गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

केदारनाथ


स्थिति मंदाकिनी नदी के तट पर
ऊंचाई 3581 मीटर
मंदिर ज्योतिर्लिग सदाशिव
स्थापित 8 वीं शती
भारत के उत्तर में नगाधिराज हिमालय की सुरम्य उपत्यका में स्थित केदारक्षेत्र प्राचीन काल से ही मानव मात्र के लिए पावन एवं मोक्षदायक रहा है। इस क्षेत्र की प्राचीनता एवं पौराणिक माहात्मय के सम्बन्ध में स्वयं भगवान शंकर ने स्कन्द पुराण में माता पार्वती के प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया है-

पुरातनो यथाहं वैतथा स्थान सिदम् किल।
यदा सृष्टि क्रियायां च मया वै ब्रहैंममूर्तिना।।
स्थित मत्रैव सततं, परब्रहैंमजिगीषया।
तदादिक मिदं स्थानं, देवानामपिदुर्लभम्।।

अर्थात हे प्रोणश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है जितना कि मैं हूँ। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्रमत्व प्राप्त किया। तभी से यह स्थान मेरा चिरप्रिय आवास है। यह केदारखण्ड मेरा चिरनिवास होने के कारण भूस्वर्ग के समान है।
शिव महापुराण की कोटिरूद्र संहिता में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की कथा विस्तार से कही गयी है। उत्तराखण्ड हिमालय में स्थित होने के कारण श्री केदारनाथजी उसमें सर्वोपरि है। केदारखण्ड, बदरीवन में भगवान नर-नारायण द्वारा पार्थिव पूजा विधि से भगवान शंकर का साक्षात्कार एवं वर प्राप्त किया जाना निम्न श्लोक से स्पष्ट है -

यदि प्रसन्नो देवेश यदि देयो वरस्त्वया।
स्थीयतां स्वेन रूपेश पूजार्थ शंकर स्वयं।। (शि0पु0)

अर्थात हे प्रभो! यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते है तो अपने इसी स्वरूप् में जगत् कल्याण एवं हमारी पूजा प्राप्त करने हेतु यहां स्थित होवें, ताकि जगत् का महान उपकार एवं भक्तों के मनोरथ आफ दर्शनों से पूर्ण हो। यह प्रकार भगवान शंकर वहां स्थित हुए एवं-

देवाश्च पूजयन्तीहैं ऋषयश्च पुरातनाः।
मनोऽभिष्ट फलं तेते, सुप्रसन्नान्महेश्वरात्।। (शि0पु0)

अर्थात तब से निरन्तर देवता, ऋषि आदि प्रसन्न चित्त भगवान शिव की पूजा अभीष्ट फलों की प्राप्ति हेतु करते रहते है। भूस्वर्ग केदार क्षेत्र में पहुंचकर भगवान शिव के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो जाय तो स्वप्न में भी दुःख सम्भव नही -

पूजितो येन भक्त्यावै दुःख स्वप्नेऽपि दुर्लभम् (शि0पु0)

कालान्तर द्वापर युग में महाभारत युद्ध के उपरान्त गोत्र हत्या के पाप से पाण्डव अत्यन्त दुःखी हुए और वेदव्यासजी की आज्ञा से केदारक्षेत्र में भगवान शंकर के दर्शनार्थ आये। शिव गोत्रघाती पाण्डवों को प्रत्यक्ष दर्शन नही देना चाहते थे। अतएव वे मायामय महिष का रूप धारण कर केदार अंचल में विचरण करने लगे, बुद्धि योग से पाण्डवों ने जाना कि यही शिव है। तो वे मायावी महिष रूप धारी भगवान शिव का पीछा करने लगे, महिष रूपी शिव भूमिगत होने लगे तो पाण्डवो ने दौडकर महिष की पूंछ पकड ली और अति आर्तवाणी से भगवान शिव की स्तुति करने लगे। पाण्डवो की स्तुति से प्रसन्न होकर उसी महिष के पृष्ठ भाग के रूप में भगवान शंकर वहां स्थित हुए एवं भूमि में विलीन भगवान का श्रीमुख नेपाल में पशुपतिनाथ के रूप में प्रकट हुआ -

तद्रूपेण स्थित स्तत्र भक्तवत्सल नाम भाक
नयपाले शिरोभाग गतस्तद्रूपतस्थितः(शि0पु0)

आकाशवाणी हुई कि हे पाण्डवों मेरे इसी स्वरूप की पूजा से तुम्हारे मनोरथ पूर्ण होंगे। तदन्तर पाण्डवों ने इसी स्वरूप की विधिवत पूजा की, तथा गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुए और भगवान केदारनाथजी के विशाल एवं भव्य मन्दिर का निर्माण किया। तबसे भगवान आशुतोष केदारनाथ में दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में आसीन हो गये। वर्तमान में भी उनका केदारक्षेत्र में वास है -

तत्र नित्यं हैंर साक्षात् क्षेत्र केदार संक्षक
भारतीभिः प्रजाभिश्च तथैव परिपूज्यते (शि.पु.)

बदरीकाश्रम की यात्रा से पूर्व केदारनाथजी के पुण्य दर्शनो का माहात्म्य है। केदारखण्ड में स्पष्ट है कि -

अकृत्वा दर्शनं पुण्यं केदारस्याऽघनाशिनः
योगच्छेद् बदरी तस्य, यात्रा निष्फलतां ब्रजेत्)

पुराणो में कल्पान्तर भेद से यह भी अंकित है कि महिष रूपी भगवान शिव का मुखभाग रूद्रनाथ में, भूजाएं तुंगनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में एवे जटाजूट कल्पेश्वर में प्रकट होते है। केदारनाथजी सहित भगवान शिव के कैलाश में यही पंच केदार है।

पूजा का समय-प्रातः एवं सायंकाल है। सुबह की पूजा निर्वाण दर्शन कहलाती है जबकि शिवपिंड को प्राकृतिक रूप से पूजा जाता है। घृत और जल मुख्य आहार है। सायंकालीन पूजा को श्रृंगार दर्शन कहते हैं जब शिव पिंड को फूलो, आभूषणो से सजाते है। यह पूजा मंत्रोच्चारण, घंटीवादन एवं भक्तो की उपस्थिति में ही संपत्र की जाती है। दैवीय आशीर्वाद की खोज की जाती है एवं सुप्रभाती पूजा में सुप्रभात, बालभोग, शिवपूजा, असतोतार, शिवमहिमा, शिवनामावली, शिव संहारम आदि शामिल है। केदारनाथ पर आधारित पद संस्कृत के विद्वानों द्वारा उच्चारित किये जाते है। जो कि आसपास के गांवों में (उखीमठ-गुप्तकाशी) रहने वाले ब्राह्मणो द्वारा संपत्र की जाती है।

केदारनाथ मदिंर के खुलने के समय महाशिवरात्री के दिन उखीमठ के साधुओ द्वारा निश्चित है, जो सामान्य तौर पर अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में या मई के प्रथम सप्ताह में होता है। केदारनाथ मंदिर श्री बदरीनाथ के एक दिन पहले ही खुल जाता है



सामान्य जानकारी
bullet क्षेत्र-3वर्ग किमी
bullet मौसम- ग्रीष्म मई से अगस्त। दिन के समय मनोरम तथा रात के समय ठंड। तापमान- अधिकतम 17.90 सें. तथा न्यूनतम 5.90 सें.। शीतकाल-सितंबर से नवंबर। दिन के समय ठंडा तथा रात के समय काफी सर्द। दिसंबर से मार्च- हिमाच्छादित
bullet वेश-भूषा-जून से सितंबर तक हल्के ऊनी वस्त्र। अप्रैल-मई तथा अक्टूबर-नवंबर भारी ऊनी वस्त्र
bullet भाषा -हिन्दी, अंग्रेजी, गढवाली
bullet आवास-श्री बदरीनाथ-श्री केदारनाथ मंदिर कमेटी यात्री विश्राम गृह, जीएमवीएन विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह, धर्मशालाएं केदारनाथ में तथा बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा मार्ग पर समस्त प्रमुख स्थान पर।
bullet वायुमार्ग -जौली ग्रांट (देहरादून)। केदारनाथजी से 251 किमी की दूरी पर। चॉपर सर्विस अगस्तमुनि (ऋषिकेश से 158 किमी) से केदारनाथ तक उपलब्ध है। चार्टड सर्विस दिल्ली सरसावा अथवा जौली ग्रांट से केदारनाथ तथा बदरीनाथ तक उपलब्ध है
bullet रेल -ऋषिकेश अंतिम रेल स्टेशन, 234 किमी की दूरी पर । कोटद्वार स्थित अंतिम रेल स्टेशन 260 किमी,
bullet सड़क मार्ग - दिल्ली-ऋषिकेश-287 किमी रेल द्वारा तथा 238 सड़क मार्ग द्वारा। केदानाथजी जाने के लिए गौरीकुंड से 14 किमी की पैदल चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यह मार्ग ऋषिकेश, कोटद्वार, देहरादून, हरिद्वार तथा गढवाल एवं कुमायूं के अन्य महत्वपूर्ण पर्वतीय स्थानों से सड़क मार्ग से जुडा हुआ है।
bullet परिवहन -ऋषिकेश तथा गौरीकुंड-बदरीनाथ जाने तथा वापस आने के लिए बसें, निजी टैक्सियां तथा अन्य हल्के वाहन उपलब्ध रहते है। परिवहन व्यय निश्रित नहीं रहता है। केदारनाथ तक यात्रियों को ले जाने तथा वापसी के लिए और सामान ढोने के लिए गौरीकुंड से घोडें, डांडिया एवं टट्टू उपलब्ध रहते है-
bullet मार्ग संख्या 1 सी- गंगोत्री से केदारनाथ (349 किमी गौरीकुंड से 14 किमी की चढ़ाई सहित) गंगोत्री (22 किमी) हरसिल (12 किमी), सुखी धार (57 किमी), गंगोरी (5 किमी), उत्तरकाशी (12 किमी), नकुरी (19 किमी), धरासू (45 किमी), टिहैंरी (15 किमी), गडोलिया (16 किमी), घनसाली (30 किमी), चिरबटिया (36 किमी), तिलवाडा (8 किमी), अगस्तमुनि (19 किमी), कुंड (7 किमी)। गुप्तकाशी (14 किमी), फाटा (9 किमी), रामपुर (4 किमी), सोनप्रयाग (5 किमी), गौरीकुंड (3 किमी पैदल यात्रा) जंगलचट्टी (4 किमी पैदल यात्रा), रामबाड़ा (4 किमी पैदल यात्रा), गरुड़चट्टी (3 किमी चढ़ाई)
bullet मार्ग नं. 2 सी -हरिद्वार/ऋषिकेश से केदारनाथ (गौरीकुंड से 14 किमी की पैदल यात्रा सहित 251 किमी) ऋषिकेश से केदारनाथ (14 किमी की पैदल यात्रा सहित 227 किमी)
हरिद्वार-(24 किमी), ऋषिकेशः (71 किमी), देवप्रयाग (26 किमी), मलेथा-(4 किमी), कीर्तिनगर (4 किमी), श्रीनगर (34 किमी), रूद्रप्रयाग (8 किमी), तिलवाडा (8 किमी), अगस्तमुनि। अगस्तमुनि से श्री केदारनाथ (72 किमी ) के लिए मार्ग संख्या 1 सी का अवलोकन करें।

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