शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

गंगावतरण श्रावण मास भगवान भोले शंकर का प्रिय महीना

युधिष्ठिर ने लोमश ऋषि से पूछा, "हे मुनिवर! राजा भगीरथ गंगा को किस प्रकार पृथ्वी पर ले आये? कृपया इस प्रसंग को भी सुनायें।" लोमश ऋषि ने कहा, "धर्मराज! इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक एक बहुत ही प्रतापी राजा हुये। उनके वैदर्भी और शैव्या नामक दो रानियाँ थीं। राजा सगर ने कैलाश पर्वत पर दोनों रानियों के साथ जाकर शंकर भगवान की घोर आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा कि हे राजन्! तुमने पुत्र प्राप्ति की कामना से मेरी आराधना की है। अतएव मैं वरदान देता हूँ कि तुम्हारी एक रानी के साठ हजार पुत्र होंगे किन्तु दूसरी रानी से तुम्हारा वंश चलाने वाला एक ही सन्तान होगा। इतना कहकर शंकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गये।
"समय बीतने पर शैव्या ने असमंज नामक एक अत्यन्त रूपवान पुत्र को जन्म दिया और वैदर्भी के गर्भ से एक तुम्बी उत्पन्न हुई जिसे फोड़ने पर साठ हजार पुत्र निकले। कालचक्र बीतता गया और असमंज का अंशुमान नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। असमंज अत्यन्त दुष्ट प्रकृति का था इसलिये राजा सगर ने उसे अपने देश से निष्कासित कर दिया। फिर एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने की दीक्षा ली। अश्वमेघ यज्ञ का श्यामकर्ण घोड़ा छोड़ दिया गया और उसके पीछे-पीछे राजा सगर के साठ हजार पुत्र अपनी विशाल सेना के साथ चलने लगे। सगर के इस अश्वमेघ यज्ञ से भयभीत होकर देवराज इन्द्र ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा लिया और उसे ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। उस समय कपिल मुनि ध्यान में लीन थे अतः उन्हें इस बात का पता ही न चला। इधर सगर के साठ हजार पुत्रों ने घोड़े को पृथ्वी के हरेक स्थान पर ढूँढा किन्तु उसका पता न लग सका। वे घोड़े को खोजते हुये पृथ्वी को खोद कर पाताल लोक तक पहुँच गये जहाँ अपने आश्रम में कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे और वहीं पर वह घोड़ा बँधा हुआ था। सगर के पुत्रों ने यह समझ कर कि घोड़े को कपिल मुनि ही चुरा लाये हैं, कपिल मुनि को कटुवचन सुनाना आरम्भ कर दिया।
अपने निरादर से कुपित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपने क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया।
"जब सगर को नारद मुनि के द्वारा अपने साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने का समाचार मिला तो वे अपने पौत्र अंशुमान को बुलाकर बोले कि बेटा! तुम्हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म हो जाना पड़ा। अब तुम कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे क्षमाप्रार्थना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान अपने दादाओं के बनाये हुये रास्ते से चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपनी प्रार्थना एवं मृदु व्यवहार से कपिल मुनि को प्रसन्न कर लिया। कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने के लिये कहा। अंशुमान बोले कि मुने! कृपा करके हमारा अश्व लौटा दें और हमारे दादाओं के उद्धार का कोई उपाय बतायें। कपिल मुनि ने घोड़ा लौटाते हुये कहा कि वत्स! जब तुम्हारे दादाओं का उद्धार केवल गंगा के जल से तर्पण करने पर ही हो सकता है।
"अंशुमान ने यज्ञ का अश्व लाकर सगर का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण करा दिया। यज्ञ पूर्ण होने पर राजा सगर अंशुमान को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये इस प्रकार तपस्या करते-करते उनका स्वर्गवास हो गया। अंशुमान के पुत्र का नाम दिलीप था। दिलीप के बड़े होने पर अंशुमान भी दिलीप को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये किन्तु वे भी गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल न हो सके। दिलीप के पुत्र का नाम भगीरथ था। भगीरथ के बड़े होने पर दिलीप ने भी अपने पूर्वजों का अनुगमन किया किन्तु गंगा को लाने में उन्हें भी असफलता ही हाथ आई।
"अन्ततः भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न हुईं और उनसे वरदान माँगने के लिया कहा। भगीरथ ने हाथ जोड़कर कहा कि माता! मेरे साठ हजार पुरखों के उद्धार हेतु आप पृथ्वी पर अवतरित होने की कृपा करें। इस पर गंगा ने कहा वत्स! मैं तुम्हारी बात मानकर पृथ्वी पर अवश्य आउँगी, किन्तु मेरे वेग को शंकर भगवान के अतिरिक्त और कोई सहन नहीं कर सकता। इसलिये तुम पहले शंकर भगवान को प्रसन्न करो। यह सुन कर भगीरथ ने शंकर भगवान की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी हिमालय के शिखर पर गंगा के वेग को रोकने के लिये खड़े हो गये। गंगा जी स्वर्ग से सीधे शिव जी की जटाओं पर जा गिरीं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने पीछे-पीछे अपने पूर्वजों के अस्थियों तक ले आये जिससे उनका उद्धार हो गया। भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार करके गंगा जी सागर में जा गिरीं और अगस्त्य मुनि द्वारा सोखे हुये समुद्र में फिर से जल भर गया।"

श्रावण मास भगवान भोले शंकर का प्रिय महीना

श्रावण मास भगवान शंकर को विशेष प्रिय है। अत: इस मास में आशुतोष भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। सोमवार शंकर का प्रिय दिन है। इसलिए श्रावण सोमवार का और भी विशेष महत्व है।

गौरतलब हो कि भगवान शंकर का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस मास में लघुरूद्र महारूद्ध अथवा अतिरूद्र पाठ करके प्रत्येक सोमवार को शिवजी का व्रत किया जाता है। प्रात: काल गंगा या किसी पवित्र नदी सरोवर या घर पर ही विधि पूर्वक स्नान करने का विधान है। इसके बाद शिव मंदिर जाकर या घर में पार्थिव मूर्ति बना कर यथा विधि से रूद्राभिषेक करना अत्यंत ही फलदायी है। इस व्रत में श्रावण महात्म्य और विष्णु पुराण कथा सुनने का विशेष महत्व है।

विदित हो कि कैलाश के उत्तर में निषध पर्वत के शिखर पर स्वयं प्रभा नामक एक विशाल पुरी थी जिसमें धन वाहन नामक एक गनविराज रहते थे। समयानुसार उन्हे आठ पुत्र और अंत में एक कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम गंधर्व सेना था। वह अत्यन्त रूपवती थी और उसे अपने रूप का बहुत अभिमान था। वह कहा करती थी कि संसार में कोई गंधर्व या देवती मेरे रूप के करोड़वे अंश के समान भी नहीं है। एक दिन एक आकाशचरीगण नायक ने उसकी बात सुनी तो उसे शाप दे दिया 'तुम रूप के अभिमान' में गंधर्वो और देवताओं का अपमान करती हो अत: तुम्हारे शरीर में केाढ़ हो जायेगा। शाप सुन कर कन्या भयभीत हो गयी और दया की भीख मांगने लगी। उसकी बिनती सुन कर गणनायक को दया आ गयी और उन्होंने कहा हिमालय के वन में गोश्रृंग नाम के श्रेष्ठ मुनी रहते है। वे तुम्हारा उपकार करेगे। ऐसा कह कर गणनायक चला गया। गंधर्व सेना व छोड़ कर अपने पिता के पास आई और अपने कुष्ट होने के कारण तथा उससे मुक्ति का उपाय बतायी। माता पिता उसे तत्क्षण लेकर हिमालय पर्वत पर गए और गोश्रृंग का दर्शन करके स्तुति करने लगे। मुनि के पूछने पर उन्होंने कहा कि मेरे बेटी को कोढ़ हो गया है कृपया इसकी शांति का उपाय बताएं।

मुनि ने कहा कि समुद्र के समीप भगवान सोमनाथ विराजमान है। वहां जाकर सोमवार व्रत द्वारा भगवान शंकर की आराधना करो। ऐसा करने से पुत्री का रोग दूर हो जायेगा। मुनि के वचन सुन कर धनवाहन अपनी पुत्री के साथ प्रभास क्षेत्र में जाकर सोमनाथ के दर्शन किए और पूरे विधि विधान के साथ सोमवार व्रज करते हुए भगवान शंकर की आराधना किए उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शंकर भगवान ने उस कन्या के रोगों को दूर किया और उन्हे अपनी भक्ति भी दान में दिया। आज भी लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को पूरी निष्ठा एवं भक्ति के साथ करते है और शिव को प्राप्त करते है।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

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Har Vishnu .

Anugrah Pratap Singh ने कहा…

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