गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

निर्गुण के साथ सगुण भी हैं भगवान शिव यो भूस्वरूपेणविभर्तिविश्वं

यो भूस्वरूपेणविभर्तिविश्वं

पायात्सभूमेर्गिरीशोष्टमूर्ति:।

योऽपांस्वरूपेणनृपांकरोति

संजीवनंसोऽवतुमां जलेभ्य:॥

जिन्होंने पृथ्वीरूपसे इस विश्व को धारण कर रखा है, वे अष्टमूर्तिगिरीश पृथ्वी से मेरी रक्षा करें। जो जल रूप से जीवों को जीवनदान दे रहे हैं, वे शिव जल से मेरी रक्षा करें।

ॐनम: शिवाय

वैसे तो भगवान शिव अपने अनंत रूप में पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं, लेकिन उनके दो रूपों को प्रमुख रूप से जाना गया है। वे स्वरूप हैं सगुण साकार और दूसरा है निर्गुण निराकार। सामान्य संसारी भक्तों के लिए भगवान शिव का सगुण साकार रूप ही अधिक श्रेयस्कर माना गया है, क्योंकि उस रूप में ही उनका ध्यान और पूजन करने में सुगमता होती है। भगवान शिव सगुण साकार रूप में ही सामान्य भक्तों की परिकल्पना में होते हैं। सामान्यत:उनकी पूजा शिवलिंगअथवा पार्थिव पूजन के रूप में होती है। उसी प्रकार यदि निराकार रूप में भी भगवान शिव का ध्यान किया जाता है तो भी वह प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि आध्यात्मिक रूप में मोक्ष प्राप्ति की कामना वाले वेदान्त के अनुयायी निराकार ब्रह्म रूपी शिव की उपासना करते हैं। वेद के अनुसार भी ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियां शिव में समाहित हैं। वे ही जगत के निर्माणकर्ता,पालनकर्ताऔर संहारकर्ता हैं। यानी वेदों में वर्णित सभी देवताओं के देव भोले शंकर ही हैं। ब्रह्मा, विष्णु भी शिव के ही रूप हैं। शिव ही महादेव हैं। इनकी आराधना से ही सभी मनोरथ पूर्ण हो सकते हैं। शिव की आराधना किसी भी रूप में की जा सकती है। शिव अनादि तथा अनंत हैं। जिस तरह निराकार रूप में केवल ध्यान करने से भोले शंकर प्रसन्न होते हैं, उसी प्रकार साकार रूप में श्रद्धा से शिवलिंगकी उपासना से भोले शंकर प्रसन्न होते हैं। पत्थर, धातु या मिट्टी के बने शिवलिंगका पूजन करना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि कलियुग में मिट्टी का शिवलिंगही श्रेष्ठ है। ब्रह्मा, विष्णु तथा समस्त देवताओं के मनोरथ पार्थिव पूजन से ही पूर्ण हुए हैं। चारों वेदों तथा समस्त शास्त्रों के अनुसार लिंग की आराधना से बढकर दूसरा कोई पुण्य नहीं है।

भगवान श्रीरामचंद्र ने भी मनोकामना की पूर्ति के लिए लंका के सामने समुद्र तट पर पार्थिव शिवलिंगका ही पूजन किया था। सावन भगवान भोले शंकर का प्रिय महीना है। सावन मास में ज्योतिर्लिगके जलाभिषेकतथा दर्शन से मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति तथा परम पद को प्राप्त करता है। सावन के महीने में सभी द्वादश ज्योतिर्लिगके समक्ष भोले शंकर माता पार्वती के साथ उपस्थित रहते हैं। इसलिए श्रावण माह में भगवान शिव की आराधना अवश्य ही करनी चाहिए।

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