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यह मंदिर 1003 से लेकर 1009 ईसा पूर्व के बीच चोला के महाराजा राजारंजन द्वारा बनवाया गया था। पिछले 1000 सालों से यह विशालकाय मंदिर अविचल खड़ा हुआ है।
इस मंदिर में प्रवेश करते ही एक 13 फीट ऊँचे शिवलिंग के दर्शन होते है। शिवलिंग के साथ एक विशाल पंच मुखी सर्प विराजमान है जो फनों से शिवलिंग को छाया प्रदान कर रहा है। इसके दोनों तरफ दो मोटी दीवारें हैं, जिनमें लगभग 6 फीट की दूरी है। बाहरी दीवार पर एक बड़ी आकृति बनी हुई है, जिसे ‘विमान’ कहा जाता है।
यह एक के ऊपर एक लगे हुए 14 आयतों द्वारा बनाई गई है, जिन्हें बीच से खोखला रखा गया है। 14वें आयतों के ऊपर एक बड़ा और लगभग 88 टन भारी गुम्बद रखा गया है जो कि इस पूरी आकृति को बंधन शक्ति प्रदान करता है। इस गुम्बद के ऊपर एक 12 फीट का कुम्बम रखा गया है।
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यह सब जानने के बाद आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि क्या बगैर नींव के इस तरह का निर्माण संभव है? तो इसका जवाब है कन्याकुमारी में स्थित 133 फीट लंबी तिरुवल्लुवर की मूर्ति, जिसे इसी तरह की वास्तुशिल्प तकनीक के प्रयोग से बनाया गया है। यह मूर्ति 2004 में आए सुनामी में भी खड़ी रही।
भारत को मंदिरों और तीर्थस्थानों का देश कहा जाता है, लेकिन तंजावुर का यह मंदिर हमारी कल्पना से परे है। मंदिर में भगवान नंदी की सबसे बड़ी मूर्ति स्थापित की गई है, जो लगभग 12 फीट लंबी और 19 फीट चौड़ी है। यह मूर्ति 16वीं सदी में विजयनगर शासनकाल में बनाई गई थी।
इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व की धरोहर घोषित किया गया है। अब इस मंदिर का रखरखाव भारत के पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है।
कहते हैं बिना नींव का यह मंदिर भगवान शिव की कृपा के कारण ही अपनी जगह पर अडिग खड़ा है। अब आप इसे शिव की कृपा मानें या भारत की प्राचीन समृद्ध स्थापत्य कला का एक नायाब उदाहरण, जो भी हो तंजावुर के शिव मंदिर को इन सभी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह तो खड़ा है बड़ी शान से भविष्य के स्थापत्य विशेषज्ञों को भी आश्चर्यचकित करने के लिए।
कैसे पहुँचें : चेन्नई से 310 कि.मी. दूर स्थित है तंजावुर। यहाँ पहुँचने के लिए रेल या सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। तंजावुर के नजदीक तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित है चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा।
2 टिप्पणियां:
अद्भुत जानकारी ...आभार
nice post
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