बुधवार, 22 अप्रैल 2009

नर्मदा का हर कंकर शंकर

पुण्याकनखलेगंगा कुरुक्षेत्रेसरस्वती।

ग्रामेवायदि वारण्येपुण्यासर्वत्र नर्मदा।

त्रिभि:सारस्वतंपुण्यंसप्ताहेनतुयामुनम्।

सद्य:पुनातिगाङ्गेयंदर्शनादेवनर्मदाम्।

गंगा हरिद्वार तथा सरस्वती कुरुक्षेत्र में अत्यंत पुण्यमयीकही गयी है, किंतु नर्मदा चाहें गांव के बगल से बह रही हो या जंगल के बीच, वे सर्वत्र पुण्यमयीहैं। सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुनाजीका एक सप्ताह में तथा गंगाजीका जल स्पर्श करते ही पवित्र कर देता है किन्तु नर्मदा का जल केवल दर्शन मात्र से पावन कर देता है।

पुराणों में पुरुरवातथा हिरण्यतेजाके तप से नर्मदा जी के पृथ्वी पर पधारने की कथा का विस्तार से वर्णन है। भूलोक में भगवती नर्मदा का आगमन इनकी कठोर तपस्या के फलस्वरूप ही हुआ। स्कन्दपुराणका रेवाखण्डइस संदर्भ में पर्याप्त प्रकाश डालता है। वह स्थान अतिपवित्रहै, जहां नर्मदा जी विद्यमान हैं। नर्मदा के तट पर जहां कहीं भी स्नान, दान, जप, होम, वेद-पाठ, पितृ-तर्पण, देवाराधन, मंत्रोपदेश, सन्यास-ग्रहण और देह-त्याग आदि जो कुछ भी किया जाता है, उसका अनंत फल होता है। माघ, वैशाख अथवा कार्तिक की पूर्णिमा, विषुवयोग, संक्रान्तिकाल, व्यतिपातएवं वैधृतियोग, तिथि की वृद्धि अथवा क्षय (हानि), मन्वादि, युगादि, कल्पादितिथियों में नर्मदा का सेवन अक्षय पुण्य प्रदान करता है। नर्मदा में स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अश्वमेध जो यज्ञ का फल प्राप्त होता है। प्रात:काल उठकर नर्मदा का कीर्तन करता है, उसका सात जन्मों का किया हुआ पाप उसी क्षण नष्ट हो जाता है। नर्मदा के जल से तर्पण करने पर पितरोंको तृप्ति और सद्गति प्राप्त होती है।

स्कन्दपुराणके अनुसार नर्मदा का पहला अवतरण आदिकल्पके सत्ययुग में हुआ था। दूसरा अवतरण दक्षसावर्णिमन्वन्तर में हुआ। तीसरा अवतरण राजा पुरुरवाद्वारा वैष्णव मन्वन्तर में हुआ। नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, उसका जल पीने तथा नर्मदा का स्मरण एवं कीर्तन करने से अनेक जन्मों के घोर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। नर्मदा समस्त सरिताओं में श्रेष्ठ है। वे सम्पूर्ण जगत् को तारने के लिये ही धरा पर अवतीर्ण हुई हैं। इनकी कृपा से भोग और मोक्ष, दोनो सुलभ हो जाते हैं।

धर्मग्रन्थों में नर्मदा में प्राप्त होने वाले बाणलिंग (नर्मदेश्वर)की बडी महिमा बतायी गई है। नर्मदेश्वर (बाणलिंग) को स्वयंसिद्ध शिवलिंगमाना गया है। इनकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती। आवाहन किए बिना इनका पूजन सीधे किया जा सकता है। कल्याण के शिवपुराणांक में वर्तमान श्रीविश्वेश्वर-लिंगको बाणलिङ्गबताया गया है। मेरुतंत्रके चतुर्दश पटल में स्पष्ट लिखा है कि नर्मदेश्वरके ऊपर चढे हुए सामान को ग्रहण किया जा सकता है। शिव-निर्माल्य के रूप उसका परित्याग नहीं किया जाता। बाणलिङ्ग (नर्मदेश्वर) के ऊपर निवेदित नैवेद्य को प्रसाद की तरह खाया जा सकता है। इस प्रकार नर्मदेश्वरगृहस्थोंके लिए सर्वश्रेष्ठ शिवलिंगहै। नर्मदा का बाणलिङ्गभुक्ति और मुक्ति, दोनों देता है।

आचार्यो का निर्देश है कि नर्मदा से बाणलिङ्गप्राप्त करने के उपरांत पहले उसकी ग्राह्यताकी परीक्षा करें। सर्वप्रथम बाणलिङ्गको चावल से ठीक प्रकार से तौलें। हाथ में लेने के बाद दोबारा पुन:तौलने पर यदि बाणलिङ्गहलका ठहरे तो वह गृहस्थोंके लिए पूजनीय होगा। कई बार तौलने पर भी यदि वजन बिल्कुल बराबर निकले तो उस लिङ्गको नर्मदा जी में विसर्जितकर दें। यदि बाणलिङ्गतौल में भारी सिद्ध हो तो वह उदासीनोंके लिए उपयुक्त रहेगा। तौल में कमी-बेशी ही बाणलिङ्गकी प्रमुख पहचान है। नर्मदा के नर्मदेश्वरअपने विशिष्ट गुणों के कारण शिव-भक्तों के परम आराध्य हैं।

भगवती नर्मदा की उपासना युगों से होती आ रही हैं। मेरुतंत्रमें नर्मदा देवी के निम्न मंत्र का उल्लेख है-

ऐं श्रींमेकल-कन्यायैसोमोद्भवायैदेवापगायैनम:।

इस मंत्र के ऋषि भृगु, छन्द अमित और देवता नर्मदा हैं। उनके अधिदैविक स्वरूप का ध्यान इस प्रकार करें-

कनकाभांकच्छपस्थांत्रिनेत्रांबहुभूषणां।

पद्माभय:सुधाकुम्भ:वराद्यान्विभ्रतींकरै:।

मंत्र के पुरश्चरण में एक लाख जप करने का विधान निर्दिष्ट है। तत्पश्चात् दशांश होम, तर्पणादिसविधि करें। इस मंत्र की साधना से विद्यार्थी विद्या और ज्ञान, धनार्थी सुख-समृद्धि रोगी स्वास्थ्य, पुत्रार्थी पुत्र तथा मोक्षार्थीभव-बंधन से मुक्ति पा जाता है।

पद्मपुराणके स्वर्गखण्डमें देवर्षिनारद भगवती नर्मदा की स्तुति करते हुए कहते हैं-

नम: पुण्यजलेआद्येनम: सागरगामिनि।

नमोऽस्तुतेऋषिगणै:शंकरदेहनि:सृते।

नमोऽस्तुतेधर्मभृतेवराननेनमोऽस्तुतेदेवगणैकवन्दिते।

नमोऽस्तुतेसर्वपवित्रपावनेनमोऽस्तुतेसर्वजगत्सुपूजिते।

पुण्यसलिला नर्मदा तुम सब नदियों में प्रधान हो, तुम्हें नमस्कार है। सागरगामिनीतुमको प्रणाम है। ऋषि-मुनियों द्वारा पूजित तथा भगवान शंकर की देह से प्रकट हुई नर्मदेतुम्हें बारंबार नमस्कार है। सुमुखितुम धर्म को धारण करने वाली हो, तुम्हें प्रणाम है। देवगण तुम्हारे समक्ष मस्तक झुकाते हैं, तुम्हें नमस्कार है। देवि तुम समस्त पवित्र वस्तुओं को भी परम पावन बनाने वाली हो, सारा संसार तुम्हारी पूजा करता है, तुम्हें बारंबार नमस्कार है।

नर्मदा जी का जितना भी गुण-गान किया जाए कम ही होगा। इनका हर कंकर शंकर की तरह पूजा जाता है। नर्मदा का स्वच्छ निर्मल जल पृथ्वी का मानों अमृत ही है। माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को शास्त्रों में नर्मदा जयंती कहा गया है।

साभार : डा. अतुल टण्डन

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