चारूवा स्थित चमत्कारिक प्राचीन गुप्तेश्वर मंदिर महाशिवरात्रि पर 1934 में प्रारंभ हुआ था यहाँ का विशाल मेला
भगवान भोलेनाथ की महिमा अपरंपार है। हिन्दू धर्म में माना जाता है कि भोलेनाथ कैलास पर्वत पर विराजित हैं। कैलास के स्वामी होने के कारण उनका नाम कैलासपति पड़ा। देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा भी अनेक स्थानों पर भगवान भोलेशंकर की आराधना पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ होती है। प्राचीनकाल से ही अनेक मंदिर इसके साक्षात उदाहरण हैं। भगवान शिव की आराधना भक्त अपने-अपने तरीके से करते हैं। भूतनाथ भगवान को लोग धतूरा, बिल्वपत्र, अकाव के फूल चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। कहते हैं कि भगवान भक्त की पुकार बहुत जल्द स्वीकार करते हैं। भक्त कोशिश करते हैं कि पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ भी शिवलिंग स्थापित हैं, सबके दर्शन करें और अपना जीवन पुण्यमय बनाएँ। ऐसे में भक्तों का रुझान प्राचीनकाल में स्थापित शिवमंदिरों की ओर अधिक रहता है।
ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर है हरिपुरा में स्थापित भगवान गुप्तेश्वर का शिवलिंग। मध्यप्रदेश के हरदा जिले के ग्राम चारूवा में स्थित इस शिवमंदिर की महिमा दूर-दूर तक विख्यात है। भव्य पुरातन शैली में पत्थरों से निर्मित इस मंदिर में शिवलिंग चमत्कारिक माना जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर प्रतिवर्ष यहाँ मेला लगता है। मध्यप्रदेश ही नहीं महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश से यहाँ श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। यहाँ के विशाल मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान शिव की आराधना करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ ज्योतिर्लिंग मंदिरों की भाँति दिनभर विशेष अभिषेक-पूजा होती है। भक्तों का ताँता सुबह से लगना शुरू हो जाता है। मंदिर प्रांगण में पीछे की ओर प्राचीन पत्थरों से निर्मित वर्गाकार भूलभुलैया संरचना भी बनी है। माना जाता है कि यह सरंचना महाभारत युद्ध के चक्रव्यूव की भाँति है। इसमें स्थित विचित्र गुत्थी को सुलझाने वाला तीव्र बुद्धिमान होता है।
उधर मेले में भी दूर-दूर से छोटे-बड़े दुकानदार भगवान भोलेनाथ के इस स्थल पर बड़ी आशा के साथ व्यापार करने आते हैं। भगवान गुप्तेश्वर का यह मेला इस वर्ष 6 मार्च से प्रारंभ हो रहा है। यह 26 मार्च तक चलेगा। मेला समिति के अध्यक्ष श्री बसंतराव शिंदे तथा गुप्तेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्री माँगीलाल नाहर ने बताया कि मेले में दुकानों के लिए आवंटन प्रारंभ हो गया है। मेले में विभिन्न दुकानों के अलावा दर्शकों के मनोरंजन के लिए झूले, टूरिंग टॉकीज, सर्कस, जादू के खेल आदि आते हैं। मंदिर के पीछे विशाल पशु मेला भी लगता है।
भव्य पालकी
महाशिवरात्रि पर्व पर यहाँ श्रद्धालुओं की अपार भीड़ रहती है। पावन पर्व के अवसर पर भगवान भोलेनाथ की भव्य पालकी निकाली जाती है। इस वर्ष 7 मार्च को यह पालकी निकाली जाएगी। साथ ही आकर्षक आतिशबाजी भी की जाएगी। पालकी को निहारने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है। ऐसा लगता है मानो दर्शन करने की होड़ सी मची है।
1934 से जारी है मेले की परंपरा
ग्रामीण पृष्ठभूमि में लगने वाला यह मेला सन 1934 में प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में मात्र तीन दिनों का लगता था किंतु कालांतर में जैसे-जैसे इसकी प्रसिद्धि बढ़ती गई, मेला अवधि भी बढ़ती गई और अब 21 दिन हो गई है।
कैसे जाएँ हरिपुरा का गुप्तेश्वर मंदिर ग्राम चारूवा में स्थित है। यहाँ जाने के लिए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से खंडवा जाने वाली बड़ी रेललाइन पर हरदा के आगे खिरकिया स्टेशन उतरना पड़ता है। खिरकिया से मात्र 8 किलोमीटर दूर स्थित गुप्तेश्वर मंदिर जाने के लिए अनेक साधन टेम्पो, टैक्सी, बसें उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग से जाने के लिए खंडवा-होशंगाबाद रोड पर स्थित छीपाबड़ (खिरकिया) से मात्र 7 किलोमीटर है। जिला मुख्यालय हरदा से इसकी दूरी करीब 36 किलोमीटर है।
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7 टिप्पणियां:
महाशिवपुराण से सम्बन्धित प्राचिन शिव मन्दिर आठनेर
गुप्तेश्वर शिव मन्दिर आठनेर_Gupteshwar shiv mandir athner_betul
भवानी शक्तिपीठ सावँगी_आठनेर-bhavani mandir sawangi_athner_betul_jai maa durga
मै एक शिवभक्त हु और भगवान शिव की भक्ति के साथ उनके भजन,गीतो,तीर्थ मन्दिर का गुणगान करता हुँ| मै जन जन तक माँ सती के 52 शक्तिपीठो को पहुचाना चाहता हुँ_जय माँ सती
rakshabandhan parv
रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है ?
रक्षाबंधन कैसे मनाया जाये ? इस
रक्षाबंधन पर प्यारी सी बहन
को क्या तोफा दिया जाये ?
रोज की तरह लेकर आया हु आज सबसे अलग
और सुन्दर सा लेख...
रक्षाबंधन पर एक सुन्दर आज लेख..
आज आपकी बहुत सी मुश्किलें दूर करने
वाला हु जैसे ..
1. रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है ?
2. रक्षाबंधन कैसे मनाया जाये ?
3. इस रक्षाबंधन पर प्यारी सी बहन
को क्या तोफा दिया जाये ?
रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है ?
यह त्यौहार भाई का बहन के
प्रति प्यार का प्रतीक है।
यह त्यौहार श्रावण मास
की पूर्णिमा के दिन
मनाया जाता है |
इस दिन बहनें अपने
भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन
बांधकर उनकी लंबी उम्र और
कामयाबी की कामना करती हैं |
भाई भी अपनी बहन
की रक्षा करने का वचन देते हैं |
यह त्यौहार उत्तर भारत में
धूमधाम से मनाया जाता है।
राखी सामान्यतः बहनें भाई
को बांधती हैं परंतु ब्राहमणों,
गुरुओं और परिवार में
छोटी लड़कियों और भुवा के
द्वारा भतीजो और सम्मानित
संबंधियों भी बांधी जाती है।
यह बहुत ही पुराना त्यौहार है ,
रक्षाबंधन का जिक्र महाभारत
जैसे पुराने ग्रंथो में भी हुवा है |
रक्षाबंधन कैसे मनाया जाये ?
राखी बांधने वाले और बंधवाने
वाले सर्वप्रथम स्नान करे |
फिर एक पूजा की थाली तेयार करे
और थाली में थाली में राखी के
साथ रोली या हल्दी, चावल,
दीपक, मिठाई रखिये |
पहले सभी परिवार के सदस्य
प्रभु( भगवान ) की पूजा कीजिये
और सभी राखिया थाली में रखे |
अब राखी बंधवाने
वालो को बारी-बारी से चोकी पर
या पट्टे पर एक निश्चित जगह
पर बिठाइए |
अब राखी बंधवाने वाले के दाँये
हाथ( दाहिनी कलाई) में चावल दे
और मुठ्ठी बंद करवाइए |
फिर सिर पर एक सुन्दर
सा तिलक निकाल दीजिये, आप
तिलक निकलने के लिए सोने
या चंडी का सिक्का काम में ले
सकते है |
और उनके दाये हाथ पर
मीठी सी मुस्कान के साथ
राखी बाँध दीजिये |
और फिर प्यार से मिठाई
खिला दीजिये..
इस रक्षाबंधन पर प्यारी सी बहन
को क्या तोफा दिया जाये ?
याद कीजिये कोई ऐसी चीज
जिसके लिए आप बचपन में
झगड़ते थे |
याद कीजिये कोई ऐसी चीज
जो बहनजी को पसंद तो बहुत है
पर किसी वजह से खरीद नहीं पाए
हो |
याद कीजिये कोई ऐसी चीज
जिसकी रोज कमी महसूस
करती हो |
या याद कीजिये कोई ऐसी चीज
जो बहनजी के आने वाले समय में
काम आएगा |
आपके पास खुछ और है
नन्द घर आनन्द भयो,
जय कन्हैया लाल की,
हाथी दियो घोड़ा दियो
और दियो पालकी,
यशोदा के लाल भयो,
जय बोलो गोपाल की.....
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी॥
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को अपार
शुभकामनाएँ.....
॥ जय श्रीकृष्ण ॥
सावन के महीने में भगवान शिव धरती पर
भ्रमण पर आते हैं
कहते हैं सावन के महीने में स्वयं भगवान शिव
पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं। इसलिए इस विशेष
महीने में भक्तगण शिव की पूजा-अर्चना में रम
जाते हैं। आइए, हम उनके विभिन्न
नामों को जानकर उन्हें नमन करें। शिव
महाकाल हैं। औघड दानी हैं। भोले शंकर हैं।
महामृत्युंञ्जयहैं। सर्वशक्तिमान हैं। वे देव हैं,
देवाधिपतिहैं, हर हर महादेव हैं। महायोगीहैं।
नटराज हैं। तीन आंख वाले हैं, क्रोधी हैं,
तो अतिशीघ्र प्रसन्न भी होते हैं, अजन्मा हैं,
सदा से हैं। मनुष्य रूप हैं, अरूप भी हैं।
गंगा उनकी जटाओं से निकली हैं, सांप उनके
गले में है, जो योग का कमाल है।
यहां गले में सांप के साथ विष भी है। देवासुर
संग्राम में समुद्र मंथन से निकला विष उन्होंने
ही पी लिया। वे विषपायीभी हैं। वे संहारक
त्रिशूल रखते हैं, लेकिन गायन वादन के लिए
डमरू भी है। वे परम ज्ञानी हैं। वे महा-नर्तक
भी हैं। वे निराले देव हैं। वे भारत के महादेव,
देवाधिपति शिवशंकर हैं। वे भारत
की देवत्रयी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से एक
अतिमहत्वपूर्ण विराट दिव्य ऊर्जा हैं। शिव
विश्व आस्था हैं।
भारत, मिस्र,यूनान, इटली, फ्रांस,
अमेरिका आदि अनेक देशों में शिव
की उपासना की जाती है। इस्लाम आने के पूर्व
काबा क्षेत्र में शिव की 360 मूर्तियां थीं।
इनमें शिव लिंग भी था। शिव समूचे भारत में
मूर्ति के रूप में पूजे जाते हैं। भौतिक जगत
की प्रत्येक वस्तु क्षरणशील है - क्षर है।
यह इंद्रिय गोचर रूप-आकार है। उसमें
विद्यमान अक्षर आत्मानुभूति का विषय है।
भारत में प्रत्येक व्यक्ति, कीट पतंगे,
वनस्पति और अणु-परमाणु में भी परम
ऊर्जा के तत्व देखे जाते हैं। जहां-
जहां दिव्यता वहां-वहां देवता-यही भारतीय
संस्कृति की अनुभूति है। ऋग्वेद में एक
दिलचस्प देवता हैं रुद्र। वे तीन मुंह वाले हैं। वे
साधकों का पोषण करते हैं तथा उन्हें मोक्ष
भी दिलाते हैं। यही रुद्र भारत में लोकप्रिय
महादेव हैं। रुद्र ऋग्वेद में ही शिव भी हैं।
ऋग्वेद के प्रथम मंडल के सूक्त 114 में 11मंत्र
हैं। सभी मंत्र रुद्र देव को अर्पित हैं। रुद्र
यहां जटाधारी हैं। वे अपने हाथ में दिव्य
आरोग्यदायी औषधियां रखते हैं।
स्तुतिकत्र्ताओंको मानसिक शांति देते हैं।
मनुष्य शरीर में मौजूद विष दूर करते हैं। मंत्र
[1-6] में प्रार्थना है कि वृद्धों को न सताएं,
बच्चों को हिंसा में न लगाएं। माता-
पिता की हिंसा न करें। गौओंको आघात न
पहुंचाएं। मंत्र [7-8] में वे मरुद्गणोंके पिता कहे
गए हैं। सुरक्षा के लिए
उनकी स्तुतियां की जाती हैं। मंत्र [9-11]
ऋषिगण रुद्र का निवास पर्वत की गुहा में
बताते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं।
चौथे मंत्र में वे रुद्र को शिवेन वचसा कहते हैं,
अर्थात शिव हैं। पांचवें में वे प्रमुख प्रवक्ता,
प्रथम पूज्य हैं। वे नीलकंठ हैं। [मंत्र 8]फिर वे
सभा रूप हैं, सभापति भी हैं। [मंत्र 24]सेना और
सेनापति भी हैं। [मंत्र 25]वे सृष्टि रचना के
आदि में प्रथम पूर्वज हैं और वर्तमान में
भी विद्यमान हैं। वे ग्राम गली में विद्यमान हैं,
राजमार्ग में भी। वायु प्रवाह, प्रलय वास्तु
सूर्य चंद्र में भी वे उपस्थित हैं [मंत्र 37-39]।
मंत्र 64,65 व 66 में अंतरिक्ष व पृथ्वी में
स्थित रुद्र को नमस्कार किया गया है। रुद्र
और शिव एक हैं। उनकी हजार आंखें और
भुजाएं हैं। वे योगी हैं। अथर्ववेद के 11वें
अध्याय का दूसरा सूक्त रुद्र सूक्त
कहा जाता है। रुद्र यहां भव [उत्पत्ति] हैं।
[मंत्र 3]के अनुसार, वे अंतरिक्षमंडल के
नियन्ता हैं, इसलिए उनको नमस्कार है। [मंत्र
4 मंत्र 5]में वे समदर्शी अर्थात
सभी को एकसमान रूप में देखते ह
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