यहां मेला लगता है। इसका निर्माण अंग्रेजो के काल में हुआ। 1926 में यह बनकर तैयार हुआ। इस जलाशय के नीचे की ओर सुन्दर उद्यान है तथा ऊपर पहाड़ी पर रेस्ट हाऊस बना हुआ है। यह वाटर स्पोर्ट्स की दृष्टि से उत्तम स्थान है।
अन्य दर्शनीय स्थल-
पाला का शिव मंदिर - रतनपुर से 25 किमी। की दूरी पर स्थित ग्राम पाली में बाणवंशिया शासक विक्रमादित्य प्रथम(870-895 ई।) द्वारा निर्मित लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन शिवालय आज भी प्राचीन मूर्तिकला और इतिहास को अपने आंचल में समेटे एक सुन्दर सरोवर के तट पर स्थित है। इस मंदिर का जीर्णोद्वार कलचुरि वंश के शासक जाज्वल्य देव द्वारा कराया गया। मंदिर में कुछ स्थानों पर (श्री मज्जाजल्ल देवस्य कीर्तिमय) खुदा हुआ है। मंदिर के बाह्य भित्ति, सभामंडप तथा गर्भगृह के द्वार पर देवी-देवताओं, नायक-नायिकाओं की मूर्तियां, अलंकरण, योग, मुद्राओं को बहुत ही बारीकी से उत्कीर्ण किया गया। इसे देखकर इसकी तुलना आबू पर्वत के जय मंदिरो से की जा सकती हैं। खजुराहो, कोणार्क तथा भोरमदेव आदि की दक्षिण कौशल शैली में भित्तियों पर मिथुन मूर्तियों का उत्कृष्ट चित्रण मिलता हैं।
लाफागढ़(चैतुरगढ़) : ग्राम पाली से लगभग 15 कि।मी। दूरी पर पहाड़ी श्रंखला पर ऐतिहासिक लाफागढ़ स्थित है। गढ़ मंडला के गोड़ राजा संग्राम शाह बावन गढ़ों में लाफागढ़ का राजनैतिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व था। यहां चैतुरगढ़ का किला भी स्थित है जिसे 14वीं सदी में कलचुरि शासक बहार साय ने बनवाया था। अंग्रेजो की सर्वे रिपोर्ट में कहा गया - मैनें इससे दुर्गम और सुरक्षित किला नहीं देखा। यह किले के भीतर सरोवर के किनारे महामाया देवी का एक पूर्वभिमुख प्राचीन मंदिर भी स्थित है।
कैसे पहुंचे-
वायु मार्ग - रायपुर(141कि।मी।) निकटतम हवाई अड्डा है।
रेल मार्ग - हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर बिलासपुर(25कि।मी।) समीपस्थ रेलवे जंक्द्गान है।
सड़क मार्ग - बिलासपुर से रतनपुर के लिए हर एक घंटे में बस तथा टैक्सी इत्यादि वाहन की सुविधा है।
आवास व्यवस्था - रतनपुर में शासकीय विश्राम गृह है तथा महामाया मंदिर ट्रस्ट की ओर से एक सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला की व्यवस्था है, साथ ही नगर में दो-तीन और धर्मशालाएं है। इसके अतिरिक्त बिलासपुर में विश्राम गृह तथा आधुनिक सुविधाओं से युक्त अनेक होटल के लिये उपयुक्त स्थल हैं।