सोमवार, 18 जुलाई 2011

सबसे ऊँचा शिव मंदिर ( बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का विश्वनाथ मंदिर)

भारत का सबसे ऊँचा (करीब 252 फुट) शिव मंदिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मध्य में स्थित श्री विश्वनाथ मंदिर है। मंदिर का शिखर दक्षिण भारत के तंजावुर स्थित वृहदेश्वर मंदिर की ऊँचाई से ज्यादा है। इसमें मुख्य शिखर के अलावा दो अन्य शिखर भी हैं। मंदिर की अंदर की दीवारों पर श्रीमद्भगवतगीता के श्लोक अंकित हैं।

इसके अलावा दीवारों पर संतों के अनमोल वचन भी संगमरमर पर उकेरे गए हैं। मंदिर के दोनों तरफ खूबसूरत मूर्तियाँ बनी हैं। मंदिर तथा आस-पास का परिसर इतना सुंदर है कि फिल्म बनाने वाले भी यहाँ आकर्षित होते हैं। हरे-भरे आमों के पेड़ मंदिर की शोभा में चार चाँद लगाते हैं। कई फिल्मों की यहाँ पर शूटिंग भी हो चुकी है। मंदिर की साफ-सफाई इतनी अच्छी है कि कहीं पर एक तिनका नजर नहीं आता। इस मंदिर को अगर हिंदू विश्वविद्यालय का आध्यात्मिक केंद्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

यहाँ बाबा भोलेनाथ की आरती में इलेक्ट्रॉनिक घंटा-घड़ियाल लयबद्ध ताल में गूँजते हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय की कल्पना की परिणति है यह भव्य और अलौकिक सौंदर्य से भरा मंदिर। मंदिर के चढ़ावे से विश्वविद्यालय के 22 छात्रों को 'अन्न सुख' भी मिलता है।

मदनमोहन मालवीय की मंशा के अनुरूप इसे आकार देने का श्रेय उद्योगपति युगल किशोर बिरला को जाता है। मंदिर का शिलान्यास 11 मार्च 1931 को हुआ और 17 फरवरी 1958 को महाशिवरात्रि पर मंदिर के गर्भगृह में भगवान विश्वनाथ प्रतिष्ठित हुए। जीवन के अंतिम समय में बिस्तर पर पड़े मदनमोहन मालवीय की आँखें नम देख जाने-माने उद्योगपति युगल किशोर बिरला ने मंदिर के बारे में पूछा तो वे मौन रहे।

मदनमोहन मालवीय को मौन देख बिरला बोले, आप मंदिर के बारे में चिंता न करें, मैं वचन देता हूँ कि पूरी तत्परता के साथ मंदिर के निर्माण कार्य में लगूँगा। तब मदनमोहन मालवीय निश्चिंत हुए और कुछ दिन बाद ही उनका देहाँत हो गया। मंदिर की अन्नदान योजना के तहत अभी 22 छात्रों और कुलपति के विवेकाधीन कोष से 16 छात्रों को भोजन कराया जाता है। मंदिर के कोष से इसका रख-रखाव होता है। विश्वविद्यालय की ओर से यहाँ छह पुजारी, तीन चौकीदार, दो गायक, एक तबला वादक, एक अधिकारी समेत अन्य कर्मचारी मंदिर की देखरेख एवं सेवा में तैनात हैं।

वैसे तो मंदिर में बाबा का दर्शन करने वाले हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं लेकिन सावन के महीने में भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। मंदिर में लगी देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियों का दर्शन कर लोग जहाँ अपने को कृतार्थ करते हैं वहीं मंदिर के आस-पास आम कुंजों की हरियाली एवं मोरों की 'पीकों' की आवाज से भक्त भावविभोर हो जाते हैं।

पूरे सावन माह और माह के प्रत्येक सोमवार को देश-विदेश से श्रद्धालु यहाँ भक्तिभाव से जुटते हैं। मंदिर के मानद व्यवस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित चंद्रमौलि उपाध्याय के अनुसार इस भव्य मंदिर के शिखर की सर्वोच्चता के साथ ही यहाँ का आध्यात्मिक, धार्मिक, पर्यावरणीय माहौल दुनिया भर के आस्थावान श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। खासकर युवा पीढ़ी के लिए यह मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र बन चुका है, जहाँ उनके जीवन में सात्विक मूल्यों का बीजारोपण होता है।

सोमवार, 23 मई 2011

अमरौल का पौराणिक शिव मंदिर


अनुविभाग डबरा की उप तहसील आंतरी के अंतर्गत आने वाले अमरौल गाँव से एक किलोमीटर दूर पुरा संपदा का बेशकीमती खजाना दबा और बिखरा पड़ा है, जिसे पुरातत्व विभाग ने अपने आधिपत्य में लेकर उसकी देखरेख के लिए चार चौकीदार तैनात कर रखे हैं, जो दिन-रात उस पुरा संपदा की देखभाल करते हैं। इसके अलावा पुरातत्व विभाग द्वारा उतने एरिया को चारो तरफ से तारफैंसी कर दिया है।

अमरौल गाँव से एक किलोमीटर दूर पर स्थित रामेश्वर मंदिर है। इसे पौराणिक महत्व का शिव मंदिर भी कहा जाता है, जिसकी बनावट विश्व प्रसिद्ध खुजराहो के विश्व प्रसिद्ध कंदरिया महादेव से मिलती-जुलती है। इसलिए इसे रामेश्वर कहाँ जाता है। इस मंदिर के आस-पास चार शिवलिंग स्थापित है और मंदिर के अंदर-बाहर कई खंडित मूर्तियाँ और तमाम खुले सिंहासन पड़े हुए हैं, रामेश्वर मंदिर के आस-पास चार शिवलिंग है, जिनका अपना-अपना विशेष महत्व और स्थान है।

मंदिर के पीछे स्थित 6 फुट, मंदिर के पास दो फुट, मंदिर के सामने साढ़े तीन फुट, मंदिर के मुख्य मार्ग के बीचो-बीच साढ़े चार फुट का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के पीछे स्थित 6 फुट का शिवलिंग है, जो जलधारी नहीं है। इसे हटाने और उठाने के अनेक प्रयास किए गए पर कोई सफलता नहीं मिली।

क्षेत्र के लोगों की ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग प्रतिवर्ष शिवरात्रि के दिन एक चावल के बराबर बढ़ जाता है। इसी तरह मंदिर पर तैनात चौकीदार रूपसिंह कुशवाह, कल्याण सिंह रावत, महेश शुक्ला, सतेंद्र पांडे का कहना है कि रामेश्वर मंदिर के मुख्य मार्ग के बीचो-बीच साढ़े तीन फुट के शिवलिंग को कोई भी मुख्य मार्ग से हटा नहीं सका। इसे हटाने के तमाम जतन किए गए, लेकिन शिवलिंग अपने स्थान से टस से मस तक नहीं हुआ।

ऐसे ही मंदिर के सामने साढ़े चार फुट का शिवलिंग कुछ समय पूर्व ही खुदाई के दौरान निकला है, जिसे देखकर गाँव वाले आश्चर्यचकित रह गए। गाँव वालों का कहना है कि यहाँ आए दिन इस तरह की मूर्तियाँ जमीन से निकल जाती हैं, जिसके चलते इस मंदिर की आसपास की जमीन खुदाई पर पुरातत्व विभाग ने पूरी तरह से रोक लगा दी है।

अमरौल गाँव के रामेश्वर मंदिर परिसर में अपार पुरा संपदा जमीन में दबी हुई है, जिनमें से कभी भी, कहीं भी, कोई न कोई मूर्ति अपने आप ऊपर आ जाती है। गाँव वालों की मानें तो उनका कहना है कि मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर बरसात के दौरान मिट्टी बहने लगी और मिट्टी के बहने के बाद जमीन में दबी माता की मूर्ति दिखाई देने लगी। जमीन से निकली माता की मूर्ति को गाँव वालों ने इसलिए बाहर नहीं निकाला क्योंकि वहाँ पुरातत्व विभाग के चौकीदार तैनात थे।

अमरौल गाँव के रामेश्वर मंदिर पर महाशिवरात्रि पर्व पर भारी संख्या मे शिवभक्त काँवर चढ़ाने के लिए दूर-दूर से आते हैं और आस-पास के ग्रामीणजन भी इस दिन काफी संख्या में दर्शन करने भी आते हैं।

यह मंदिर अद्भुत और चमत्कारिक भी है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के चारों तरफ शिवलिंग स्थापित है। सावन के माह में शिवभक्तों की रामेश्वर मंदिर में अच्छी-खासी भीड़ दिखाई देती है।

सोमवार के दिन तो गाँव के अलावा आसपास गाँव के लोग भी मंदिर के आस-पास स्थापित शिवलिंगों की पूजा विशेष तौर पर करने आते हैं, लेकिन पुरा संपदा और बेशकीमती खजाने का यह रामेश्वर मंदिर का आज तक पुरातत्व विभाग उद्धार नहीं कर सका। अगर पुरातत्व विभाग इस पर ध्यान दें तो निश्चित तौर पर यह मंदिर तीर्थ स्थल बन सकता है।
सौजन्य से - नईदुनिया